उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को टक्कर देने के इरादे से बसपा सुप्रीमो मायावती बड़ा दांव चलने वाली हैं। मायावती चुनाव में अपने पूर्व के सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले पर काम कर रही हैं और इसी रणनीति के तहत वह सवर्ण प्रत्याशियों को टिकट देने पर जोर दे रही हैं। बसपा प्रमुख मायावती उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव के लिए सवर्ण जातियों के करीब 40 उम्मीदवारों को टिकट देने के पक्ष में हैं। बता दें कि यूपी में अगले साल फरवरी-मार्च में विधानसभा चुनाव होंगे, जहां विधानसभा सीटों की संख्या 403 है। 

बसपा के एक अहम सूत्र ने कहा कि मायावती द्वारा सवर्ण जाति के सदस्यों को दिए जाने वाले टिकटों की संख्या विरोधी दलों द्वारा किए गए उम्मीदवारों की पहचान को देखते हुए हो सकती है। यानी विरोधी के दांव को देखते हुए सवर्णों को टिकट देने की संख्या में अधिक-कम हो सकता है। माना जाता है कि मायावती के पास सभी निर्वाचन क्षेत्रों में अनुसूचित जातियों का एक मजबूत और वफादार कैडर है और उनमें वोटिंग पैटर्न को प्रभावित करने की भी क्षमता है। 

फिलहाल, बसपा जातियों की सोशल इंजीनियरिंग में लगी हुई है। खासकर विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अनुसूचित जाति और ब्राह्मणों का एक संयोजन बनाने के लिए बसपा मंथन कर रही है। सोशल इंजीनियरिंग को ध्यान में रखते हुए ही इसने राज्य भर में ब्राह्मण समुदाय के कई सम्मेलन आयोजित कराए हैं। हालांकि, बसपा का भूमिहार और वैश्य समुदायों सहित अन्य सवर्ण जातियों पर भी फोकस है। यहां नहीं भूलना होगा कि उत्तर प्रदेश में 2009 के विधानसभा चुनावों में बसपा के सोशल इंजीनियरिंग प्रयोग ने पार्टी को अपने दम पर सत्ता में आने में मदद की थी।

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव में मुकाबला चौतरफा हो गया है। एक ओर जहां भाजपा और उसके सहयोगी हैं, वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी और उसके सहयोगी और फिर बसपा और कांग्रेस भी अलग-अलग हैं। कांग्रेस दलित वोट बैंक पर फोकस कर रही है, मगर बसपा भी इस बात से अनजान नहीं है। इधर, भाजपा ने भी अधिकांश पिछड़ी जातियों और अनुसूचित जातियों के कुछ वर्गों के बीच भी सेंध लगाई है। इधर, समाजवादी पार्टी भी मुस्लिम वोटों को हथियाने की कोशिश कर रही है, जिस वोट बैंक में बीएसपी का भी पूर्व में प्रभाव रहा है।