Site icon UP News | Uttar Pradesh Latest News । उत्तर प्रदेश समाचार

दुनिया भर के आसमान में दहाड़ेगा अपना ‘तेजस’:भारत के फाइटर जेट को खरीदना चाहता है अमेरिका; मलेशिया को 18 विमान बेचने की पेशकश

1965 की जंग में अचानक किए गए पाकिस्तानी एयरफोर्स के हमले में भारत के 35 फाइटर जेट धराशायी हो गए थे। यही नहीं लड़ाकू विमानों में GPS, रडार नहीं लगे होने की वजह से स्क्वॉड्रन लीडर विलियम ग्रीन भारत के बजाय पाकिस्तान में लैंड कर गए थे।

यह वह वक्त था जब भारत दूसरे देशों से फाइटर जेट खरीद रहा था। अब एक अभी का वक्त है जब भारत के स्वदेशी मॉडर्न फाइटर जेट ‘तेजस’ को अमेरिका जैसा ताकतवर देश खरीदना चाहता है।

ऐसे में आज भास्कर एक्सप्लेनर में जानते हैं कि स्वदेशी तेजस कैसे दूसरे फाइटर जेट से अलग है? दुनिया के आधे दर्जन से ज्यादा ताकतवर देश इसे क्यों खरीदना चाह रहे हैं?

मलेशिया को 18 स्वदेशी तेजस बेचने की पेशकश
भारत अब दुनिया के दूसरे देशों से सिर्फ फाइटर जेट खरीदेगा नहीं बल्कि बेचेगा भी। इस बात की जानकारी शुक्रवार यानी 5 अगस्त को संसद में रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट ने दी है।

रक्षा राज्य मंत्री भट्ट ने अपने बयान में कहा कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड यानी HAL एक इंजन वाले इस फाइटर जेट का निर्माण करती है। इसके लिए पिछले साल अक्टूबर में रॉयल मलेशियाई वायु सेना ने 18 जेट विमानों के प्रस्ताव के अनुरोध का जवाब दिया था, जिसमें तेजस के 2 सीटों वाले संस्करण को बेचने की पेशकश की गई थी।

इसके साथ ही उन्होंने ये भी कहा है कि इस विमान को खरीदने में 6 अन्य देश जैसे अमेरिका, अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, मिस्र, इंडोनेशिया और फिलिपींस ने भी दिलचस्पी दिखाई है।

अब तेजस की क्या खासियत है और दुनिया भर के देश इसे क्यों खरीदना चाह रहे हैं। ये भी बताएंगे लेकिन पहले पढ़िए तेजस के सफर की शुरुआत कैसे हुई…

1983 में शुरू हुए प्रयास को 18 साल बाद मिली थी सफलता
इंडियन एयरफोर्स के बेड़े में हलके फाइटर विमान यानी LCA को शामिल करने की तैयारी 1983 में ही शुरू हो गई थी। सरकार की हरी झंडी मिलते ही भारतीय साइंटिस्ट अपने मिशन को अंजाम देने में दिन-रात लग गए थे। इसका वक्त LCA का सिर्फ दो मकसद था-

पहला: रूसी फाइटर MiG-21 के विकल्प में नया फाइटर जेट तैयार करना।

दूसरा: स्वदेशी और हलके फाइटर जेट को बनाना।

करीब 18 सालों की कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार जनवरी 2001 को पहली बार इस स्वदेशी फाइटर जेट ने हिंदुस्तान के आसमान में उड़ान भरी थी। जब यह सब कुछ हो रहा था तो अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमंत्री थे। 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी ने ही इस फाइटर जेट का नाम ‘तेजस’ दिया था। तेजस नाम रखते वक्त प्रधानमंत्री वाजपेयी ने कहा था कि ये संस्कृत शब्द है, जिसका मतलब ‘चमक’ है।

