- JNU के छात्रों का ‘विवेक’ खत्म !
- छात्रों के विचार का हो गया सत्यानाश !
- JNU में विचारद्रोही जिंदा है !
- स्वामी विवेकानंद की मूर्ति से छेड़खानी
जेएनयू में ऐ वामी विचार वालों ये सुन लो….तुम जब ये कहकर सड़कों पर उतरे थे…. तुम्हारी जिंदगी… तुम्हारे सपनों… तुम्हारे अपनों… तुम्हारी महत्वाकांक्षाओं पर चोट हुआ है… फीस बढ़ाकर तुम्हारी उड़ान को रोकने की कोशिश की गई है…. तुम्हारें परों को कतरा गया है…. तो देश ने तुम्हारे पक्ष में आवाज उठाई थी…. विरोध के स्वर में अपना विरोध दर्ज कराया था… तुम्हारी नम आंखों में समाए दर्द को महसूस किया था…. लेकिन जब हवा तुम्हारे पक्ष में बहने लगी…. तुम तो भौंकाली दिखाने लगे…. भइया तुम तो एहसानफरामोश निकले…. भाईया तुम तो सीधा ही लोकतंत्र के धर्मग्रंथ पर अटैक कर दिए…. तिरंगे का अपमान कर दिया…. शर्म नहीं आती है…. जिस देश का खाते हो… उसी देश के खिलाफ अपनी मनमानी के लिए अजब गजब, बेहद ही शर्मनाक सोच की नुमाइश करते हो…. लाल किले पर तिरंगा हटाकर लाल सलाम का झंडा फहराओंगे…. शर्म नहीं आती… जिसे झंडे के लिए एक अरब की आबादी अपने प्राणों की आहुति देने के लिए हर वक्त तैयार रही है…. उसी तिरंगे की जगह लाल सलाम को जिंदा रखने के लिए लाल किले पर लाल झंडा फहराओगे…. क्या तुम्हारे ऊपर बुद्धिजीवी होने का दंभ इस कदर हावी हुआ… कि तुम अहंकारी हो गए हो….. भइया समझ लौ, नाश हो जाएगा… जब नाश मनुज पर छाता है… पहले विवेक मर जाता है….और अहंकार ही अहंकार छा जाता है
गजब का इतिहास रहा है इस जेएनयू की मिट्टी का… लेकिन तुम्हारी सोच में गिरावट आती है…. देश बेचैन होने लगता है…. तुम्हें अपने इतिहास पर गर्व है…. हमे भी अपने देश के कर्णधारों पर गर्व है…. आवाज उठाना है…. तो सिस्टम के खिलाफ उठाओं…. लेकिन जाने क्यों तुम्हारे निशाने पर पूरा देश आ जाता है…. अब देख लेख जेएनयू कैंपस में देश की प्ररेणा को ही खत्म करने की कोशिश तुमने कर दी…. जिस स्वामी विवेकानंद ने दुनिया में देश का मान मर्दन किया…. भारत के अदभ्य और अटूट स्वाभिमान का एहसास करया… अपनी रचना के मर्म में खो जाने के लिए मजबूर कर दिया… सनातन के सत्य में डूबने के लिए ना सिर्फ भारत पूरे ब्रह्मांड को खो जाने के लिए मजबूर कर दिया…. उसी विवेकानंद की मूर्ति पर तुमने तोड़कर गुस्ताखी कर दी… गद्दारी कर दी….. तुम क्या समझते मूर्ति को तोड़कर उनके फैलते विचारों को खत्म कर दोगे… अगर इस मुगालते में हो… गफलत में हो…. अंधविश्वास में जी रहे हो…तो निकल आओ बाहर…. पहले आग उलगते हो… लेकिन जब तुम्हारे आग पर पानी डाला जाता है… तो गिरगिट की तरह रंग बदल लेते हो… दयापात्र बन जाते हो…. अपनी गरीबी की बात कहकर चीख चिल्लाते हो… लेकिन सरकार के विरोध के नाम पर हजारों की ये बर्बादी क्या कहलाती है… कहने को तो बहुत कुछ… बहुत कुछ देश बोल सकता है… लेकिन जरा खुद आत्ममंथन करने की जेहमत उठाओं… तुम जिस देश का खा रहे हैं… क्या उसके नमक का फर्ज अदा कर रहे हैं… भईया नमक हलाल कभी बनोगे क्या