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lockdown में अखिलेश का इशारों में सीएम योगी पर वार, दिल्ली से चलती यूपी सरकार !

कोरोना काल में आम आदमी को क्या चाहिए ? और ये आम आदमी कौन है ? जो घरों में बैठ कर बड़ी ही बेफिक्री से इसके जाने का इंतजार कर रहे हैं क्या वहीं आम आदमी है ? या फिर बेहद ही तनाव में जी रहे वो लोग जिनके पास रोजगार नहीं… वैसे जब रोजगार थे तब भी जिंदगी का सफर सुहाना कहा था ? बस जिंदगी कट रही थी… लेकिन जब से कोरोना संकट आया है तब से यही जिंदगी पगलाई हुई है… काटने के लिए दौड़ रही है… कह सकते हैं ये जिंदगी खुद की टहनियों को एक के बाद एक काट रही है !सवाल यही आम आदमी कौन है ?

रोड पर चलते, जद्दोजहद से लड़ते, खुद में टूटते-बिखरते, अपने अंदर अनेकों भावानाओं को समाए , अंर्तद्वंद में व्यस्त, अपने ही फैसले, अपनी ही चुनी राह पर चलते इन जैसे लोग क्या आम आदमी है ? तो इन्हें आज के वक्त में क्या चाहिए ? एक अदद सरकारी मदद ! लेकिन वो क्या मिल रहा है ? सरकार ने 20 लाख करोड़ रुपए के राहत पैकेज का एलान कर दिया… लेकिन समझ को जैसे जैसे ये बात समझ में आयी… शायद ठगा महसूस कर रही है…

अब इन जैसे आम आदमी को जटिल सराकरी अर्थतंत्र की बाते कहा समझ में आएगी… बात मोटी सी है… इन्हें तत्काल राहत मिले… सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आम आदमी की इन्ही बातों को समझकर एक तंज भरा ट्वीट किया

सरकार से उम्मीद करते-करते जब हार गये तो ‘आत्मनिर्भर’ होकर… बेबस लोगों ने अपनी गाड़ी ख़ुद चला ली…

अखिलेश यही तक नहीं रुके अपने तंज को मजाकिया रूप दिया…. केंद्र को आगे कर योगी सरकार पर निशाना साध दिया…. अखिलेश ने कर्ज और आत्मनिर्भरता की परिभाषा को अपनी भाषा में परिभाषित किया…लेकिन जाने कब वो औ उनकी सियासत ने सीएम योगी को आड़े हाथ ले लिया… अब अखिलेश के उस ट्वीट को देखिए जिसमे उन्होंने लिखा…

विद्यार्थी:’क़र्ज़’ का अर्थ क्या होता है?
अध्यापक:जो दूसरे से अपना काम चलाने के लिए लिया जाए.
विद्यार्थी:और ‘आत्मनिर्भर’ का अर्थ?
अध्यापक:अपना काम चलाने के लिए ख़ुद पर निर्भर होना.
विद्यार्थी:क्या क़र्ज़ व आत्मनिर्भर पर्यायवाची हैं?
अध्यापक:?? अभी दिल्ली से पूछकर बताता हूँ!

ये तो सीएम योगी पर निशाना है… वैसे अखिलेश के निशाने पर मोदी सरकार पर भी रही… उन्होंने ट्वीट कर लिखा…

ये कैसा समाधान है? किसानों से क़र्ज़ लेने के लिए कहा जा रहा है. ये समय भविष्य की हवा-हवाई बातों का नहीं, किसानों-ग़रीबों को तत्काल नकद राहत देने का है. सरकार के पैकेज की जैसे-जैसे परतें खुल रही हैं, वैसे-वैसे इसका खोखलापन भी सामने आ रहा है. ये पैकेज नहीं जुमलों का पिटारा है.

वैसे देखा जाए तो जो मजदूर इन लॉकडाउन के बीच मजबूरी में घर चले गए हैं… क्या वो घर से लौटकर वापस जल्द आ पाएंगे… लगता तो नहीं है… हालांकि उद्योगपति इन्हें वापस लाने के लिए बेकरार है… सरकार भी इन उद्योगपतियों का साथ दे रही हैं… चलिए अखिलेश के एक और ट्वीट को देखते हैं… जानते में उसमे क्या लिखा है ।

श्रमिकों को काम पर लाने के लिए तो सरकार उद्योगपतियों को पास दे रही है पर घर लौट रहे उन बेबस मज़दूरों के लिए कोई इंतज़ाम नहीं जो सड़कों पर भूखे-प्यासे मरने पर मजबूर हैं. अब सब जान गये हैं कि ये सरकार अमीरों के साथ है और मज़दूर, किसान, ग़रीब के ख़िलाफ़ है. भाजपा की कलई खुल गई है.

ये सियासत की बात है… लेकिन इन सबके बीच आम आदमी मौजूदा वक्त में जिस दौर गुजर रहा है… उसके लिए कौन जिम्मेदार है ? अब ऐसी स्थिति उत्पन्न ना हो उसके लिए सत्ता पक्ष और विपक्ष के पास क्या प्लान है ? या फिर ये सियासत यूं ही ऐसी भयावह स्थिति का इंतजार एक-दूसरे पर निशाना साधने के लिए करेंगे ?

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