आज़ाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर आज़ाद (Chandra Shekhar Azad) के गोरखपुर सदर सीट से योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) के विरुद्ध चुनाव लड़ने के ऐलान के बाद से ही उनके इस फैसले ने सबका ध्यान खींचा है. गोरखपुर विधानसभा सीट (Gorakhpur Assembly Seat) भारतीय जनता पार्टी के लिए हमेशा से ही ‘सुपर-सेफ’ निर्वाचन क्षेत्र रहा है, जिसपर भाजपा का व्यापक दबदबा है. 1989 के बाद से बीजेपी (BJP) गोरखपुर सीट से सिर्फ एक बार ही हारी है. यह एकमात्र हार 2002 में अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के हाथों हुई थी, लेकिन वह भी पूरी तरह से हार नहीं है. क्योंकि उस वक़्त योगी आदित्यनाथ सांसद थे और उनके समर्थन से ही अखिल भारतीय महासभा के उम्मीदवार डॉक्टर राधा मोहन दास अग्रवाल बीजेपी के उम्मीदवार शिव प्रताप शुक्ला के खिलाफ जीते थे.
गोरखनाथ की भूमि में दलित शक्ति
पिछले कुछ चुनावों में बहुजन समाज पार्टी का प्रदर्शन गोरखपुर सदर सीट पर दलित वोटों की एक साफ़ तस्वीर रखता है. गोरखपुर में अल्पसंख्यक मतदाताओं का बड़ा प्रभाव है. हालांकि बीजेपी का कोर वोटर ज़्यादातर वैश्य, राजपूत, कायस्थ और ब्राह्मण समुदाय से आता है लेकिन गोरखपुर में दलित वोटर्स का साथ भी भाजपा को खूब मिलता आया है. यहां पर चंद्रशेखर की नज़रें उसी दलित वोट बैंक पर है और अगर बसपा भी अपने उम्मीदवार को उस सीट से चुनावी मैदान में उतारती है तो दलित वोट भी यहां पर तीन हिस्सों में बंटने वाला है, जिसका कुल मिला कर फायदा किसी भी दल को नहीं है.