नई दिल्ली। 30 सितंबर 2010 में अयोध्या विवाद इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया था। तीन जजों की बेंच ने अयोध्या की 2.77 एकड़ विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटा था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला सुनाने वाले जस्टिस एसयू खान ने 285 पेज के अपने फैसले में टिप्पणी की थी, ‘‘ये जमीन का छोटा-सा टुकड़ा है, जहां देवदूत भी पैर रखने से डरते हैं। हम वो फैसला दे रहे हैं, जिसके लिए पूरा देश सांस थामें बैठा है।’’

जज ने ये की थी टिप्पणी


जस्टिस एसयू खान ने लिखा था, ‘‘यह जमीन का छोटा-सा टुकड़ा है, जहां देवदूत भी पैर रखने से डरते हैं। 1500 वर्ग गज का यह टुकड़ा बारूदी सुरंग की तरह है, जिसे मैंने और मेरे सहयोगी जजों ने साफ करने की कोशिश की है। कुछ बहुत समझदार लोगों ने हमें ऐसा न करने की सलाह भी दी कि कहीं हमारे परखच्चे न उड़ जाएं, लेकिन हमें जोखिम लेने पड़ते हैं। जिंदगी में यह भी जोखिम ही है कि हम कोई जोखिम न उठाएं। जज के तौर पर हम यह फैसला नहीं करते कि हमारी कोशिशें कामयाब हुईं या नाकाम। जब कभी देवदूतों को इंसान के आगे झुकना पड़ता है तो कभी-कभी उनके सम्मान को न्याय संगत भी ठहराना पड़ता है। यह ऐसा ही एक मौका है। हम कामयाब हुए हैं या नाकाम? खुद के मामले में कोई जज यह नहीं कह सकता। हम वह फैसला दे रहे हैं, जिसके लिए पूरा देश सांस थामें बैठा है।’’