गोरखनाथ मठ’ Vs ‘तिवारी हाता’… दुश्मनी की फिर क्यों होने लगी चर्चा ?
गोरखपुर की पॉवर पॉलिटिक्स में दो धुरी… योगी आदित्यनाथ और हरिशंकर तिवारी के बिना अधूरी !
हरिशंकर तिवारी का निधन… CM योगी ने ऐसा कुछ फैसला किया… बात होने लगी… योगी उनसे अपने ‘रिश्ते’ को भूले नहीं !



हरिशंकर तिवारी गोरखपुर का वो चर्चित नाम… जिसकी चर्चा कभी खूब हुआ करती थी…. चर्चाओं के केंद्र तो कई बाते थी… लेकिन उन चर्चाओं में जो चर्चा सबसे ज्यादा होती रही है…. वो है… गोरक्ष पीठ और तिवारी हाता के बीच अप्रत्यक्ष जंग की… आज जबकि हरिशंकर तिवारी इस दुनिया में नहीं है… तो दबी जुबान में योगी आदित्यनाथ और हरिशंकर तिवारी की पुरानी दुश्मनी की यादों को कुरदने लगे… गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद वह गोरखपुर का पर्याय बन गए हैं… लगातार दूसरी बार सीएम की कुर्सी पर बैठे सीएम योगी ने इसी जमीन पर सांसद से लेकर सीएम तक का सफर तय किया…. हालांकि सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है… इसी गोरखपुर शहर में आज से 6 साल पहले 2017 में योगी आदित्यनाथ के खिलाफ जमकर नारे लगे थे… तब उन्हें सीएम बने हुए बमुश्किल एक महीना ही हुआ था… इसी शहर में सैकड़ों लोगों की जुबान से नम आंखों के साथ- जब तक सूरज चांद रहेगा, बाबा तेरा नाम रहेगा के नारे गूंज उठे हैं… तब योगी के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे और आज विदाई जुलूस में लग रहे नारों का संबंध एक शख्स से है… नाम है- हरिशंकर तिवारी…
हरिशंकर तिवारी और योगी आदित्यनाथ दोनों ही गोरखपुर की राजनीति की धुरी रहे… एक जहां राजनीति के अपराधीकरण के दौर में परवान चढ़ा तो वहीं दूसरा हिंदुत्व की विचारधारा के सहारे सीएम की कुर्सी तक पहुंचा… लेकिन दोनों कभी भी राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन में साथ नहीं रहे… दूरियां बरकरार रही… अहम वजह रही- जातीय गोलबंदी की राजनीति… योगी जहां उस गोरक्ष पीठ का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिसे दिग्विजयनाथ के समय से ठाकुरों की पीठ कहा जाता है… और दूसरी तरफ हरिशंकर तिवारी ने ब्राह्मणों को लामबंद किया…हरिशंकर तिवारी की गिनती उन नेताओं में होती है, जिन्होंने पूर्वांचल ही नहीं पूरे यूपी की राजनीति को बदलकर रख दिया… राजनीति में बाहुबल और अपराधीकरण की शुरुआत हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र शाही के बीच ठनी दुश्मनी से ही मानी जाती है… यह वो दौर था, जह माफिया और गैंगवार जैसे शब्द गोरखपुर की सीमा में दाखिल हो गए थे…
हरिशंकर के समय गोरखपुर यूनिवर्सिटी में बलवंत सिंह नेता थे… दोनों में अदावत थी…ये दौर तेजतर्रार युवा नेता रवींद्र सिंह का भी था, जो छात्रसंघ से लेकर विधानसभा तक पहुंचे… हरिशंकर के मजबूत होने के बदलते दौर में बलवंत और रवींद्र दोनों की हत्या हो गई… आरोप गाहे-बगाहे हरिशंकर पर ही लगा… इसके बाद राजपूत लॉबी की कमान संभाल ली वीरेंद्र शाही ने…वीरेंद्र शाही को ठाकुर गुट का अगुवा माना जाता था…ये भी माना जाता था कि उन्हें गोरक्षपीठ का समर्थन हासिल है… वहीं दूसरी तरफ हरिशंकर ब्राह्मण बिरादरी के नेता बनकर उभरे… दोनों नेताओं के बीच अदावत ने देखते ही देखते पूरे इलाके में ब्राह्मण बनाम क्षत्रिय की लामबंदी शुरू करा दी… शाही और तिवारी ने गोरखपुर नॉर्थ ईस्ट रेलवे मुख्यालय पर कब्जा हासिल करने की होड़ शुरू की….
हरिशंकर ने चिल्लूपार से राजनीति शुरू की। वहीं शाही भी महराजगंज की लक्ष्मीगंज सीट से चुनाव जीत गए… दोनों में वर्चस्व की जंग जारी रही… इसके बाद गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ संसदीय राजनीति में कूद पड़े…वो एक के बाद एक संसद का चुनाव जीतते गए और तिवारी गुट के खिलाफ राजनीतिक गोटियां सेट करना शुरू कर दिया…वक्त के साथ सबकुछ ठंडा पड़ता नजर आया… लेकिन 2017 में योगी के सीएम की कुर्सी पर बैठने के साथ ही गोरखपुर शहर में हरिशंकर तिवारी और परिवार के आवास ‘तिवारी बाबा का हाता’ पर छापा पड़ा… पुलिस ने लूट के आरोपी एक शख्स की तलाश में छापा मारा… अक्टूबर 2020 में हरिशंकर के बेटे तत्कालीन विधायक विनय शंकर तिवारी और बहू रीता तिवारी के खिलाफ सीबीआई ने केस दर्ज किया… विनय शंकर तिवारी की कंपनी से जुड़े बैंक फ्रॉड के मामले में सीबीआई ने ताबड़तोड़ छापेमारी की…2017 के अप्रैल महीने में पुलिस की तरफ से बिना वॉरंट घर में घुसकर छापेमारी की घटना के बाद बुजुर्ग हरिशंकर तिवारी खुद डीएम ऑफिस की तरफ धरना देने के लिए चल पड़े… उनके पीछे बड़ी संख्या में लोगों का कारवां जुड़ा… योगी सरकार पर बदले की भावना से कार्रवाई का आरोप लगाकर जमकर नारेबाजी की गई…
बदलते दौर में गोरक्ष पीठ और तिवारी हाता के बीच अप्रत्यक्ष जंग थमता नजर आया… योगी के सीएम बनने के बाद तिवारी फैमिली पर कभी छापेमारी तो कभी सीबीआई जांच की आंच भी ठंडी होती नजर आई… लेकिन 16 मई की शाम हरिशंकर तिवारी की मौत के बाद सीएम योगी आदित्यनाथ की तरफ से अंतिम दर्शन को पहुंचना तो दूर शोक का कोई संदेश भी जारी नहीं होने से लोग दबी जुबान में दुश्मनी की चर्चा करते नजर आए