राहुल की दोस्ती का अखिलेश लेंगे परीक्षा… सपाईयों की भी यही इच्छा !
राहुल, अखिलेश की दोस्ती की कसौटी पर खड़े उतरेंगे या नहीं… ये अब तय हो जाएगा !
इस जांच के बाद अखिलेश तय करेंगे… 2024 की लड़ाई में कांग्रेस का साथ देंगे या नहीं ?



बीजेपी को रोकने के लिए यूपी समेत देश में कंम्पलीट विपक्षी एकता के लिए दिमागी कसरत तेज है… ममता बनर्जी तक का सुर कर्नाटक के नतीजों के बाद कांग्रेस पर नरम है….इससे पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी लखनऊ आकर एका की वकालत कर चुके हैं… विपक्षी एकता के इन दावों में कितना दम है, यूपी में इसके पहले लिटमस टेस्ट का वक्त आ गया है… वैसे तो तय है… बीजेपी ये चुनाव जीतेगी… लेकिन इस चुनाव में एक खास बात है… इस चुनाव से ये जाहिर होगा… सत्ताधारी दल बीजेपी से सीधी लड़ाई में सपा का साथ कांग्रेस और बसपा देंगी या मूकदर्शक बनी रहेंगी… इस पर एका की आगे की राह के भी संकेत मिलेंगे…
एमएलसी की विधायक कोटे की दो सीटों पर हो रहे उपचुनाव के लिए 22 मई को नाम वापसी का आखिरी दिन था… किसी ने पर्चा वापस नहीं लिया… लिहाजा, बीजेपी और सपा सीधे तौर पर मुकाबला होगा… बसपा के पास सिर्फ एक और कांग्रेस के पास दो विधायक हैं… ऐसे में उम्मीदवारी के लिए जरूरी दस प्रस्तावक भी दोनों दलों के पास नहीं हैं… ऐसे में इनकी दावेदारी थी भी नहीं…फैसला सामान्य बहुमत यानी 202 वोट से होगा… सत्तारूढ़ बीजेपी गठबंधन के पास 274 विधायक हैं, जबकि सपा गठबंधन के पास सिर्फ 118… हार तय दिखने के बाद भी सपा ने दावेदारी का दांव खेला है… दलित-अति पिछड़ा भागीदारी के संदेश के साथ ही बसपा, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के लिए असमंजस की स्थिति खड़ी कर दी है… सपा यह साबित करने में लगी है कि वो भाजपा के खिलाफ हर हाल में लड़ाई लड़ रही है, लेकिन बाकी विपक्षी दलों का रुख साफ नहीं है… हालांकि, सपा गठबंधन के सामने चुनौती मतदान में सेंधमारी रोकने की भी होगी… पिछली बार सपा झटका खा चुकी है…
बीएसपी और कांग्रेस चुनाव में सपा के खिलाफ रहते हैं या साथ, इससे नतीजों पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा… लेकिन, विपक्षी एकता की कवायद पर उनका रुख क्या है, इसका इशारा जरूर मिलेगा… संख्याबल में प्रतीकात्मक ही सही विपक्ष के तौर पर कांग्रेस-बसपा को भूमिका तय करनी होगी… हालांकि, कांग्रेस से सपा की बेरुखी जारी है… कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के शपथ ग्रहण में सपा का कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं था… इसलिए, साथ खड़ा होने का फैसला कांग्रेस के लिए भी आसान नहीं है… कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि समर्थन के लिए अभी सपा की ओर से कोई संपर्क भी नहीं किया गया है… वहीं, गठबंधन टूटने के बाद सपा को लेकर बसपा की सख्ती अभी बरकरार है… लिहाजा, समर्थन और विपक्षी एकता दोनों की राह कठिन ही है…
वैसे सपा दावा कर रही है… उपचुनाव में उम्मीदवार उतारने को लोकतंत्र बचाने की लड़ाई का नाम दे रही है… बसपा, कांग्रेस के साथ ही बीजेपी के उन विधायकों जिन्हें लोकतंत्र में विश्वास है, उनसे भी मदद मांग रही है… इतिहास में ऐसे उदाहरण हैं जब सत्ता के आधिकारिक उम्मीदवार हार गए… वैसे बसपा विधायक उमाशंकर सिंह ने पूरा मामला पार्टी सुप्रीमो मायावती पर छोड़ दिया है… उन्होंने कहा कि समर्थन का फैसला राष्ट्रीय अध्यक्ष करेंगी… सपा को सस्ते पैतरों से बचना चाहिए… जहां हार तय है वहां दलितों-अति पिछड़ों को लड़ाने का ढोंग कर रहे हैं, जहां जीत तय होती है वहां खास लोगों को टिकट देते हैं…कांग्रेस अभी तक इस पूरे मामले में कोई निर्णय नहीं होने की बात कर रही है… कांग्रेस विधायक दल की अध्यक्ष अनुराधा मिश्रा ने कहा कि अभी परिषद उपचुनाव में भूमिका को लेकर कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है… नेतृत्व का जैसा निर्देश होगा, उसका अनुपालन किया जाएगा…एक तरह से कहने वाले कह रहे हैं… इस उपचुनाव में हिस्सा लेकर अखिलेश कांग्रेस की राजनीति को जांचने का काम कर रही है… वो देखना चाहते हैं… बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में कांग्रेस किसके साथ है…