Site icon UP News | Uttar Pradesh Latest News । उत्तर प्रदेश समाचार

अंकित हत्याकांड में सनसनीखेज खुलासा, उमेश ने छात्र के दोस्तों को किया था यह मैसेज, ऐसे गहराया शक

गाजियाबाद के मोदीनगर में पीएचडी के छात्र अंकित खोखर की हत्या के रहस्य से पर्दा उठाने में उसके छह करीबी दोस्तों की अहम भूमिका रही है। उसके मोबाइल फोन पर कॉल रिसीव न होने पर दोस्तों को शक हुआ था कि कहीं कुछ गड़बड़ है। इसके बाद वे इसकी तह तक जाने के लिए दो माह तक खुद जांच में जुटे रहे। पुलिस सुनवाई के लिए तैयार नहीं हुई तो अंकित के साथ अनहोनी की आशंका के सुबूत जुटाकर दिए और मकान मालिक उमेश शर्मा की साजिश को बेनकाब कर दिया। इसके बाद पुलिस को हरकत में आना पड़ा। अंकित का मोबाइल फोन छह अक्तूबर की रात को बंद हुआ था। इससे पहले दोस्त राजीव बालियान से बात हुई थी। इसके बाद सात से 10 तक फोन बंद रहा। 11 को एरोप्लेन मोड पर कर दिया और वाईफाई से व्हाट्सएप चलाने लगा। 

मृतक अंकित खोखर का फाइल फोटो

20 के बाद फोन पर घंटी जाने लगी। दोस्त उमेश को फोन करके पूछते तो वह सभी को एक ही जवाब देता कि अंकित उत्तराखंड गया है। सभी दोस्त उमेश को फोन करने के बाद आपस में बात करते थे।विज्ञापन

उमेश अंकित बनकर जो मेसेज कर रहा था, उनमें भाषा की अशुद्धियां थीं जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। वे अंकित के घर गए तो मकान मालिक ने अंदर नहीं जाने दिया। इससे शक गहराया।

सेफ हूं कोई दिक्कत नहीं है….से गहराया शक
-अंकित का मोबाइल हमेशा ऑन रहता था, यह छह से नौ अक्तूबर तक स्विच ऑफ रहा तो दोस्तों को चिंता हुई कि उसके साथ कुछ गलत तो नहीं हो गया है।
-10 अक्तूबर को अंकित का व्हाट्सएप चालू हो गया लेकिन फोन पर घंटी नहीं जा रही थी। 20 के बाद घंटी जाने पर भी फोन नहीं उठा तो चिंता और बढ़ गई।
-23 अक्तूबर को दिवाली पर भी अंकित का फोन नहीं उठा तो दोस्तों को उसके साथ अनहोनी होने की आशंका गहराने लगी।
 विज्ञापन

व्हाट्सएप पर अंकित बनकर उसके मोबाइल से मकान मालिक उमेश दोस्तों से चैटिंग कर रहा था। मैसेज में भाषा की अशुद्धियां देख दोस्तों को लगा कि फोन किसी और के पास है।
-अंकित दोस्तों को आप कहकर संबोधित करता था, जबकि उमेश मैसेज के जवाब में उन्हें तू संबोधित कर रहा था। इससे उनका शक गहराता चला गया।
-लगातार मैसेज आने पर उमेश ने अंकित बनकर उसके दोस्तों को मैसेज किया, मैं सेफ हूं…. कोई दिक्कत नहीं है। इससे शक और गहराया। दोस्तों ने सोचा कि भला उसे यह मैसेज करने की क्या जरूरत है।

अलग-अलग तारीख बताकर फंसा उमेश
अंकित के दोस्त उमेश को फोन करके पूछ रहे थे कि वह कहां है, फोन क्यों नहीं उठा रहा। उमेश ने जवाब दिया कि वह उत्तराखंड गया है। इसके बाद उसने एक और चाल चली। अंकित के मोबाइल पर मेसेज टाइप कर खुद के मोबाइल पर भेजा। मेसेज में लिखा था, यहां बहुत मन लग रहा है और ये लोग आने भी नहीं दे रहे हैं, अभी मैं यहीं रहूंगा।

उमेश ने अंकित के दोस्तों को यह मैसेज भेजा। दोस्तों ने पूछा कि वह किस तारीख को गया? इसके जवाब में उमेश गलती कर बैठा। उसने अलग-अलग दोस्त को अलग-अलग तारीख बताई। विशाल को 23 अक्तूबर बताई, ज्योति को 12 नवंबर। उसे नहीं मालूम था कि सभी दोस्त हर मेसेज पर आपस में चर्चा करते हैं। अलग-अलग तारीख से शक की सूई उमेश पर टिक गई।

हमें अंकित के अपहरण की आशंका थी
दोस्त विशाल शर्मा ने बताया कि वे अंकित के घर गए। वहां उसकी दोनों बुलेट बाइक नहीं थी। इस पर शक और गहरा गया। उन्होंने बैंक में अपने परिचित के माध्यम से अंकित के खाते की डिटेल निकलवाई। छह अक्तूबर के बाद से खाते से 21 लाख से ज्यादा निकल चुके थे। उन्हें आशंका हुई कि उसका अपहरण हुआ है और कोई उसे बंधक बनाकर खाता खाली कर रहा है।

इस पर सभी दोस्तों ने चार दिसंबर को व्हाट्सएप ग्रुप बना लिया। इसमें दुबई में काम करने वाली ज्योति सहित 14 और दोस्त जोड़े। ये सभी लोग अंकित के साथ पढ़े थे। सभी ग्रुप पर अंकित से जुड़ी हर बात साझा करने लगे। नौ दिसंबर को पुलिस के पास गए तो पुलिस ने यह कहकर टरका दिया कि जाओ, हम ढूंढ लेंगे।

इस पर वे बैंक की डिटेल, बाइक न मिलने और व्हाट्सएप मैसेज की फोटो कॉपी कराकर पुलिस के पास आए। पुलिस ने 12 को गुमशुदगी दर्ज की और मकान मालिक से पूछताछ की। तब जाकर केस खुला।

ये हैं दोस्त
1. रुपेश शर्मा – अंकित के साथ एमफिल की थी
2. अजय भारद्वाज – नोएडा में कंसल्टेंसी फर्म चलाते हैं
3. अमित तोमर – अमेठी में विवि. में असिस्टेंट प्रोफेसर
4. राजीव बालियान – बड़ौत के जाट कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर।
5. विशाल शर्मा – बिजनौर के वर्धमान कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर।
6. विक्रांत जावला – मेरठ में कोचिंग सेंटर संचालक

अधूरा रह गया अंकित का सपना
दोस्तों ने बताया कि अंकित का सपना पीएचडी के बाद जर्मनी जाकर पढ़ाई करना था। वह सांख्यिकी का अधिकारी बनना चाहता था। उसने पासपोर्ट के लिए आवेदन कर दिया था। उसने जमीन भी इसलिए बेची थी ताकि जर्मनी जाकर पढ़ाई कर सके। उसका यह सपना अधूरा ही रह गया।

Exit mobile version