बसपा का दलित-मुस्लिम गठजोड़ असर दिखाया तो पूर्वांचल की सियासी तस्वीर बदल सकती है। इस क्षेत्र की कई लोकसभा सीटों पर दलित और मुस्लिम निर्णायक भूमिका में हैं। बसपा ने भविष्य में इस गठजोड़ के जरिए बसपा ने धमाकेदार उपस्थिति दर्ज करने का सपना संजोया है।
सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के आजमगढ़ संसदीय क्षेत्र से इस्तीफा देने के बाद यहां उपचुनाव होना है। वहां उम्मीदवार स्थानीय होगा या सैफई परिवार का, इस पर चर्चा चल रही है। इस बीच बसपा ने न सिर्फ मुबारकपुर से विधायक रहे गुड्डू जमाली की पार्टी में वापसी की है बल्कि उन्हें लोकसभा उपचुनाव के लिए प्रत्याशी भी घोषित कर दिया है। इसे बसपा की भविष्य की सियासी रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है।
उपचुनाव के बाद वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव में भी बसपा ने इसी रणनीति को अपनाया तो सपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। क्योंकि सपा का मूल वोटबैंक भी मुस्लिम है। बसपा की इस रणनीति को लेकर सपा खेमे में भी हलचल दिख रही है।
आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र का जातीय गणित
आजमगढ़ लोकसभा क्षेत्र में करीब 19 लाख मतदाता हैं। इसमें करीब साढे़ तीन लाख यादव और मुस्लिम व दलित तीन-तीन लाख हैं। शेष अन्य जाति के हैं। दलितों में बसपा का मूल वोटबैंक माने जाने वाले जाटवों की संख्या अधिक है। ऐसे में बसपा की रणनीति है कि मुस्लिम व दलित एकजुट होकर सपा के सियासी रथ को रोक सकते हैं। इसके लिए गुड्डू जमाली फिट बैठते हैं। क्योंकि वह बसपा के टिकट पर वर्ष 2012 व 2017 में विधायक रहे हैं।
पर, चुनाव से ठीक पहले वह बसपा से नाता तोड़कर सपा में चले गए थे लेकिन सपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया। ऐसे में वह असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम के टिकट पर चुनाव में उतरे और 37 हजार वोट हासिल करने में कामयाब रहे। बसपा ने जमाली की वापसी कर मुस्लिमों का हमदर्द होने का संदेश दिया है। बसपा ने कहा कि जब भी मुस्लिम सपा की ओर से रुख करते हैं तो भाजपा को जीत मिलती है। इसलिए बसपा उपचुनाव से ही सपा खेमे में किसी न किसी कारण क्षुब्ध रह रहे नेताओं को अपने पाले में करने में जुटी है।
गुड्डू जमाली से रोचक होगा उपचुनाव
गुड्डू जमाली 2014 में आजमगढ़ से बसपा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे। इससे सपा के मुलायम सिंह यादव और भाजपा के रमाकांत के साथ त्रिकोणीय मुकाबला हुआ। मुलायम को 3.30 लाख, रमाकांत को 2.77 लाख और गुड्डू को 2.66 लाख वोट मिला। इस तरह गुड्डू तीसरे स्थान पर रहे। इससे पूर्व वर्ष 2009 में यहां बसपा के अकबर अहमद डम्पी को 1.99 लाख वोट मिला था और भाजपा के रमाकांत 2.47 लाख वोट पाकर विजयी हुए थे। इस तरह देखा जाए तो वर्ष 2014 में गुड्डू बसपा का वोटबैंक बढ़ाने में कामयाब रहे। वर्ष 2019 में सपा-बसपा गठबंधन में अखिलेश यादव को 6.21 लाख और भाजपा के दिनेश लाल यादव को 3.61 लाख वोट मिले थे।
मगर बदली परिस्थितियों में रमाकांत यादव अब सपा में हैं और फूलपुर पवई से विधायक हैं। राजनीति की सियासी नब्ज पर नजर रखने वालों का कहना है कि बदली परिस्थितियों में आजमगढ़ उपचुनाव काफी रोचक हो गया है। बसपा ने गुड्डू जमाली की उम्मीदवारी का एलान कर दिया है। भाजपा से यादव बिरादरी का उम्मीदवार उतरा तो सपा के लिए यह सीट चुनौतीपूर्ण हो जाएगी। यहां के उपचुनाव का असर वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव पर पड़ना स्वाभाविक है।
पूर्वांचल पर भी दिखेगा बसपा की रणनीति का असर
बसपा हमेशा से दलित-मुस्लिम गठजोड़ की हिमायती रही है। बीच में उसने दलित-ब्राह्मण कार्ड चला, जिसका नतीजा रहा कि मुस्लिम धीरे-धीरे शिफ्ट होते गए। अब एक बार फिर वह 2007 जैसी तैयारी की दुहाई दे रही है। इसका असर पूरे पूर्वांचल में दिख सकती है। वर्तमान में पार्टी के 10 सांसदों में तीन मुस्लिम है। पूर्वांचल में आजमगढ़ ही नहीं जौनपुर, गाजीपुर, घोसी, वाराणसी, मिर्जापुर, भदोही, बहराइच सहित कई सीटों पर बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता हैं।
इन जिलों में आबादी की स्थिति देखें तो जौनपुर के करीब 15 लाख मतदाता में से 2.20 लाख मुस्लिम और यादव व दलित 2.50-2.50 लाख हैं। गाजीपुर जिले में 41.94 लाख में चार लाख यादव, 3.50 लाख दलित और दो लाख मुस्लिम हैं। घोसी में 16 लाख में से 4.30 लाख दलित, 2.72 लाख चौहान, और 2.42 लाख मुस्लिम है। वाराणसी में करीब 15 लाख में से तीन लाख मुस्लिम, 1.50 लाख यादव व एक लाख दलित मतदाता हैं। बहराइच के करीब 24 लाख मतदाता में से आठ लाख मुस्लिम और चार लाख दलित हैं। इसलिए दलित वोटबैंक के साथ मुस्लिमों की एकजुटता सियासी गणित को उलझाती रही है।