विंध्याचल के अखाड़ा घाट पर हुए नाव हादसे में एक ही परिवार व रिश्तेदार से जुड़े छह लापता हैं। ये हादसा नहीं होता अगर नाविक दर्शनार्थियों की बात मान लेता। बारिश होने के दौरान परिजनों के मना करने के बाद भी नाविक का अति उत्साह हादसे वजहों में से एक रहा। हादसे में बचे राजेश, विकास और उमेश ने बताया कि नाविक को तैरना भी नहीं आता था। यही कारण ही कि वह दूसरों को बचाने के बजाय खुद ही बाहर आने के लिए हाथपांव मारने लगा। गंगा में नावों के संचालन पर रोक है। इसके बावजूद नावें चल रही हैं। न तो पुलिस को परवाह है और न जिला प्रशासन को।
जिला पंचायत की अपर मुख्य अधिकारी नीतू सिसोदिया ने बताया कि गंगा में नाव संचालन पर रोक लगी थी। जिला पंचायत में 50 नाव पंजीकृत हैं। जानकारी मिली है कि उसे चलाने वाला नाविक नाबालिग है। उसकी नाव के लाइसेंस को निरस्त करने की कार्रवाई की जाएगी।
बता दें कि मां विंध्यवासिनी का दर्शन करने से पहले अखाड़ा घाट से स्नान करने के लिए झारखंड से आए दर्शनार्थियों का परिवार गंगा पार गया था। गंगा पार स्नान करने के बाद सभी नाव से इस पार आने वाले थे। तभी तेज हवा के साथ बारिश होने लगी। दर्शनार्थियों ने बारिश बंद होने के बाद चलने की बात कही, पर नाविक अति उत्साह में था। उसने दर्शनार्थियों की बात को नहीं माना। मना करने के बाद भी वह नाव लेकर चलने लगा। आगे की स्लाइड्स में देखें…
दरअसल मामले में हर स्तर पर अनदेखी की गई। बाढ़ के चलते गंगा में नाव के संचालन पर रोक है। गंगा का जलस्तर घटने के बाद भी नाव संचालन की अनुमति नहीं दी गई है। इसके बावजूद सभी घाटों पर नावों का संचालन हो रहा है। जिला पंचायत में सिर्फ 50 नावें ही पंजीकृत हैं लेकिन अकेले विंध्याचल में इससे अधिक नावों का संचालन हो रहा है। इसी तरह चुनार, भटौली, नेवढ़ियां व अन्य घाटों को जोड़ लें तो जिले में 300 से अधिक नाव संचालित की जा रहीं।
जिस नाव से हादसा हुआ वह जिला पंचायत में पंजीकृत है। उसके संचालन पर न तो जिला पंचायत ने रोक लगाई और न ही पुलिस ने रोका। जिला पंचायत की अपर मुख्य अधिकारी नीतू सिसोदिया का कहना है कि गंगा में नाव संचालन पर रोक है। जिला पंचायत में 50 नाव पंजीकृत हैं। जानकारी मिली है कि उसे चलाने वाला नाविक नाबालिग है। उसकी नाव के लाइसेंस को निरस्त करने की कार्रवाई की जाएगी।
गंगागा किनारे बसे शहर मिर्जापुर के लिए पुल भले बन गया पर कई घाटों पर नौका संचालन यातायात का प्रमुख साधन है। एक बड़ी आबादी नाव के जरिये गंगा पार करती है। इसके अलावा विभिन्न घाटों से नाव चलाई जाती है। इसमें विंध्याचल में आने वाले दर्शनार्थियों को नाव ही सहारा है। दिन प्रतिदिन नावों की संख्या भी घाटों पर बढ़ती जा रही है, पर नावों पर सुविधा के लिए जरूरी साजो सामान नहीं है।
पहले लोग बाजार से पुराने ट्यूब को ही खरीद कर उसमें हवा भरकर नाव पर रखते थे। अब लाइफ जैकेट आदि तरह-तरह के संसाधन आ गए हैं, पर किसी भी नाव पर ये जरूरी सामान नहीं रहता।
विंध्याचल में अक्सर गंगा में डूबने की और नाव हादसों को देखते हुए जल पुलिस का गठन किया गया है। लेकिन घाट पर तैनात की गई जल पुलिस सिर्फ कागजों पर है। दो से तीन वर्ष पूर्व एडीज जोन ने विंध्याचल दर्शन-पूजन के दौरान पत्रकार वार्ता में नाव हादसे और डूबने की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए जल पुलिस के गठन करने का निर्देश दिया था। जिसके बाद पक्का घाट पर जल पुलिस का बोर्ड आदि लगा दिया गया, पर किसी की तैनाती नहीं की गई।
बीते वर्षों में विंध्याचल और अन्य घाटों पर नाव हादसों और डूबने की कई घटनाएं हो चुकी हैं। इसके बाद भी जिला प्रशासन ने कोई सबक नहीं लिया। इससे हादसों का सिलसिला जारी है। 2012 में देहात कोतवाली के नेवढ़िया में एक परिवार में शादी थी। बहू के आने पर आरपार की माला करने के लिए गंगा पार गए थे। नाविक उनको लेकर नेवढ़िया घाट से चील्ह के बल्ली परवा जा रहा था। जैसे ही नाव बल्ली परवा घाट के पास पहुंची कि ओवरलोड होने के कारण पलट गई। हादसे में एक परिवार के तीन महिलाओं सहित आठ लोगों की डूबकर मौत हो गई थी।
इसी तरह से पांच अगस्त 2014 को वाराणसी के बेटावर से चुनार गांगपुर घाट आते समय एक ओवरलोड नाव पलट जाने से 20 लोग डूब गए। नाव पर कुल 34 लोग सवार थे। 14 लोगों को बचा लिया गया। हादसे में गांगपुर की आठ छात्र-छात्राओं की जान गई थी। 2016 में चील्ह के दलापट्टी घाट पर दलापट्टी से नारघाट जाते समय ओवरलोड नाव पलट गई। नाव पर 20 से अधिक यात्री सवार थे। नाव पर सवार कुछ लोगों ने प्रयास कर सभी को बचा लिया।
नाव हादसे में डूबे परिजनों के लिए गुहार और पुकार लगाते हुए राजेश, दीपक और विकास हालत देख वहां मौजूद हर कोई कोई द्रवित हो गया। राजेश की तो दो बच्चियों अल्का और रितिका को बचा लिया गया था, पर दीपक का दो माह का पुत्र और विकास का पांच वर्ष का पुत्र सत्यम तीन वर्ष के पुत्र शौर्य गंगा में समा गए। इसके अलावा तीनों की पत्नियां भी गंगा में डूब गईं। दीपक का रो-रो कर यही कह रहा कि हमारे लल्ला को भगवान बचा ले।