यूपी में कोरोना वायरस के प्रसार पर रोक लगाने के लिए सरकार एक्शन प्लान के साथ मैदान में है । इसके लिए सूबे में लॉकडाउन को लागू किया गया है । हॉटस्पॉट इलाकों को सील किया गया है । सरकार अपनी ओर से तमाम कोशिशें कर रही है, लेकिन इन सबके बीच जो घरों में कैद है वो आर्थिक समस्याओं से दो-चार हो रहे हैं हालांकि सरकार इस ओर भी प्रयास कर रही है । वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वकीलों और पंजीकृत क्लर्कों के मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लिया है ।


मुख्य न्यायाधीश गोविंद माथुर और न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने कहा कि

लॉकडाउन लागू करने के बाद से पूरे देश में न्यायिक कामकाज की गति कम हो गई है और कोर्ट अर्जेंट मामलों की ही सुनवाई कर रहे हैं। ऐसे लाखों लोग, जिनका अस्तित्व न्यायपालिका के काम करने पर निर्भर करता है, न्यायायिक कार्यों के धीमा होने से उनकी आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। अधिवक्ताओं और उनके साथ काम करने वाले पंजीकृत अधिवक्ता क्लर्कों के पेशे पर एक बड़ा प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई देता है।

जिसपर काउंसिल ऑफ इंडिया, बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश, यूपी कानून मंत्रालय, इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन, इलाहाबाद हाईकोर्ट एडवोकेट एसोसिएशन और अवध बार एसोसिएशन ने उनके द्वारा जरूरतमंद अधिवक्ताओं और पंजीकृत अधिवक्ता क्लर्कों की सहायता के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताया है।

अधिनियम की धारा 6 में अधिवक्ताओं और उनकी भूमिका के अधिकारों, विशेषाधिकारों और हितों की रक्षा करने का प्रावधान करती है और यह अपंग, विकलांग या अन्य अधिवक्ताओं के लिए कल्याणकारी योजनाओं को व्यवस्थित करने और उनकी वित्तीय सहायता का विस्तार भी करती है। इसके मद्देनजर, अदालत ने उपरोक्त अधिकारियों से हाईकोर्ट ने 15 अप्रैल तक जवाब मांगा है।

हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश एडवोकेट्स वेलफेयर फंड एक्ट, 1974 पर भी ध्यान दिया, जिसमें बार काउंसिल ऑफ इंडिया, बार काउंसिल ऑफ उत्तर प्रदेश और ट्रस्टीज कमेटी को जरूरतमंद अधिवक्ताओं की सहायता के लिए आवश्यक योजनाओं को विकसित करने का अधिकार दिया गया है। हाईकोर्ट ने इस प्रकार निर्देश दिया है कि इस अधिनियम के तहत उठाए गए कदमों से इसे अवगत कराया जाए।