जिस योजना को सिस्टम में पारदर्शिता के लिए लाया गया… उस योजना के जरिए बीजेपी ने गजब का खेल कर दिया…
इलेक्टोरल बॉन्ड से पर्दा उठा तो बीजेपी की सच्चाई सामने आ गई… सपा, बसपा को मिला कितना चंदा?… सुनेंगे तो चौकेंगे जरूर
इलेक्टोरल बॉन्ड के आने से राजनीतिक दलों की फंडिंग और पारदर्शी हुई या फिर भ्रष्टाचार को जायज बनाने का एक नया रास्ता मिल गया? भारत सरकार जिस ‘पारदर्शी’ तरीके से कानून लेकर आई, वो संविधान और कानून की रौशनी में वाकई पारदर्शी थी भी या नहीं?… लोकसभा चुनाव के ऐलान से महीने भर पहले इलेक्टोरल बॉन्ड्स की वैधता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया है…. लोकसभा चुनावों से पहले ये फैसला काफी अहम है… कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया है…. कोर्ट ने कहा है कि वोटर्स को यह जानने का अधिकार है कि सरकार के पास आखिर पैसा आ कहां से रहा है… सर्वोच्च अदालत ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को आदेश दिया है कि वो बॉन्ड के जरिए चंदा देने वालों की लिस्ट चुनाव आयोग के साथ साझा करे, जिसे चुनाव आयोग सार्वजनिक करेगा…
साल 2018 में इस बॉन्ड की शुरुआत हुई. इसे लागू करने के पीछे मत था कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा… इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती थीं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते थे…. भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया था ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की थीं..
चुनावी फंडिंग व्यवस्था में सुधार के लिए सरकार ने साल 2018 इलेक्टोरल बॉन्ड की शुरुआत की थी… 2 जनवरी 2018 को तत्कालीन मोदी सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को अधिसूचित किया था… इलेक्टोरल बॉन्ड फाइनेंस एक्ट 2017 के तहत लाए गए थे… यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते थे… इसके लिए ग्राहक बैंक की शाखा में जाकर या उसकी वेबसाइट पर ऑनलाइन जाकर इसे खरीद सकता था…लेकिन इस योजना का फायदा किसे सबसे ज्यादा मिली अब वो जानिए… जानेंगे तो चौंकेंगे… सपा, बीएसपी जैसी पार्टियां यूपी में बीजेपी के सामने किस मौर्चे पर टिक नहीं पा रही है… अब एडीआर की रिपोर्ट के जरिए समझिए बीजेपी की ओर से किया खेल किया गया
एडीआर की एक रिपोर्ट कहती है कि चुनावी बॉन्ड की शुरुआत के बाद अगले पांच बरस में कुल बॉन्ड के जरिये जो चंदा राजनीतिक दलों को मिला, उसका 57 फीसदी डोनेशन यानी आधे से भी अधिक पैसा भारतीय जनता पार्टी के पार्टी फंड में आया… फाइनेंसियल ईयर 2017 से लेकर 2021 के बीच इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये कुल करीब 9 हजार 188 करोड़ रूपये का चंदा राजनीतिक दलों को मिला… ये चंदा 7 राष्ट्रीय पार्टी और 24 क्षेत्रीय दलों के हिस्से आया
पांच सालों में चुनावी बॉन्ड से बीजेपी को मिले 5 हजार 272 करोड़
कांग्रेस पार्टी को इसी दौरान 952 करोड़ रूपये
बाकी के बचे लगभग 3 हजार करोड़ रूपये में 29 राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा था.
पांच बरस में इलेक्टोरल बॉन्ड के कुल चंदे का बीजेपी को जहां 57 फीसदी तो कांग्रेस को केवल 10 फीसदी मिला.
वहीं मार्च 2022 से लेकर मार्च 2023 के बीच कुल 2,800 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड बेचे गए…. इस पूरे पैसे का तकरीबन 46 फीसदी हिस्सा भारतीय जनता पार्टी के खाते में आया… पार्टी ने फाइनेंशियल ईयर 2022-23 में अपनी तिजोरी में 1,294 करोड़ रुपये इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये जोड़े… भारतीय जनता पार्टी को इलेक्टोरल बॉन्ड से मिलने वाला पैसा कांग्रेस की तुलना में लगभग 7 गुना था… कांग्रेस 2022-23 में महज 171 करोड़ रकम पार्टी फंड में जोड़ पाई जबकि इसी पार्टी को उसके पिछले फाइनेंसियल ईयर में 236 करोड़ रुपये चुनावी बॉन्ड के मार्फत मिले… अब जानिए इसका फायदा यूपी में मुख्य विपक्षी पार्टियां सपा और बसपा को कितना मिला… ADR की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2018 से 2024 के बीच सियासी दलों को 15000 करोड़ रुपये से ज्यादा चंदा मिला… आइए आपको बताते हैं कि चुनावी बॉन्ड से अखिलेश यादव की नेतृत्व वाली समाजवादी पार्टी और मायावती की अध्यक्षता वाली बहुजन समाज पार्टी को कितना चंदा मिला… चुनाव आयोग को सौंपी गई पार्टियों की सालाना रिपोर्ट के अनुसार
साल 2021-22 में चुनावी बॉन्ड से समाजवादी पार्टी को 3.2 करोड़ रुपये मिले थे
वहीं, साल 2022-23 में चुनावी बॉन्ड से सपा को चंदा नहीं मिला.
साल 2022-23 में बहुजन समाज पार्टी को 20 हजार रुपये से ज्यादा कोई चंदा नहीं मिला
बहरहाल आरबीआई ने एक वक्त ये कहा था कि इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम में राजनीतिक फंडिंग को साफ-सुथरा बनाने का माद्दा तो है मगर शेल कंपनियों के जरिये इसके गलत इस्तेमाल होने की आशंका भी है… आरबीआई ने इलेक्टोरल बॉन्ड को फिजिकल फॉर्म के बजाए डिजिटल तौर पर बेचने की वकालत की थी…. आरबीआई को इस बात का डर था कि कहीं ये स्कीम मनी लॉन्ड्रिंग को बढ़ावा न देने लग जाए और काले धन को सफेद करने का जरिया न बन जाए… वहीं चुनाव आयोग ने निर्दलीय उम्मीदवारों, नई-नवेली पार्टियों के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड उपलब्ध न होने पर और चंदा देने वालों के नाम पता गुमनाम रखने पर कुछ चिंताए जाहिर की थी… इस मामले की सर्वोच्च अदालत में सुनवाई के दौरान इलेक्शन कमीशन ने कहा था कि वो इस तरह की फंडिंग के खिलाफ नहीं है लेकिन चंदा देने वाली कंपनी या व्यक्ति की पहचान गुप्त रखने से चिंतित है…