1980 के दशक में पूर्वांचल बाहुबलियों की गिरफ्त में आ चुका था। यही वह दौर था जब यहां की सियासी दुनिया में इनका प्रवेश हुआ। इसके सूत्रधार थे वीरेंद्र प्रताप शाही और पंडित हरिशंकर तिवारी। खास बात है कि दोनों में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर जमकर अदावत थी, तो दोनों एक ही विधानसभा क्षेत्र चिल्लूपार के रहने वाले थे।

1980 में हुए उपचुनाव में महराजगंज के लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से वीरेंद्र प्रताप शाही निर्दल लड़े और जीते। 1985 में भी चुनाव जीतकर शाही ने राजनीति में अपनी मजबूत दखल दिखाई। 1980 का दशक ऐसा था जब शाही और तिवारी के बीच गैंगवार की गूंज अंतरराष्ट्रीय मीडिया में भी सुनाई देती थी। ब्राह्मण बनाम ठाकुर के समीकरण पर दोनों का साम्राज्य कायम था। रेलवे के ठेके दोनों के लिए अहम थे। 1985 में हरिशंकर तिवारी जेल में रहते हुए चिल्लूपार विधानसभा सीट से चुनाव लड़े और जीत हासिल की।

 
तिवारी 1997 से लेकर 2007 तक लगातार यूपी में मंत्री रहे। इन दोनों की राजनीति में प्रवेश सफल रहने के बाद तो पूर्वांचल की सियासत में आपराधिक छवि वालों का दखल तेजी से बढ़ने लगा। मऊ से मुख्तार अंसारी, वाराणसी से बृजेश सिंह, आजमगढ़ से रमाकांत यादव और उमाकांत यादव ने भी सियासत की दुनिया में प्रवेश पा लिया। अपने रसूख और दमखम के बल पर इन सभी ने अपने क्षेत्र में दबदबा बनाया। 

बेटे विनय ने संभाली हरिशंकर की विरासत
चिल्लूपार से अजेय बन चुके पंडित हरिशंकर तिवारी को वर्ष 2007 व 2012 में पराजय मिली। वर्ष 2017 में बसपा के टिकट पर उनके छोटे बेटे विनय शंकर तिवारी विधानसभा पहुंच गए। हरिशंकर तिवारी के बड़े बेटे भीष्म शंकर उर्फ कुशल तिवारी संत कबीरनगर से दो बार सांसद रह चुके हैं।

श्रीप्रकाश भी आना चाहता था राजनीति में
कुख्यात माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ला भी राजनीति में आना चाहता था। पर, सियासत की दुनिया में वह दाखिल हो पाता इससे पहले ही यूपी एसटीएफ ने उसे मुठभेड़ में मार गिराया। दरअसल, श्रीप्रकाश ने 1996 में लखनऊ में शाही की हत्या कर दी तो इसके बाद आशंका जताई गई थी कि हरिशंकर तिवारी की भी हत्या कर देगा। उस वक्त चर्चा चली थी कि श्रीप्रकाश खुद चिल्लूपार विधानसभा सीट पर कब्जा जमाना चाहता था।
खास बात है कि दोनों में वर्चस्व की लड़ाई को लेकर जमकर अदावत थी, तो दोनों एक ही विधानसभा क्षेत्र चिल्लूपार के रहने वाले थे।