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बीएसपी में कद्दावर नेता एक ऐसे ट्रेंड के साथ चलने का प्रयास कर रहे हैं… जिसका आभास मायावती को हो गया… मायावती समझ गई पार्टी के अंदर बैठे बसपाईयों के मन में इस वक्त क्या है… उन नेताओं के दिल ने मायावती से क्या उम्मीदें पाल रखी है… मायावती हैं कि उस रास्ते अब चलने के लिए तैयार नहीं है… अब बीएसपी प्रमुख मायावती की ओर से बीएसपी के अंदर बैठे नेताओं में बेचैनी है… वो इस सोच से जूझ रहे हैं करे तो क्या करे… कौन सा रास्ता अख्तियार करे… दावा किया जा रहा है… इस वक्त बीएसपी में कई ऐसे नेता हैं… जो बीएसपी को छोड़कर जाने का मन बना चुके हैं… कहा तो ये भी जा रहा है… इन नेताओं को जिन पार्टियों को अपने लिए ठिकाना बनाना है… उन पार्टियों के नेताओं से बात भी कर ली है… अब इन्हें इंतजार है… तो बीएसपी प्रमुख मायावती के उस फैसले का है… जिसे मायावती ने नहीं लेने का मन बना लिया है…


बीएसपी के अंदर बैठे इन नेताओं की आंखों के सामने मुस्लिम नेता इमरान मसूद की वो राजनीति है… जिसके दम पर उन्होंने कांग्रेस में शानदार एंट्री पायी… इमरान इसे अपनी घरवापसी बता रहे हैं… दो महीने पहले तक वो बीएसपी में ही थे…. बीएसपी का अनुशासन तोड़ने के नाम पर मायावती ने उन्हें बीएसपी से बाहर कर दिया… उन्हें मायावती (Mayawati) ने बीएसपी के टिकट पर सहारनपुर से चुनाव लड़ने का वादा भी किया था… अभी लोकसभा में बीएसपी के 9 सांसद हैं…. पिछले चुनाव में पार्टी के 10 सांसद चुने गए थे लेकिन अदालत से सजा होने के बाद अफजाल अंसारी की सदस्यता ख़त्म हो गई है…. कहने को इमरान मसूद को बीएसपी से निकाला गया लेकिन इसकी स्क्रिप्ट उन्होंने खुद तैयार की… बीएसपी में रहते हुए वो कांग्रेस नेता राहुल गांधी की लगातार तारीफ़ कर रहे थे, जबकि मायावती ने इमरान मसूद के मीडिया में बयान देने पर रोक लगा दी थी… इमरान मसूद बार-बार कह रहे थे कि बीजेपी के विरोध की राजनीति में सबसे ऊपर राहुल गांधी हैं… मायावती उनसे पहले से नाराज थीं और इमरान के राहुल के गुणगान वाले बयानों ने तो आग में घी का काम किया…


इमरान मसूद ने कांग्रेस में अपनी घरवापसी को शक्ति प्रदर्शन बना दिया है… 500 से भी ज्यादा गाड़ियों के क़ाफ़िले के साथ वो देवबंद से दिल्ली पहुंचे… अब इमरान कह रहे हैं…. मुसलमानों के लिए कांग्रेस ही एकमात्र विकल्प है… यदि मुसलमान कांग्रेस में लौट आए तो ब्राह्मण, दलित और पिछड़े भी साथ हो जायेंगे… इमरान मसूद की तरह ही बीएसपी के कुछ सांसद भी उनकी ही राह पर हैं… ऐसे सांसद अपने लिए ऐसी ही पटकथा रच रहे हैं… इन नेताओं का चाल चलन ऐसा है कि कोई और दौर होता तो मायावती उन्हें पार्टी से बाहर कर चुकी होतीं… ये नेता चाहते हैं कि इमरान की तरह मायावती उन्हें भी पार्टी से निकाल दें… ऐसा होने पर वो इन आरोपों से बच जायेंगे कि उन्होंने मायावती के साथ धोखा किया… वो बीएसपी से मुक्ति के रास्ते तलाश रहे हैं लेकिन मायावती का फ़ार्मूला उनके लिए यही है कि फैसला न लेना भी एक बड़ा फैसला है…


बीएसपी अध्यक्ष मायावती (Mayawati) अगला लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का फ़ैसला कर चुकी हैं… उन्होंने इंडिया गठबंधन और एनडीए से बराबर की दूरी बनाए रखने का एलान किया है… उनकी यही रणनीति अब बीएसपी सांसदों के लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गई है… बीएसपी के मुस्लिम नेता भी उतने ही परेशान हैं… हालात ऐसे बन रहे हैं कि अगर मायावती अपने फैसले पर अड़ी रहीं तो फिर चुनाव से पहले पार्टी में भगदड़ मच सकती है…लोकसभा चुनाव में यूपी में एक तरफ एनडीए तो दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार होंगे… ऐसे में तीसरी ताकत बीएसपी के लिए चुनावी मुकाबला बहुत कठिन हो सकता है… बीएसपी के सांसदों को लग रहा है कि मायावती की पार्टी से अगला चुनाव जीतना कठिन ही नहीं नामुमकिन है… गिरीश चंद्र जाटव को छोड़ कर बाकी सभी सांसद इंडिया गठबंधन से चुनाव लड़ने के लिए गोटी सेट कर रहे हैं… अमरोहा से बीएसपी सांसद दानिश अली का मन अपनी पार्टी के बदले कांग्रेस में लगता है… लोकसभा में बीजेपी सांसद से हुए विवाद के बाद राहुल गांधी समेत विपक्ष के कई नेता उनके घर पहुंचे लेकिन मायावती से अब तक उनकी मुलाकात नहीं हो पाई है… टीवी न्यूज चैनल पर बयान देने के कारण मायावती ने धर्मवीर चौधरी को पार्टी से निकाल दिया लेकिन दानिश अली और मलूक नागर तो आए दिन मीडिया में बयान देते हैं, उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती है… नागर यूपी के बिजनौर से लोकसभा सांसद हैं… अनुशासन को लेकर कठोर मानी जाने वाली मायावती इन मामलों को लेकर मुलायम हो गई हैं…


बीएसपी के 9 में से 8 सांसद ऐसे हैं जो इंडिया गठबंधन के किसी न किसी पार्टी के संपर्क में हैं… कोई समाजवादी पार्टी से तार जोड़े हुए है तो कुछ कांग्रेस से तो एक नेता आरएलडी से टिकट के जुगाड़ में हैं…


बीएसपी में आम तौर पर चुनाव से बहुत पहले ही उम्मीदवार घोषित कर देने की परंपरा रही है… मायावती (Mayawati) जिसे टिकट देना चाहती हैं उसे लोकसभा प्रभारी बना दिया जाता है… फिर वो नेता अपने इलाके में चुनाव प्रचार में जुट जाता है… बाद में बीएसपी की तरफ से उसे उम्मीदवार घोषित कर दिया जाता है… इस बार बीएसपी ने अब तक किसी को भी लोकसभा प्रभारी नहीं बनाया है…. पश्चिमी यूपी में जहां पिछली बार चार सांसद चुने गए थे पार्टी को चुनाव लड़ने वाले नेता नहीं मिल रहे हैं… बीएसपी के मंडल कॉर्डिनेटर परेशान हैं कि मज़बूत नेता चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हैं… मायावती को तलाश दमदार मुस्लिम उम्मीदवारों की है… लेकिन मुस्लिम नेताओं की पसंद इंडिया गठबंधन है…