यह पहली बार हुआ है जब यूपी में किसी डीजीपी की ऐसे विदाई हुई हो। किसी डीजीपी पर अकर्मण्यता का आरोप लगाते हुए सीधे डीजी नागरिक सुरक्षा के पद पर भेजा गया है। इससे पहले कई डीजीपी हटाए गए लेकिन उन्हें अकर्मण्यता के आरोप के चलते सीधे नागरिक सुरक्षा के पद पर नहीं भेजा गया। सपा सरकार में वर्ष 2013 में मुकुल गोयल को एडीजी कानून-व्यवस्था बनाया गया था। चुनाव के दौरान पुलिस के मुखिया की जो नेतृत्व क्षमता दिखनी चाहिए थी, वह न दिखने के कारण शासन नाराज चल रहा था।

बता दें कि कल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) मुकुल गोयल को हटाकर डीजी नागरिक सुरक्षा के पद पर भेज दिया। उन्हें शासकीय कार्यों की अवहेलना करने, विभागीय कार्यों में रुचि न लेने और अकर्मण्यता के चलते हटाया गया है। डीजीपी का कार्यभार नए डीजीपी की तैनाती तक एडीजी कानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार को सौंप दिया गया है। डीजी नागरिक सुरक्षा पद पर कार्यरत बिश्वजीत महापात्रा को डीजी कोऑपरेटिव सेल के पद पर भेजा गया है। 

सपा राज में विवादों में आए थे मुकुल 
मुकुल गोयल वर्ष 2006 में सपा शासनकाल में हुए सिपाही भर्ती घोटाले में भी विवादों में रहे थे। उन पर आरोप थे कि उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री और शासन में बैठे अधिकारियों के इशारे पर भर्तियां की थीं। मायावती ने सरकार बनाने के बाद मामले की जांच सौंपी थी। बसपा शासनकाल में 23 वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को निलंबित किया गया था। कार्रवाई होने से पहले ही मुकुल केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर चले गए थे। सहारनपुर एसएसपी रहते हुए एक नेता की हत्या के बाद हुए बवाल में मुकुल गोयल को निलंबित कर दिया गया था। ललितपुर थाने में रेप की घटना, महिला को निर्वस्त्रत्त् करके पीटने का मामला सामने आने पर सीएम उनसे नाराज थे।

शासन से अच्‍छे नहीं रह गए थे रिश्‍ते 
विभाग में हमेशा ऐसी अकटलें लगाई जाती रहीं कि डीजीपी मुकुल गोयल के शासन के साथ रिश्ते अच्छे नहीं हैं। इन अटकलों को उस समय बल मिला जब पिछले दिनों उन्होंने लखनऊ हजरतगंज कोतवाली का निरीक्षण किया। उन्होंने प्रभारी इंस्पेक्टर के कार्यों पर नाराजगी जताते हुए उन्हें हटाने का निर्देश दिया लेकिन अंतत: इंस्पेक्टर को नहीं हटाया गया। इस घटना के कुछ ही दिनों बाद मुख्यमंत्री ने सभी जोन, रेंज और जिलों के पुलिस अधिकारियों को अपने विवेक से काम करने और साफ-सुथरी छवि के पुलिस कर्मियों को ही फील्ड में महत्वपूर्ण तैनाती देने का निर्देश दिया था। तब यह माना गया था कि यह निर्देश डीजीपी को ही ‘संदेश’ देने के उद्देश्य से दिया गया। इसी तरह कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर मुख्यमंत्री की वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान डीजीपी की अनुपस्थिति भी चर्चा का विषय बनी थी। इसमें अपर मुख्य सचिव गृह अवनीश कुमार अवस्थी और एडीजी कानून-व्यवस्था प्रशांत कुमार मौजूद थे, जबकि डीजीपी लखनऊ में मौजूद होने के बावजूद इसमें शामिल नहीं हुए थे। आईपीएस अफसरों के तबादलों में हो रही देरी को भी डीजीपी से शासन की नाराजगी से जोड़कर देखा जा रहा था। विधानसभा चुनाव के बाद से ही पुलिस कमिश्नरेट समेत जोन, रेंज व जिलों में तैनात कई अफसरों का तबादला संभावित है।

डॉ.डीएस चौहान डीजीपी बनने की रेस में सबसे आगे
डीजीपी मुकुल गोयल को हटाए जाने के बाद नई तैनाती को लेकर अटकलों का बाजार गरम हो गया है। डॉ. डीएस चौहान को डीजीपी पद की रेस में सबसे आगे माना जा रहा है। डॉ. डीएस चौहान के पास उत्तर प्रदेश सतर्कता अधिष्ठान के निदेशक का भी कार्यभार है। डीजीपी पद से हटाए गए मुकुल गोयल 1987 बैच के आईपीएस हैं। डीजी प्रशिक्षण डॉ. आरपी सिंह, डीजी नागरिक सुरक्षा बिश्वजीत महापात्रा, डीजी सीबीसीआईडी गोपाल लाल मीना भी वर्ष 1987 बैच के हैं। इसके बाद वर्ष 1988 बैच में पांच आईपीएस हैं, जिसमें वरिष्ठता क्रमांक में डॉ. राज कुमार विश्वकर्मा सबसे ऊपर हैं। वह उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष हैं। इसके बाद वरिष्ठता क्रमांक में डीजी इंटेलीजेंस डॉ. देवेन्द्र सिंह चौहान हैं। इसी बैच के तीन अन्य अफसरों में से अनिल कुमार अग्रवाल केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर हैं, जबकि आनंद कुमार डीजी जेल और विजय कुमार डीजी होमगार्ड्स के पद पर कार्यरत हैं। प्रदेश सरकार के पास वर्ष 1987 व 1988 बैच के अफसरों में से ही किसी एक को डीजीपी नियुक्त करने का विकल्प मौजूद है। नियमित नियुक्ति के लिए प्रदेश सरकार को वरिष्ठता के आधार पर पैनल बनाकर केंद्र सरकार के पास भेजना होगा।