मायावती का सामने आया फैक्ट… बीएसपी-जेडीएस की सियासत सेम ट्रैक पर
कर्नाटक में कांग्रेस ने बीजेपी का वो हाल किया… जैसा बीजेपी और सपा ने यूपी में बीएसपी के साथ किया
कर्नाटक में जेडीएस का वैसा ही हाल… जैसा यूपी में जनता ने किया BSP के साथ


ये हम क्यों कह रहे हैं… क्योंकि आकड़े कुछ ऐसी ही कह रहे हैं… आंकड़े गवाही दे रहे हैं… यूपी में जैसा हाल बीजेपी ने बसपा के साथ किया… वैसा ही कर्नाटक में कांग्रेस ने जेडीएस के साथ हुआ… अब ये आंकड़ा सामने आया तो बीएसपी प्रमुख मायावती कुछ सोच तो जरूर रही होगी…. कर्नाटक चुनाव के नतीजे सबके सामने हैं…. कांग्रेस ने राज्य में प्रचंड बहुमत हासिल कर बीजेपी को सत्ता से बेदखल कर दिया है… इन सबके बीच कर्नाटक में जनता दल (सेकुलर) के प्रदर्शन की चर्चा तेज है… दरअसल, जेडी (एस) ने पिछली बार के मुकाबले इस बार खराब प्रदर्शन किया है… पिछली बार की तुलना में इस बार जेडी (एस) के वोट शेयर और सीटों गिरावट दर्ज की गई है…. अब सियासी गलियारे में जेडी (एस) के प्रदर्शन की तुलना उत्तर प्रदेश की बहुजन समाज पार्टी से हो रही है… कभी प्रदेश में राज करने वाली बसपा को 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में मात्र एक सीट पर जीत हासिल हुई थी…. साथ ही बसपा के वोट शेयर में भी भारी गिरावट दर्ज की गई थी… इस रिपोर्ट में आगे जानिए कर्नाटक की जेडी (एस) और यूपी की बसपा किन मामलों में एक समान हैं…
जेडी (एस) ने कर्नाटक में पिछले पांच चुनावों में अपना दूसरा सबसे खराब प्रदर्शन दर्ज किया है…. किंगमेकर के रूप में उभरने की पार्टी की उम्मीदों पर कांग्रेस पार्टी की शानदार जीत ने पानी फेर दिया है…. इस बार
जेडी (एस) सिर्फ 19 सीटें जीत सकी है, जो 2018 की उसकी 37 सीटों का आधा है… सिर्फ13.3 प्रतिशत वोट शेयर दर्ज किया है… वहीं, जेडी (एस) का 2004 में 20.8 प्रतिशत वोट शेयर था, जिसमें भारी गिरावट आई है… GFX OUT
जेडी (एस) की स्थिति उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के समान दिख रही है… दरअसल, बसपा का वोटशेयर GFX IN 2002 में 23.1 प्रतिशत से घटकर 2022 में 12.9 प्रतिशत हो गया… बसपा द्वारा जीती गई सीटों का प्रतिशत इसी अवधि में 24.3 प्रतिशत से घटकर 0.2 प्रतिशत तक सिमट गया…2017 में 19 सीटें जीतने वाली बसपा 2022 में महज एक सीट ही जीत सकी थी

जेडी (एस) और बसपा गौड़ा और मायावती के नेतृत्व में परिवार की ओर से नियंत्रित है… दोनो ही बड़े पैमाने पर एक विशेष जाति या समुदाय, वोक्कालिगा और दलितों की अगुवाई करते हैं… हालांकि, जेडी (एस) के विपरीत, बसपा ने अपने सुनहरे दिनों में पूरे राज्य में उपस्थिति दर्ज की थी, जबकि गौड़ा के नेतृत्व वाली पार्टी मुख्य रूप से राज्य में केवल एक क्षेत्र तक ही सीमित है… बसपा और जेडी (एस) उत्तर प्रदेश और कर्नाटक की राजनीति में त्रिकोणीय मुकाबले की स्थिति में फले-फूले हैं… 1990 के दशक से 2017 के चुनावों से पहले तक बसपा किंगमेकर थी, जिसने सभी मुख्य पार्टियों- समाजवादी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस के साथ सरकारें बनाईं या गठबंधन किया… सिर्फ मैदान में होने से बसपा को दलितों के अपने मूल आधार में अन्य अल्पसंख्यकों, ओबीसी और उच्च जाति के मतदाताओं के एक वर्ग को जोड़ने में मदद मिली है…
वही अपने गठन के बाद से जेडी (एस) ने इसी तरह कांग्रेस और भाजपा दोनों के साथ मिलकर सरकारें बनाई हैं… पार्टी औसतन 30 से 40 सीटें जीतती थी और किंगमेकर की भूमिका निभाते हुए 2004 और 2018 के बीच चार चुनावों में तीन बार त्रिशंकु विधानसभा के लिए मजबूर किया. वोक्कालिगा, एक प्रभावशाली समुदाय होने के नाते, अल्पसंख्यकों और दलितों के एक वर्ग को जेडी (एस) की ओर खींचने में भी सक्षम रहा है…
हालांकि, दोनों पार्टियों को सबसे बड़ा झटका इस बात से लगा है कि कर्नाटक और यूपी में मुकाबला तेजी से बाइपोलर हो गया है… न तो जेडी (एस) और न ही बसपा, भाजपा विरोधी मतदाताओं में विश्वास जगा सकी है…. कांग्रेस और सपा अपने-अपने राज्यों में मुख्य चुनौती बनकर उभरी हैं…इस प्रकार अल्पसंख्यकों, दलितों और अगड़ी जातियों का एक वर्ग जेडी (एस) से दूर कांग्रेस में चला गया है… यहां तक कि वोक्कालिगा समाज का 8 फीसदी वोट का एक वर्ग कांग्रेस में ट्रांसफर हो गया… उन्होंने डीके शिवकुमार में एक मुख्यमंत्री की उम्मीद देखी है…. इसी तरह, यूपी में, अल्पसंख्यक, ओबीसी और गैर-जाटव दलित बसपा से सपा और भाजपा में चले गए हैं…