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देश के प्रमुख शिक्षाविद डॉ शबाब आलम ने बताया लॉकडाउन से दुनिया को हुए ये फायदे

लॉक डाउन ने कराया पृथ्वी के सही वातावरण व तापमान से अवगत। आज 24 अप्रेल 2020 व भरतीय लॉकडाउन का 32वां दिन है। वर्ष 2019-20 मे जहॉं पूरा विश्व कोरोना-19 महामारी की चपेट मे बीमारी/मृत्यु/भुखमरी व अर्थव्यवस्था से जूझ रहा है, वही पर सम्पूर्ण विश्व एक नये वातावरण व उसके सही तापमान चक्र से अवगत हो रहा है। विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन अध्ययन जलवायु संबंधी आंकड़ों एवं जानकारियों को संगठित करके किया जा सकता है। इन आँकड़ों को आसानी से समझने व उनका वर्णन और विश्लेषण करने के लिए उन्हें अपेक्षाकृत छोटी इकाइयों में बाँटकर संश्लेषित किया जा सकता है। जलवायु का वर्गीकरण तीन वृहत् उपगमनों द्वारा किया गया है। वे हैं – आनुभविक, जननिक और अनुप्रयुक्त। आनुभविक वर्गीकरण प्रेक्षित किए गए विशेष रूप से तापमान एवं वर्णन से संबंधित आँकड़ों पर आधारित होता है। जननिक वर्गीकरण जलवायु को उनके कारणों के आधार पर संगठित करने का प्रयास है। जलवायु का अनुप्रयुक्त वर्गीकरण किसी विशिष्ट उद्देष्य के लिए किया जाता है।

बात करते है हमारे देश भारत की जिसकी जलवायु का वर्गीकरण अनेक विद्वानों द्वारा किया गया है परन्तु जैसा कि वर्तमान लॉक डाउन स्थिति मे सम्पूर्ण विश्व के अधिकांश जलवायु प्रभावित उपकरणों, मशीनो का प्रयोग केवल ना मात्र है जिसके कारण न केवल भारत अपितु सम्पूर्ण विश्व का वातावरण व तापमान परिवर्तन महसूस हो रहा है जबकि प्रकृति द्वारा वर्तमान वातावरण व तापमान कई वर्षो से एक समान रहा है जिसको मानवीय क्रियाकलापों द्वारा प्रभावित किया गया था। भारतीय जलवयु कालक्रम को समझने के लिए भारतीय स्थ्लखण्डो की विषमताओ का अध्ययन व ज्ञान प्राप्त करना अनिवार्य होगा क्योकि भारत की जलवयु मे काफ़ी क्षेत्रीय विविधता पायी जाती है और जलवायवीय तत्वो के वितरण पर भारत की कर्क रेखा पर अवस्थिति और यहॉं के स्थलरूपो का स्पष्ट प्रभाव दृष्टिगोचर होता है। इसमे हिमालय पर्वत और इसके उत्तर मे तिब्ब्त के पठार की स्थिति, थार का मरूस्थल और भारत की हिन्द महासागर के उत्तरी शीर्ष पर अवस्थिति महात्वणूर्ण है। हिमालय श्रेणियॉं और हिंदकुश मिलकर भारत और पाकिस्तान के क्षेत्र की उत्तर से आने वाली ठण्डी कटाबैटिक पवनों से रक्षा करते है। यही कारण है कि इन क्षेत्रों मे कर्क रेखा के उत्तर स्थित भागों तक उष्णकटिबंधीय जलवायु का विस्तार है। थार का मरूस्थल ग्रीष्म ऋतु मे तप्त हो कर एक निम्न वायुदाब केन्द्र बनाता है जो कि दक्षिण-पश्चिमी मानसून हवाओें को आकृष्ट कलता है और जिससे पूरे भारत मे वर्षा होती है।

