बांदा: बुंदेलखंड में चैत्र नवरात्रि में तोहि देवी बुलावे हिंगलाल लाड़ले भैरो का जैसे बुंदेली उमाह (देवी गीत) देवी की चौरी में बोए गए जेवारों के दौरान गाए जाने का पुराना रिवाज रहा है। लेकिन अबकी बार यह गीत नहीं गूंजेगा। कोरोनावायरस के संक्रमण को देखते हुए गांवों में भी 21 दिनों का लॉकडाउन है।

बुंदेली रीति-रिवाज में चैत्र नवरात्रि के दौरान जहां मठ-मंदिरों को सजाने की परंपरा रही है, वहीं तंत्र विद्या के शौकीन पंडा-पुजारी गांवों में मरही माता, काल भैरव, काली मइया, दुर्गा देवी, कालका, चण्डी आदि तमाम देवी-देवताओं की मन्नतें पूरी करने के लिए अपने घरों में स्थापित देवी चौरियों में ज्वार के जेवारों की बुआई कर सुबह-शाम ढोलक-मंजीरा की थाप पर समूह बनाकर बुंदेली उमाह (देवी गीत) तोहि देवी बुलावे हिंगलाल लाड़ले भैरों का जैसे गीत गाया करते थे। लेकिन बुधवार से शुरू हुए इस नवरात्रि में इन बुंदेली उमाहों की गूंज देवी चौरी में नहीं गूजेंगी।

देश में बढ़ते कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार शाम ही देशवासियों के नाम अपने संबोधन में 21 दिनी संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा की है। जिसके चलते सभी को अपने-अपने घरों के अंदर रहने की हिदायत दी गई है।

लॉकडाउन के पूर्ण पालन के लिए स्थानीय प्रशासन भी जबरदस्त कसरत कर रहा है। गांव-देहात के ग्रामीण भी अपनी खेती-किसानी भगवान भरोसे छोड़कर घरों में रहकर कोरोना का मुकाबला कर रहे हैं। ऐसे में मन्नतें पूरी करने के लिए देवी चौरी में जेवारा तो बुधवार शाम बोए जाएंगे, लेकिन झुंड की शक्ल में देवी गीत उमाह नहीं गाएंगे।

बांदा जिले के तेंदुरा गांव के चुन्नू रैदास ने बताया कि उसके घर में पुरखों के जमाने से मरही माता की चौरी स्थापित है। जिसपर हर छमाही जेवारा बोए जाने और उमाह गाने की परंपरा चली आ रही है, लेकिन इस बार कोरोना बीमारी की वजह से हुए लॉकडाउन और पुलिस के चालान करने के डर से सुबह-शाम उमाह नहीं होंगे।

उसने बताया कि जेवारा बोने और उमाह गाने का काम उसका पिता महावीरवा भी करते रहे हैं, लेकिन उनकी मौत के बाद अब तीन साल से यह काम खुद कर रहा है।

इसी गांव के लालबहादुर कोरी ने बताया, मंगलवार शाम ओरन चौकी से दो सिपाही आए थे। उन्होंने जेवारा बोने से तो नहीं मना किया, लेकिन भीड़ इकट्ठा कर उमाह गाने से मना किया है। इसीलिए हवन, धूप और नारियल का चढ़ौना चढ़ाकर देवी जी चौरी में जेवारा बो देंगे और उमाह नहीं करेंगे।

वैसे कोरोनावायरस के संक्रमण के चलते लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर कस्बों और शहरों के देवी मंदिरों पर है। बांदा शहर की बात करें, तो अलीगंज चौराहे में विराजमान काली माता हों या बीच शहर की महेश्वरी माता मंदिर या फिर खाईंपार मुहल्ले की चौसठ जोगनी मंदिर हो, यहां बुधवार सुबह से ही कपाट बंद हैं और देवी पंडालों की देखरेख के लिए बनी समितियों के पदाधिकारी ने दो दिन पूर्व हुई एक अहम बैठक में भीड़ न जुटाने और कपाट बंद करने का ऐलान कर दिया था।

श्री सिंह वाहिनी देवी सेवा समिति के प्रबंधक प्रद्युम्न दुबे (लालू) ने बताया कि सभी देवी समितियों के पदाधिकारियों की बैठक में यह निर्णय लिया गया है और बिना भीड़ जुटाए ही नवरात्रि मनाने के संकल्प के अलावा घरों में रहकर कोरोनावायरस के बढ़ते संक्रमण से मुकाबला करने का निर्णय लिया गया है।