बीजेपी और RSS क्यों कह रही है मुलायम तो अपने हैं ?
अखिलेश की नजर क्या बीजेपी की इस रणनीति पड़ गई ?

अखिलेश की ‘प्रेरणा’ को कब्जे में करने का बीजेपी प्लान… ‘सम्मान’ देकर कर रहे ऐलान !
मुलायम को था अखिलेश की राजनीति पर विश्वास… अब मुलायम के नाम को अखिलेश से छीनने के लिए बीजेपी तैयार !
अखिलेश सपा को राष्ट्रीय राजनीति के पटल पर ले जाने के लिए रास्ता बना रहे हैं… यूपी में बीजेपी यादव वोटर्स को संदेश देने में लग गए !


मैनपुरी के रण में सबने देख लिया… सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव की सियासी विरासत पर किसका अधिकार है… सबने जान लिया मुलायम की सियासत का असली वारिश सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ही है… अखिलेश के साथ जो भी जुड़ा है… मुलायम की राजनीति के मुरीद वोटर्स… फिर चाहे उसमे यादव समाज हो… या मुसलमान… सबका मत अखिलेश के समर्थन में गया… लेकिन मोदी-शाह की बीजेपी को लगता है… मुलायम की सियासत को अपनी ओर टर्न किया जा सकता है… अपने पक्ष में लिया जा सकता है… इसलिए बीजेपी की राजनीति की रणनीति कब्जे की लड़ाई में जुट गई है…


बीजेपी अब तक विरोधी पार्टियों के गढ़ो पर अपना कब्जा करने का प्रण लेती रही है… उसमे सफल भी हुई है…. फिर गांधी परिवार को उसके गढ़ अमेठी से बेदखल करना हो… या फिर सपा को अपने गढ़ आजमगढ़ और रामपुर में मात देना हो… बीजेपी इसमे कामयाब रही है… अब इसी राह में एक नई तरकीब अपनाई है… उस राह पर बीजेपी आगे बढ़ी है…विरोधी पार्टियों की प्रेरणा को अपने पाले में करने में जुट गई है… उनके नाम को अपनी राजनीति से जोड़ने के काम में दिख रही है… मुलायम के नाम को अपनी झोली में डालने के लिए… उसे छीनने के लिए बीजेपी और आरएसएस चल पड़ी है…. ये बताने… संदेश देने में लग गई है… मुलायम तो उनके हैं… ये कह रहे हैं… इसे समझने के लिए इस रिपोर्ट को अंत तक जरूर देखिए…


दरअसल आरएसएस ने 12 मार्च को आरएसएस की तीन-दिवसीय सालाना आमसभा हरियाणा के समालखा में शुरू हुई… जिसमें संगठन ने ऐसे राजनीतिक नेताओं और प्रख्यात हस्तियों को श्रद्धांजलि दी, जिनका पिछले एक साल में निधन हुआ है… अब जिन नेताओं को श्रद्धांजलि दी गई है, उस सूची में मुलायम सिंह यादव समेत 100 से ज्यादा नाम शामिल हैं… इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां हीराबेन मोदी और अभिनेता-फिल्म निर्माता सतीश कौशिक भी शामिल हैं… बैठक के पहले सत्र में आरएसएस के महासचिव दत्तात्रेय होसबले ने पिछले एक साल में काल के गाल में समा चुकी प्रतिष्ठित हस्तियों के नाम पढ़े…
अब ये बात कोई ढकी छिपी नहीं है कि मुलायम सिंह यादव ने अपने पूरे सियासी सफर के दौरान आरएसएस की विचारधारा और बीजेपी का विरोध किया था… 80 और 90 के दशक में जब अयोध्या आंदोलन अपने चरम पर था, तब मुलायम सिंह ने दक्षिणपंथी संगठनों की खुलकर आलोचना की थी… वहीं, दूसरी तरफ मुलायम सिंह यादव भी अपनी राजनीतिक पारी के दौरान हमेशा बीजेपी के निशाने पर रहे, उन्हें बीजेपी अयोध्या के विलेन के तौर पर पेश करती रही… ऐसा नहीं है कि आरएसएस ने मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि देकर कोई लीग से हटकर काम किया है, बल्कि इससे पहले केंद्र की मोदी सरकार ने इस साल की शुरुआत में मुलायम सिंह यादव को मरणोपरांत पद्मविभूषण से सम्मानित करने का ऐलान किया था….


अब ये सब क्यों हो रहा है वो भी समझिए… दरअसल यूपी में 2022 का विधानसभा चुनाव जीतने के बाद रिकॉर्ड बनाने वाली बीजेपी की निगाहें अब 2024 के लोकसभा चुनावों पर हैं… बीजेपी का लक्ष्य यूपी की 80 सीटें हैं ताकि पार्टी पीएम मोदी को लगातार तीसरी बार भारत का प्रधानमंत्री बना सके… ऐसे में भारत सरकार की तरफ से दिए जाने पद्म पुरस्कारों में मुलायम सिंह यादव का नाम होना कहीं न कहीं इस बात की ओर इशारा कर रहा है कि कहीं बीजेपी इसका भी सियासी फायदा उठाने की तैयारी में तो नहीं है…मुलायम सिंह यादव को पद्म विभूषण से सम्मानित करने का फैसला और अब RSS की बैठक में उनकी श्रद्धांजलि कहीं यादव वोट बैंक को तो ध्यान में रखकर नहीं लिया गया? यह सवाल इसलिए भी अहम है क्योंकि यूपी में 19 फीसदी मुस्लिम वोट बैंक के बाद समुदाय के स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा वोट बैंक यादवों का है…. सीएसडीएस के मुताबिक, यूपी में 11 फीसदी यादव वोटर्स हैं. लोकनीति-सीएसडीएस के पोस्ट पोल सर्वे के मुताबिक, 2019 के लोकसभा चुनावों में जब अखिलेश और मायावती ने मिलकर महागठबंधन बनाया था तब उन्हें 60 फीसदी यादव वोट मिले थे. वहीं बीजेपी को 23 फीसदी यादवों ने वोट किया था….


गौरतलब है कि बीते साल 10 अक्टूबर को मुलायम सिंह यादव का लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया था… पद्म सम्मान देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों में से एक हैं और यह तीन श्रेणियों- पद्म विभूषण, पद्म भूषण और पद्म श्री में प्रदान किए जाते हैं… यही सम्मान मुलायम को मोदी सरकार ने दिया… देखने वाली बात है… बीजेपी की ओर से अब मुलायम पर वार उस तरह से नहीं किया जाता है… जैसे अटल-आडवाणी के राजनीतिक दौर में किया जाता था… मोदी सरकार आने के बाद बीजेपी ने अपनी रणनीति बदली उन्होंने मुलायम सिंह यादव पर अटैक के बजाय सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव की राजनीति पर निशाना साधा… जिसका सीधा मतलब निकलता है बीजेपी जानती है… मुलायम को सम्मान देकर यादव वोटर्स को अपने पाले में लिया जा सकता है… और इस प्रयास में बीजेपी निकल पड़ी है….