मैनपुरी में लोकसभा के उपचुनाव के दौरान समाजवादी पार्टी का कुनबा एक बार फिर से एक हो गया था… ये बात दीगर है… इसी के बाद चाचा-भतीजे में लंबे समय से चल रही खींचतान थम गई और शिवपाल सिंह यादव एक बार फिर सपा में शामिल हो गए थे… इसके बाद से ही ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि मैनपुरी उपचुनाव में डिंपल यादव को बड़ी जीत दिलाने वाले चाचा शिवपाल को अखिलेश यादव पार्टी में कोई बड़ी जिम्मेदारी देंगे… और वो दिन भी आया…29 जनवरी को शिवपाल समर्थकों की वो प्रतीक्षा भी खत्म हुई… अखिलेश ने शिवपाल यादव को सपा का राष्ट्रीय महासचिव बना दिया…वो सपा के उन 14 राष्ट्रीय महासचिवों में से एक हैं, जिनमें बीएसपी से आए रामअचल राजभर, लालजी वर्मा, इंद्रजीत सरोज और विवादित स्वामी प्रसाद मौर्य भी शामिल हैं…
इस बीच बड़ा सवाल ये है कि मैनपुरी से डिंपल यादव को जिताने में दिन-रात एक कर देने वाले शिवपाल के बेटे आदित्य यादव को अखिलेश से क्या मिला… जबकि रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव को पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह मिल गई है… इसने शिवपाल के समर्थकों को थोड़ा हैरान जरूर किया है… अभी तक उनकी ओर से नई कार्यकारिणी को लेकर किसी तरह के असंतोष की बात सामने नहीं आई है लेकिन माना जा रहा है कि प्रगतिशील समाजवादी पार्टी लोहिया से सपा में आए लोग पार्टी में शिवपाल के लिए और ज्यादा ‘स्पेशल’ पावर की उम्मीद कर रहे थे…
शिवपाल लंबे समय से अपने बेटे आदित्य यादव को भी राजनीति में स्थापित करने की कोशिश में लगे हैं…वो शिवपाल की प्रसपा में प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे थे… माना जा रहा था कि शिवपाल की सपा में वापसी के बाद उन्हें भी कोई अहम जिम्मेदारी मिल सकती है… लेकिन राष्ट्रीय कार्यकारिणी में अभी भी आदित्य यादव के लिए कोई जगह नहीं बन पाई है… यह तथ्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अखिलेश ने रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय को तो कार्यकारिणी में शामिल कर लिया है लेकिन शिवपाल के उस बेटे को नजरअंदाज किया है, जिसने डिंपल यादव को मैनपुरी में चुनाव जिताने के लिए दिन-रात एक कर दिया था…ये जाहिर है कि जब चाचा और भतीजे के रिश्तों में तल्खी चरम पर थी, तब रामगोपाल ने अखिलेश यादव का साथ दिया था… सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में यादव परिवार के अन्य सदस्यों- धर्मेंद्र यादव और तेज प्रताप यादव को भी जगह मिली है…
शिवपाल अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव की टीम में नंबर-दो की पोजिशन पर माने जाते थे… जब नेताजी सपा के मुखिया थे, उस समय शिवपाल के पास पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी होती थी… अखिलेश यादव ने जब पार्टी की कमान अपने हाथ में ली थी, तब उन्होंने शिवपाल यादव को नरेश उत्तम पटेल से रिप्लेस कर दिया… 2017 के यूपी चुनाव और साल 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान शिवपाल और अखिलेश यादव के बीच तल्खी काफी बढ़ गई थी… शिवपाल ने अपनी अलग पार्टी भी बना ली लेकिन उन्हें वह सफलता नहीं मिली, जिसकी वह उम्मीद कर रहे थे…
साल 2022 में जब मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद मैनपुरी की लोकसभा सीट खाली हुई, तब वहां उपचुनावों का ऐलान हुआ… बीजेपी ने शिवपाल के ही चेले रहे रघुराज सिंह शाक्य को मैदान में उतार दिया… बीजेपी की जोर-आजमाइश से सावधान अखिलेश को चाचा शिवपाल की मदद लेनी पड़ी, जो मैनपुरी लोकसभा क्षेत्र की जसवंतनगर विधानसभा से 6 बार से विधायक हैं… लंबे समय तक चली खींचतान के बाद आखिरकार शिवपाल फिर से सपा में वापस आ गए और अपनी पार्टी का इसमें विलय कर लिया… तभी से माना जा रहा था कि 2024 के लोकसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए शिवपाल को कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी जा सकती है…
बहरहाल शिवपाल को पार्टी में जो जिम्मेदारी मिली है, उसको लेकर प्रसपा से सपा में आए लोगों में खास उत्साह नजर नहीं आ रहा है…वो लोग शिवपाल को 14 राष्ट्रीय महासचिव में से एक बनाने की अखिलेश की राजनीति को नहीं समझ पा रहे हैं… उनकी आपत्ति इस पर भी है कि पार्टी में शिवपाल का कद पहले बीएसपी और फिर बीजेपी सरकार के रास्ते सपा में आए स्वामी प्रसाद मौर्य के बराबर है, जो फिलहाल रामचरितमानस पर विवादित बयान देकर चर्चा में बने हैं…