Akhilesh Yadav -Mayawati के बीच छिड़ा भीषण संग्राम… धीरे-धीरे दलित समाज के बीच पैठ बना रहे हैं अखिलेश… मायावती के सामने सबूत है!

अंदर ही अंदर अखिलेश-मायावती के बीच छिड़ा भीषण संग्राम
2022 में मिला था परिणाम… अखिलेश समझ गए ध्यान देना है… मायावती समझ गई अब भी रोका नहीं गया… खेला हो जाएगा
अखिलेश का घातक दांव… एक-एक रणनीति को कर रहे हैं… सूक्ष्मता से इस्तेमाल… जो दलित ‘नायक’ उसके अपनी ओर मोड़ रहे

सियासत के कुरुक्षेत्र में जीत और हार के बीच महीन अंतर होता है… जीतने वाले अगर सोच ले कि वो जीता हुआ है तो हार के लिए रास्ता बनना शुरू हो जाता है… विरोधी धीरे धीरे उसकी ओर बढ़ता जाता है… और किसी फ्रंट पर अगर हारते रहने वाले के जेहन में ये बात हो वो कभी ना कभी जीतेंगे जरूर… तो जीत जरूर मिलती है… हारी हुई बाजी जीतकर वो बाजीगर कहलाते हैं… यूपी में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव एक ऐसे ही राजनीतिक राह पर चल रहे हैं… जिसमें उन्हें अबतक कामयाबी तो नहीं मिली है… लेकिन अखिलेश को उम्मीद है… कामयाबी मिलेगी जरूर… अब अखिलेश की इस रणनीति की वजह से कहा जा रहा है… बीजेपी के अंदर केशव प्रसाद मौर्य को ये जिम्मेदारी दी गई है… अखिलेश की ओर से दलितों और पिछड़ों के मुद्दों पर जब सरकार को घेरा जाए तो केशव जवाब देंगे… इधर बीएसपी प्रमुख मायावती भी एक्टिव हो गई है… अखिलेश पर ताबड़तोड़ वार कर रही है… वो जानती है… अगर अखिलेश की राजनीति के इस ट्रैक को रोका नहीं गया… तो उनकी भविष्य की राजनीति के लिए खतरे से भरी होगी… लेकिन ये हैं… कि वो अखिलेश को रोक नहीं पा रही हैं…अखिलेश धीरे धीरे दलितों को सपा की ओर मोड़ने का प्रयास कर रहे हैं…

2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुटी समाजवादी पार्टी अपने परंपरागत वोट बैंक मुस्लिम-यादव के साथ ही दलितों पर और फोकस बढ़ाएगी… साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी इसी सफल फार्मूले को अपनाकर सपा ने करीब 10 प्रतिशत वोट बढ़ाया था… अब फिर इसी फार्मूले को अपनाकर सपा आगे बढ़ने की रणनीति बनाई है…यूं तो अखिलेश यादव ने एमवाई के साथ दलित वोट बैंक को जोड़ने के प्रयास तो साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन करके कर दिए थे… हालांकि ये गठबंधन चुनाव में सफल नहीं रहा और बाद में टूट गया… पिछले कई चुनाव के नतीजे इस बात के संकेत हैं कि प्रदेश में बसपा लगातार कमजोर हो रही है… ऐसे में अखिलेश की नजर बसपा से छिटकने वाले दलित मतदाताओं पर है…

साल 2022 के विधानसभा चुनाव में भी अखिलेश ने अपने परंपरागत मतदाताओं के साथ दलित मतदाताओं को जोड़ने की कोशिश की… इसके लिए संगठन में भी दलित नेताओं पर फोकस बढ़ाया है… सपा ने लोहिया वाहिनी की तर्ज पर बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर वाहिनी बनाई… ये वाहिनी पूरे प्रदेश में दलितों को जोड़ने का काम कर रही है…अखिलेश सार्वजनिक मंच से लोहिया के साथ अंबेडकर का भी नाम लेते हैं… अखिलेश का ये प्रयोग साल 2022 में सफल भी रहा… साल 2017 के विधानसभा चुनाव में सपा को 21.82 प्रतिशत मत के साथ 47 सीटें मिली थी जबकि 2022 के चुनाव में 32.05 प्रतिशत मतों के साथ 111 सीटों पर जीत दर्ज की थी… इनमें 18 दलित विधायक भी हैं… सपा की कोलकाता में हुई दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भी दलितों पर फोकस बढ़ाने के साफ संकेत दिखाई दिए…

नौ बार के विधायक और पांच बार मंत्री रहे सपा के राष्ट्रीय महासचिव अवधेश प्रसाद को यूं ही इतनी तवज्जो नहीं मिल रही है… इसके पीछे सपा की सोची-समझी रणनीति है… अवधेश प्रसाद पासी बिरादरी से आते हैं… सबसे पहले अखिलेश ने उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राष्ट्रीय महासचिव बनाया… विधानसभा में ठीक अपने बगल की सीट आवंटित की…कोलकाता में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जाते समय हवाई जहाज में जो सेल्फी अखिलेश ने ली उसमें उनके साथ अवधेश प्रसाद और शिवपाल यादव थे। यही तस्वीर सपा ने ट्वीट भी की.. कार्यकारिणी की बैठक में भी अखिलेश ने अवधेश प्रसाद को मंच पर ठीक अपने बगल में बैठाया…

बहरहाल 2024 की लड़ाई में धार देने के लिए 2023 में सभी पार्टियों ने प्रयास शुरू कर दिए… इसमें अखिलेश यादव भी हैं… उन्होंने अपनी राजनीति में एक और रणनीति पर प्रमुखता से ध्यान दे रहे हैं…अब इसमें कामयाब होंगे उसका परिणाम 2024 में आएगा… फिलहाल बूथ स्तर तक अखिलेश अपने संगठन को मजबूत करने पर ध्यान दे रही है…मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव की तर्ज पर एक बूथ 10 यूथ का फार्मूला लोकसभा की सभी 80 सीटों पर लगाकर प्रत्येक बूथ को मजबूत किया जाएगा…