कहते हैं कि हर कामयाब आदमी की सफलता के पीछे एक औरत का हाथ होता है। तोक्यो पैरालिंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाले गौतमबुद्ध नगर के डीएम सुहास एलवाई की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। उनकी सफलता के पीछे काफी हद तक उनकी पत्नी ऋतु सुहास का भी हाथ है। ऋतु सुहास गाजियाबाद में एडीएम प्रशासन के पद पर तैनात हैं। पति के सिल्वर मेडल जीतने पर वह काफी खुश हैं। वह उनका हर कदम पर साथ देती हैं। वह उनकी प्रैक्टिस का भी पूरा ध्यान रखती हैं।

ऋतु ने बताया कि इस साल 22 जून को लखनऊ से लौटते वक्त आगरा एक्सप्रेसवे पर मेरी गाड़ी का पहिया निकल गया और मैं हादसे का शिकार हो गई। मुझे चोट भी आई। जब हादसा हुआ तब शाम के 7 बज रहे थे। यह समय उनकी प्रैक्टिस का होता है। उनकी प्रैक्टिस खराब न हो जाए इसलिए उन्होंने इस हादसे के बारे में सुहास एलवाई को नहीं बताया। खुद ही सारा इंतजाम किया। वह कहती हैं कि अगर मैं उन्हें हादसे के बारे में बता देती तो वह डिस्टर्ब हो जाते और उनकी प्रैक्टिस मिस हो जाती।

वह कहती हैं कि ऐसी कई छोटी-बड़ी बातों को वह उनकी प्रैक्टिस के आगे नहीं आने देतीं। ऋतु सुहास का कहना है कि उनकी इस जीत में उनके साथ ही पूरे परिवार का त्याग है। आमतौर पर ऑफिस के बाद लोग बाहर खाना खाने, फिल्म देखने और घूमने के लिए जाते हैं। लेकिन हम लोगों ने ऐसा काफी लंबे समय से बंद कर रखा है। घर की किसी भी समस्या में हम उन्हें शामिल नहीं करते थे। हम लोग चाहते थे कि ऑफिस के बाद के शाम के समय में वह केवल खेल पर ही फोकस करें।

ऋतु सुहास और आईएएस सुहास एलवाई

‘हमेशा पैरालंपिक को ही सोचते रहे’
उन्होंने बताया कि सुहास एलवाई पैरालांपिक में देश के लिए खेलने के बारे में हमेशा सोचते रहते थे। इसके लिए उन्होंने कड़ी मेहनत भी की। प्रशासनिक सेवा में होने के बाद भी वह खेलने के लिए समय निकाल ही लेते थे। इस सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने कीमती 6 साल लगाए हैं। इस दौरान वह कभी निराश नहीं हुए। जब वह तोक्यो जा रहे थे तो मैंने उन्हें बस यही कहा था कि नतीजे की चिंता किए बिना वे बस अपना बेस्ट गेम खेलें और उन्होंने वही किया। हर मैच को उन्होंने पूरी क्षमता के साथ खेला।

बेटा अक्सर करता था मिस
ऋतु कहती हैं कि मेरा बेटा साढ़े छह साल का है। शाम के समय जब वह प्रैक्टिस पर चले जाते थे तो वह पापा को बहुत मिस करता था। रात में आते-आते 10 बज जाते थे। अक्सर वह अपने पिता का इंतजार करते करते सो जाता था। कई दिन उसे पिता मिल भी नहीं पाते थे। तोक्यो जाने के बाद से वह उन्हें काफी मिस कर रहा था। वह फोन पर पापा को कहता था कि अभी कितने मेडल और जीतने हैं।

सोशल लाइफ पूरी तरह खत्म
हमें याद है कि कुछ साल पहले दिवाली की पूजा में पूरा परिवार एकसाथ था। पर पूजा करते ही वह किट उठाकर प्रैक्टिस के लिए निकल गए। हर कोई अचंभित रह गया, जबकि सबको उम्मीद थी कि वह सब के साथ दिवाली को सेलिब्रेट करेंगे। वह कभी भी प्रैक्टिस मिस नहीं करते हैं। किट उनकी गाड़ी में होती है। जहां मौका मिल जाता है,वहीं प्रैक्टिस कर लेते हैं।

तला-भूना खाना घर में बनना हो गया था बंद
खेल व फिटनेस की वजह से वह खानपान को लेकर बहुत अलर्ट रहते हैं। बाहर तो वह कुछ भी तला भूना नहीं खाते हैं। घर पर भी उनके खानपान को ध्यान में रखते हुए हम लोगों ने तला भूना बनाना बंद कर दिया था। उनकी डाइट पर मैं विशेष ध्यान देती थी।