तापमान से तात्पर्य वायु मे निहित उष्मा की मात्रा से है और इसी के कारण मौसम ठण्डा या गर्म महसूस होता है। वायु मण्डल के तापमान का सीधा संबंध पृथ्वी को सूर्य से प्राप्त होने वाली उष्मा से है। वायुमण्डल का तापमान न सिर्फ दिन और रात मे बदलता है बल्कि एक मौसम से दूसरे मौसम मे भी बदल जाता है। सूर्यातप सूर्य से किरणों के रूप मे पृथ्वी पर आने वाली सौर उर्जा है जो पृथ्वी के तापमान के वितरण को प्रभावित करता है, क्यांकि सूर्यातप की मात्रा भूमध्य रेखा से ध्रवों की तरफ कम होती जाती है। वायुदाब वायु मे निहित वज़न से पृथ्वी की सतह पर पडने वाले दबाव को वायुदाब कहते है। समुद्र स्तर पर वायुदाब सबसे अधिक होता है और उंचाई के साथ इसमे कमी आती जाती है। क्षैतिज स्तर पर वायुदाब का वितरण उस स्थान पर पायी जाने वाली वयु के तापमान द्वारा प्रभावित होता है क्योंकि वायुदाब और तापमान मे विपरीत सम्बन्ध पाया जाता है। निम्न वायुदाब वाले क्षेत्र वो है जहॉं तापमान अधिक होता है और हवा गर्म होकर उपर की ओर उठने लगती है निम्नदाब वाले क्षेत्रों मे बादलों का निर्माण होता है और वर्षा आदि होती है। उच्च वायुदाब वाले क्षेत्र वो है जहां तापमान कम होता है और हवा ठण्डी होकर नीचे की ओर बैठने लगती है। निम्न दाब वाले क्षेत्रों मे साफ मौसम पाया जाता है और वर्षा नही होती वायु हमेशा उच्च दबाव वाले क्षेत्र से कम दबाव वाले क्षेत्र की ओर बहती है।

लॉकडाउन के कारण भगौलिक लाभ

किसी भी प्रकार के प्राकृति/अप्राकृतिक नुकसान/महामारी/आपदा जैसे भूकम्प, ज्वालामुखी, चक्रवात तथा बाढ आदि मे कई प्रकार से जहां एक तरफ भारी नुकसान होता है वहीं दूसरी ओर बहुत सारे लाभ होते है। महामारी के चलते कई प्रकार की औषधियों का आविष्कार/निमार्ण होता है तो ज्वालामुखी तथा भूकम्प से भूगर्भीय धातुओ/गैसों तथा स्थलाकृतिय प्राप्त होती है। बाढ के कारण स्तही व भूमिगत जल मे वद्धि होती है तथा चक्रवात वातावरणीय परिवर्तन मे सहायक होता है। विश्व मे लॉकडाउन के चलते निम्न प्रकार से भौगोलिक लाभ हुआ है।

ग्लोबल वार्मिंग (वैश्विक तापमान)

वर्तमान मे मानवीय गतिविधियों के कारण उत्पन्न ग्रीन हाउस गैसों के प्रभावस्वरूप पृथ्वी के दीर्घकालिक औसत तापमान मे हुई वृद्धि को वैश्विक तापन/ग्लोबल मार्मिंग कहा जाता है। समुद्री जलस्तर मे वृद्धि, ग्लेशियरों का पिघलना, वर्षा प्रतिरूप का बदलना, प्रवाल भित्तियों व प्लैंकटनो का विनाश आदि वैश्विक तापन के संभावित दुष्प्रभावों मे शामिल है। परन्तु लॉकडाउन की स्थिति मे सम्पूर्ण विश्व मे वैश्विक तापन/ग्लोबल मार्मिंग द्वारा होने वाले उपरोक्त विनाशो के न होने की सम्भावना बढती नजर आ रही है। क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग के मुख्य कारण- वैश्विक तापन का प्रमुख कारण मानवीय गतिविधियों के कारण वातावरण मे ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा मे वृद्धि होना है। ग्रीन हाउस गैसों मे मुख्य रूप से कार्बान डाई ऑक्साईड (CO2) मीथेन (CH4) ,नाइट्रस ऑक्साइड (N2O), ओजोन (O2) , क्लोरोफ़लोरों कार्बन (CFCs), आदि गैसे शामिल है। किसी भी ग्रीनहाउस गैस का प्रभाव वातावरण मे उसकी मात्रा मे हुई वद्धि, वातावरण मे उसके रहने की अवधि और उसके द्वारा अवशोषित विकिरण के तरंगर्दर्ध्य (Wavelength of Radiation) पर निर्भर करता है। ग्रीनहाउस गैसों मे कार्बन डाई आक्साईड (CO2) वतावरण मे सर्वाधिक मात्रा मे उपस्थित है। ग्रीनहाउस गैसों उत्सर्जन मुख्यतः जीवाश्म ईंधनो के दहन, उद्योगो, मोटर वाहनो, घानके खोतां, पशुओं की चराई, रेफ्रीजरेटर, एयर-कंडीशनर आदि से होता है। बडी-बडी संस्थाओं/मॉल/होटल /वाहन अन्य सभी प्रकार के वैश्विक तापमान उप्पन्न करने वाले घटक लॉकडाउन मे बन्द पडे है जिसके कारण ग्लोबल वार्मिंग की स्थिति अन्य दिनों की अपेक्षा काफी कम है।

