27 फरवरी, 1931 को अल्फ्रेड पार्क में ब्रिटिश पुलिस से मुठभेड़ में अपनी जिस पिस्तौल से कनपटी पर गोली मार कर चंद्रशेखर आजाद शहीद हुए थे, उसकी इंग्लैंड से वापसी की कहानी बेहद दिलचस्प है। दरअसल जिस एसएसपी नाट बाबर ने पार्क में आजाद की घेराबंदी की थी, उसकी सेवानिवृत्ति के बाद ब्रिटिश सरकार ने उनकी पिस्तौल उसे उपहार में दे दी थी। इसे बाद में लगातार पत्राचार के बाद इंग्लैंड से वापस लाया जा सका। अब आजाद की वो कोल्ट इलाहाबाद संग्रहालय में मौजूद है।
अंग्रेज एसएसपी नाट बावर सेवानिवृत्ति के वक्त उपहार में मिली आजाद की कोल्ट को लेकर इंग्लैंड चले गए थे। उनका दावा था कि अल्फ्रेड पार्क में आजाद को सबसे पहले उन्हीं की गोली लगी थी। बावर उन दिनों उत्तर प्रदेश शासन के पेंशनर हुआ करते थे और शायद इसी अधिकार से बाद में आजाद की कोल्ट वापस लाने की मांग उठने पर इलाहाबाद के तत्कालीन कमिश्नर मुस्तफी ने बावर को उसे लौटाने के लिए पत्र लिखा। कमिश्नर मुस्तफी के पत्र का बावर ने कोई जवाब नहीं दिया ता।
बाद में उन्हें कोल्ट लौटाने के लिए इंग्लैंड स्थित भारतीय हाई कमिश्नर की मदद ली गई और अंतत: वे इस शर्त पर इसके लिए राजी हो गए कि भारत की ओर से उनसे इसका लिखित अनुरोध किया जाए। साथ ही यह भी कहा कि अनुरोध पत्र के साथ इलाहाबाद में आजाद के शहादत स्थल पर लगी मूर्ति का चित्र भी भेजा जाए।
उनकी शर्त स्वीकार करनेके बाद 1972 में यह ऐतिहासिक कोल्ट पिस्तौल देश की राजधानी दिल्ली लौटी और 27 फरवरीए 1973 को लखनऊ में क्रांतिकारी शचींद्र नाथ बख्शी की अध्यक्षता में हुए समारोह के बाद लखनऊ के संग्रहालय में रखवा दी गई। इसके कुछ साल बाद इलाहाबाद का नया संग्रहालय बनकर तैयार हुआ तो इसको वहां के एक विशेष कक्ष में स्थानांतरित कर दिया गया।
अब प्रयागराज के सरकारी मालखाने में इस कोल्ट की बरामदगी का विवरण इस प्रकार दर्ज है-
कोल्ट पिस्तौल, पीटीएफ, मैन्युफैक्चरिंग कंपनी हार्टफोर्ड सिटी (अमेरिका) पेटेंटेड, अप्रैल 20,18977- दिसंबर 22, 1903 कोल्ट आटोमेटिक कैलिबर, 32, रिमलेस ऐंड
स्मोकलेस।