अमित शाह ने शुक्रवार को यहां भाजपा के सदस्यता अभियान की शुरुआत के साथ ही कार्यकर्ताओं को विधानसभा चुनाव प्रचार अभियान की दिशा समझा दी। महंगाई, किसान आंदोलन व कोरोना प्रबंधन पर उठने वाले सवालों पर चल रहे असमंजसपूर्ण माहौल के बीच उन्होंने साफ कर दिया कि 2022 के चुनावी समर में भाजपा यूपी के आत्मसम्मान व पहचान के मुद्दे को लेकर जनता के बीच जाएगी। इन पर बचे कामों को पूरा करने के लिए जनता से समर्थन मांगेगी।
लोगों को भाजपा और गैर भाजपा की सरकारों का फर्क समझाकर उनके दिल में यह बात बैठाने का प्रयत्न होगा कि गैर भाजपा सरकारों के द्वारा प्रदेश की पहचान से हुए खिलवाड़ पर विराम लगाकर योगी सरकार ने किस तरह उत्तर प्रदेश के आत्मसम्मान व पहचान की वापसी के लिए काम किया। पर, अभी तमाम काम अभी बाकी है जिसके लिए 2022 में भी भाजपा की सरकार जरूरी है ।
कुछ इस तरह बिसात
गृहमंत्री ने खुद यह कहते हुए कि वह 2022 के चुनाव अभियान की शुरुआत करने आए हैं, जिस तरह हिंदुत्व के सरकारों से जुड़े स्थलों की पहले हो रही उपेक्षा और अब दिए जा रहे सम्मान का हवाला दिया, उससे साफ हो गया है कि उत्तर प्रदेश की पहचान के मुद्दे के सहारे भाजपा हिंदू आस्था से जुड़े स्थलों को लेकर गैर भाजपा सरकारों की उपेक्षापूर्ण नीति को मुद्दा जरूर बनाएगी । यह कहते हुए कि वह यहां आए हैं तो यह स्मरण कराना जरूरी समझते हैं कि 2017 के पहले लोग भूल गए थे कि उत्तर प्रदेश बाबा विश्वनाथ और भगवान राम, कृष्ण, भगवान बुद्ध, महाराजा सुहेलदेव और कबीर की भूमि है ।
लोगों को इसका एहसास केंद्र में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री और प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद होना शुरू हुआ । आज अयोध्या में दिवाली हो रही है तो काशी में देवदीपावली और मथुरा में होली, तो यह साफ हो गया कि भाजपा ने 2022 के चुनावी तरकश में राम, कृष्ण और बाबा विश्वनाथ के सम्मान के मुद्दे वाले ब्रह्रास्त्र इस बार भी रख लिए हैं । उन्होंने यह कहकर कि प्रदेश में भाजपा ने सिद्ध किया है कि सरकारें परिवारों के लिए नहीं बल्कि गरीब से गरीब व्यक्ति के लिए होती हैं, यह भी साफ कर दिया कि भाजपा के चुनावी असलहों में भ्रष्टाचार व परिवारवाद पर प्रहार के साथ गरीबों के लिए भाजपा सरकारों के कामों को शामिल कर चुनावी बिसात पर विपक्ष को निशाना बनाया जाएगा ।
सपा पर सर्वाधिक निशाना
शाह के निशाने पर वैसे तो कांग्रेस और बसपा भी रहे लेकिन उन्होंने ज्यादातर हमलों का फोकस सपा मुखिया अखिलेश पर ही रख साफ कर दिया कि मुख्य प्रतिद्वंदी सपा ही है । वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल कहते हैं कि यह प्रदेश की पहचान और आत्सम्मान के मुद्दे को धार देने की शाह की कोशिश ही है जो उन्होंने मोदी व योगी सरकार के काम भी गिनाए और विपक्ष को नाकारा साबित किया । मनोविज्ञान का यह प्रमुख सूत्र है कि लोगों को अगर उनके अतीत के कष्ट याद दिला दिए जाएं तो उन्हें वर्तमान की खूबियों और बदलाव का एहसास ठीक से होने लगता है । शाह ने 2017 से पहले प्रदेश की अर्थव्यवस्था सातवें नंबर पर होने की याद दिलाते हुए आज इसके दूसरे स्थान पर होने तथा 2022 में फिर से भाजपा को बहुमत मिलने पर 2027 तक पहले स्थान पर पहुंचाने की बात कही ।
स्थिरता से लेकर वादों पर अमल का भरोसा
राजनीतिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि राजनीतिक दलों के लिए जनता में विश्वास के लिए नीति, निर्णय, नीयत पर स्पष्टता के साथ नेतृत्व को लेकर भी तस्वीर भी साफ रहनी चाहिए । उन्होंने जहां 2017 के घोषणापत्र के 90 प्रतिशत से अधिक पूरे होने तथा शेष पर तेजी से काम चलने के उल्लेख के साथ अनुच्छेद-370 से लेकर राममंदिर निर्माण की भाजपा की प्रतिबद्धता का संदेश दिया वहीं, नरेन्द्र मोदी को 2024 में प्रधानमंत्री बनाने के लिए 2022 में प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को जरूरी बताया। अब इनके जरिये भाजपा, करीने से विपक्ष के विरोध व हमलों के सहारे चुनावी लड़ाई को 60 बनाम 40 बनाने की कोशिश करेगी। भाजपा को पता है कि उसकी चाल पर विपक्ष का चुप रहना मुश्किल होगा । उसे हमला करना ही होगा । जिन हमलों को लाभ भाजपा अपने वोटों को एकजुट करने के लिए कर सकेगी ।