प्रदूषण मे भारी गिरावट

पृथ्वी पर समस्त जीवधारियों मे प्रत्येक प्रकार के प्रदूषण का कारण मानव जगत है जो अपने भौतिक लाभ के कारण प्रकृति के साथ निरन्तर छेड-छाड करता आ रहा है। वो चाहे उपकरण उत्पादन हो या खाद्यय सामाग्री आवगमन हो अथवा स्थिरता प्रत्येक प्रकार से प्रकृति का दोहन करता आ रहा है। परन्तु लॉकडाउन के कारण विश्व मे अधिकांश मानव वर्तमान स्थिति मे प्रकृति को बहुत कम नुकसान पहुचा पा रहा है जिस कारण नाईट्रोजन चक्र व प्रकृतिक प्रदूषण शुद्धिकरण प्रक्रिया सरलता से विधिवत क्रियान्वित है जिस कारण वायु, जल, प्राकृतिक वनस्पति आदि अधिक मात्रा मे प्रभावित है तथा मानवीय प्रदूषण पर काफी नियत्रण होता प्रतीत हो रहा है।

प्राकृतिक स्थलाकृतियों तथा प्राकृतिक संसाधनो मे स्थिरता

मानव प्रथम जीवन काल से ही अपने शारीरिक व भौतिक लाभ हेतु प्राकृतिक वस्तुओ अथवा स्थानों जैसे पेड़, पहाड़, भूमि, मिट्टी, वनस्पति, नदी तथा खाद्यय पदार्थ आदि के स्वरूपों मे अपने अनुसार परिवर्तन करता आ रहा है। परन्तु लॉकडाउन के चलते इन सभी प्राकृतिक संसाधनों की प्रकृति मे परिवर्तन हेतु अस्मर्थ है जिस कारण प्राकृतिक सुन्दरता मे स्थिरता बनी हुई है।

आक्सीज़न उत्पन्नता तथा आक्सीजन नुकासान भरपाई

वर्ष 2019 अमेज़न जंगल मे आग लगने के कारण सम्पूर्ण विश्व को अक्सीजन की उत्पन्नता मे भारी नुकसान हुआ। अमेजन जंगल इतना बडा है कि यदि इसको एक देश बनाया जाये ता विश्व का 9वां बडा देश बन सकता है। अमेजन जंगल विश्व की 20 प्रतिशत आक्सीजन का निमार्ण करता है। जिसके जलने के कारण आक्सीजन की मात्रा मे कमी आयी हैं। मानव द्वारा निरन्तर वनस्पति के काटने व उद्योग धन्धों तथा परिवहन के कारण आक्सीजन की मात्रा मे निम्नीकरण की सम्भावना बढ़ गयी है, मानव का रूकना ही पृथ्वी पर प्रकृति के संरक्षण का कारण बना है। जिसको लॉकडान द्वारा ही किया जा सकता था। चूंकि लॉकडाउन न केवल भारत मे लगा है अपितु विश्व के 195 देशों के अधिकांश हिस्सों मे लगा हुआ है। जिसकारण ऑक्सीजन के नुकसान की भरपाई होने मे सहायता प्राप्त हो रही है।

लॉकडाउन के कारण सामाजिक तथा अन्य लाभ

सभी देशों मे लॉकडाउन शब्द से आश्य सामाजिक गतिविधीयों जैसे आवगमन, व्यपार, भीड़ अथवा समूहिक संगठन धार्मिक/राजनैतिक/सामाजिक/अर्थिक आदि पर प्रतिबन्ध से है। जिस कारण समाज को निम्न प्रकार लाभन्वित हुआ है-

