खेत खलिहान के बीच दो तीन छोटी-छोटी झोपड़ियां… चटाई पर बिखरे देसी बम… बारूद के ढेर पर खड़ा एक शख्स… ये तस्वीरें आगरा के उस गांव की हैं… जो बारूद के ढेर पर बसा है… एक छोटी सी चिंगारी पूरे गांव को राख कर सकती है… थोड़ी सी लापरवाही से गांव में सिर्फ मातम और लाशें ही लाशें बिछी होंगी… बच्चे, महिलाएं और बुजुर्ग यहां बारूद से खेलते हैं… चलिए अब आपको इस गांव की पूरी कहानी बताते हैं… एत्मादपुर तहसील के धोर्रा और नगला खरगा गांव में देसी बम बनाने का काम धड़ल्ले से चल रहा है… दिवाली से तीन महीने पहले ही यहां देसी बम बनाने के काम शुरू हो जाता है… वैसे तो प्रशासन की मानें तो इन गांवों में कई लाइसेंस की बात की जाती है… लेकिन जानकारी है कि इन दोनों गांव में करीब एक दर्जन से अधिक लोग बारूद का काम करते हैं… ये इन ग्रामीणों का कोई शौक नहीं बल्कि रोजी रोटी कमाने का एक जरिया है

गांव के कुछ परिवार और उनके परिवार के बच्चों से लेकर महिलाएं और बुजुर्ग तक यहां अपना जीवन यापन करते हैं… गांव के बाहर खेतों में बने कुछ मकानों में देसी बम बनाने का काम चल रहा है… पहले की अगर बात करें तो यहां कई हादसे हो चुके हैं… बारूद का काम कर रहे ग्रामीण हादसों शिकार हुए लेकिन फिर भी बारूद से मौत का खेल ग्रामीण आज भी खेल रहे हैं… ग्रामीणों की मानें तो वो सालों से इस काम को कर रहे हैं… अभी दिवाली का त्यौहार है उसके बाद शादियों में भी आतिशबाजी के लिए बारूद भरने का काम यहां के ग्रामीण करते हैं… वहीं पुलिस का कहना है कि गांव का दौरा किया गया था… लाइसेंस के अनुसार मानकों के हिसाब से लोग काम कर रहे हैं लेकिन फिर अगर कोई हादसा होता है तो कौन जिम्मेदार होगा ?