अपनी 4 खूबियों की वजह से बाकी फाइटर जेट अलग है तेजस
इस वक्त भारतीय वायु सेना के बेड़े में जो टॉप फाइटर जेट हैं उनमें सुखोई Su-30MKI, राफेल, मिराज, MiG-29 और तेजस का नाम शामिल है। तेजस अपनी इन खूबियों की वजह से बाकी के चारों फाइटर जेट से अलग और खास हैं…

पहला: इस विमान के 50% कलपुर्जे यानी मशीनरी भारत में ही तैयार हुआ है।

दूसरा: इस विमान में मॉडर्न टेक्नोलॉजी के तहत इजरायल की EL/M-2052 रडार को लगाया गया है। इस वजह से तेजस एक साथ 10 लक्ष्यों को ट्रैक कर उन पर निशाना साधने में सक्षम है।

तीसरा: बेहद कम जगह यानी 460 मीटर के रनवे पर टैकऑफ करने की क्षमता।

चौथा: यह फाइटर जेट इन चारों में ही सबसे ज्यादा हलका यानी सिर्फ 6500 किलो का है।

आखिर एयरफोर्स को तेजस की जरूरत क्यों पड़ी?
पिछले पांच दशकों में 400 से ज्यादा MiG-21 विमानों के क्रैश होने की वजह से भारत सरकार इसे रिप्लेस करना चाह रही थी। इसी MiG-21 की जगह लेने में कामयाब हुआ तेजस। इस विमान की वेट कम होने की वजह से यह समुद्री पोतों पर भी आसानी से लैंड और टेक ऑफ कर सकता था। यही नहीं इसकी हथियार ले जाने की क्षमता MiG-21 से दोगुना है। स्पीड की बात करें तो राफेल से 300 किलोमीटर प्रति घंटा ज्यादा रफ्तार तेजस की है।

चीन, रूस और दक्षिण कोरिया के फाइटर जेट को तेजस ने पछाड़ा
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक आर माधवन ने कहा कि मलेशिया के सामने तेजस फाइटर जेट की जगह पर और भी कई ऑप्शन थे। इनमें चीन के JF-17 जेट, दक्षिण कोरिया के FA-50 और रूस के MiG-35 के साथ-साथ याक-130 शामिल थे। इसके बावजूद मलेशिया ने इसे खरीदने में दिलचस्पी दिखाई है।

बेंगलूर में बिजनेसमैन सेठ वालचन्द हीराचन्द ने दिसंबर 1940 में एक कंपनी की शुरुआत की थी। इस कंपनी का नाम आगे चलकर 1964 में हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड हो गया। आज के समय में भारतीय वायुसेना के लिए विमान और इससे जुड़े कलपुर्जे बनाने वाली यह एकलौती और बड़ी सरकारी कंपनी है।

बेंगलूर में बिजनेसमैन सेठ वालचन्द हीराचन्द ने दिसंबर 1940 में एक कंपनी की शुरुआत की थी। इस कंपनी का नाम आगे चलकर 1964 में हिन्दुस्तान ऐरोनॉटिक्स लिमिटेड हो गया। आज के समय में भारतीय वायुसेना के लिए विमान और इससे जुड़े कलपुर्जे बनाने वाली यह एकलौती और बड़ी सरकारी कंपनी है।

उन्होंने कहा कि JF-17 की कीमत कम होने की वजह से मलेशिया का ध्यान उस तरफ गया लेकिन तेजस में एडवांस टेक्नोलॉजी होने की वजह से वह इसे खरीदने की सोच रहा है। मलेशिया के जरूरत के हिसाब से होने की वजह से वह इस कम भार वाले विमान को खरीदना चाह रहा है। उन्होंने कहा कि देखरेख एवं मरम्मती, भार, कीमत और मारक क्षमता के लिहाज से तेजस ने दुनिया के 4 ताकतवर विमानों को पीछे छोड़ दिया है

Exit mobile version