मानवीय रोग-प्रतिरोधक क्षमता मे वृद्धि की सम्भावना

भौतिक विलासिताओं तथा मूलभूत आवश्यकताओं के चलते आज उच्च/मध्यम व निम्न वर्गीय सभी समाज निरन्तर कार्यरत है जिस कारण सही समय पर भोजन तथा भोजन मे विद्यमान पोषक तत्वों को ग्रहण नही कर पाता है साथ ही समय अभाव व सामाजिक दबाव के कारण सही नींद लेने मे भी असमर्थ है। जिस कारण शरीर मे रोग प्रतिरोधक शक्ति निरन्तर कम हो रही है कुछ उच्च वर्गीय, उच्च मध्यम वर्गीय परिवार तो गर्मी की छुट्टियों मे घूमने-फिरने अथवा आराम करने देष-विदेष व अपने फार्महाउस मे चले जाते है जिस कारण उनकी कुछ रोग-प्रतिरोधक शक्ति मे बढोतरी हो जाती है परन्तु मध्यम व निम्नवर्गीय समाज तो दैनिक मूलभूत आवश्यकताओं के कारण अधिकतर कार्यरत ही रहता है परन्तु लाॅकडाउन के चलते सभी लोग छुट्टियों का आनन्द ले रहे है जिससे रोग-प्रतिरोधक क्षमता मे वद्धि की सम्भावना बढ गयी है।

क्षयी प्राकृतिक संसाधनों की बचत

अधिकतर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन मावन जगत द्वारा ही किया जाता है कुछ संसाधन खत्म होने वाले होते है ऐसे संसाधनो को क्षयी अथवा अनवीनीकरण संसाधन कहा जाता है जैसे खनिज, पेट्रोलियम, गैस, पानी, कोयला, वनस्पति, पषु आदि। सम्पूर्ण विष्व मे लाॅकडाउन के कारण इन संसाधनो का कुछ दिनों हेतु ही सही परन्तु संरक्षण मे वद्धि हुई है।

बिजली की उपलब्धता मे वृद्धि

लाकडाउन के चलते अधिकाष बडे उद्योग व संस्थान जो बिजली की खपत बहुत अधिक मात्रा मे करते थे परन्तु लाॅकडान की वजह से बन्द पडें है जिस कारण बिजली की उपलब्धता मे वद्धि हुई है तथा देष के बडे शहरों के साथ कस्बों गाॅवों मे भी बिजली की उपलब्धता बढ़ गयी है।

परिवार एकीकरण

लाकडाउन की घोषणा होते ही अधिकांष मध्यम वर्गीय परिवारों मे जो लोग रोजगार हेतु अपने घर/शहर/राज्य अथवा देष से दूर रहते थे ज्यादातर अपने-अपने परिवारों मे लौट गये है। जिसकारण सभी परिवार के सदस्यों को एक-दूसरे के साथ रहने का अवसर प्राप्त हुआ है। संसाधनों की कमी के चलते कुछ निम्न वर्गीय परिवार जो कभी किसी कारण विषेष अथवा किसी काल खण्ड मे अलग हुए थे एक साथ रहने लगे है। बडी मुसीबत एकता व अखण्डता की जनक है, भारत की स्वतंत्रता जिसका एक उत्तम उदाहरण है

गृह क्लेष तथा व्यसन मुक्ति

कहते है कि बडी मुसीबत छोटी मुसीबतों को नज़र अन्दाज कर देती है जिसका एक उदाहरण लाॅकडाउन के चलते सामने आया है कुछ निम्न वर्गीय परिवार के मुखिया अथवा सदस्य नषे की हालत मे दिन-प्रतिदिन अपने घरों मे मार-पीट व अन्य गृह क्लेष की स्थिति बनाये रखते थे परन्तु अब बाजार मे न तो नषीले पदार्थो की अधिक उपलब्धता है और न ही गृह क्लेष के मामले सामने आये है।

सामाजिक/आर्थिक अपराध मामलों की दर मे गिरावट

सामाजिक/आर्थिक अपराध गतिविधियों जैस हत्या , चोरी, लूट-पाट , मारपीट, अपहरण, बलात्कार अन्य कई प्रकार के सामाजिक/अर्थिक अपराध के मामलों की दर मे लाॅकडाउन के चलते भारी गिरावट आयी है, ऐसा प्रतीत होता है जैसे समाज अपराध मुक्त हो गया हो।

अन्य निम्न लाभ

  1. खाने-पीने की वस्तुओं की महत्वता।
  2. सामाजिक सोहार्द व भाई-चारा मित्रता प्रोत्साहन।
  3. प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष संसाधनों की महत्वता।
  4. शत्रु दबाव से मुक्ति।
  5. परिवहन दुर्घटना से बचाव।
  6. सडक/वाहन टूट-फूट व रखरखाव खर्च मे गिरावट।

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