• बार-बार अपने फैसले को क्यों बदलती मायावती ?
  • पहले हटाना, फिर बैठाना ये फैसला क्या कहलाता है ?
  • मायावती अपने ही लिए फैसले का क्यों करती विरोध ?
  • ऐसे फैसले को पलटेंगी तो जनता कैसे करेगी विश्वास ?

विधानसभा उपचुनाव में बीएसपी को यूपी में जबसे जबरदस्त मात मिली है… तबसे लगता है… बीएसपी हताशा के दौर से गुजर रही है…. ये भी लगता है… खुद बीएसपी सुप्रीमो मायावती हताश और परेशान हैं… शायद इसलिए ऐसा फैसला लिया… जो उनके ही फैसले का विरोध है… सरासर विरोध है…. कैसे… समझिए…. दरअसल बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने अमरोहा से सांसद दानिश अली को फिर से लोकसभा संसदीय दल का नेता बना दिया है…. मायावती ने कभी दानिश को हटाकर उनकी जगह जौनपुर से सांसद श्याम सिंह यादव को संसदीय दल का नेता बनाया था…. अब श्याम को हटाकर फिर से दानिश को तवज्जो दी गई है… है ना बीएसपी में घोर कन्फ्यूजन… एक फैसले पर जब मायावती ने दूसरा फैसला लिया….वहां तक तो ठीक है…. अब दूसरे फैसले को उलटकर फिर से पहले फैसले पर आ जाना…. कितना सही है… ये कही सही दिखता नहीं है… बीएसपी प्रमुख मायावती जिनके लिए सियासी चक्रव्यूह रची थी… आज अपने ही चक्रव्यूह में फंसकर रह गई…. ये कहने वाले कहते है… राजनीति बदलाव या कहे परिवर्तन को मानती है… परिवर्तन सियासी सृष्टि के लिए अहम नियम है… लेकिन परिवर्तन भी तो परिवर्तन जैसा होना चाहिए….. दिखना चाहिए… जो फैसला लिया गया वो परिवर्तनकारी है…. लेकिन दानिश अली को बीएसपी ने जिस पद पर बैठाया है… उस पद से करीब 3 महीने पहले उन्हें बेदखल कर दिया गया था… फिर से उसी पद लाना जेहन के अंदर जा नहीं पा रहा है

गौरतलब है कि  दानिश पूर्व प्रधानमंत्री व जनता दल सेक्युलर के नेता एचडी देवगौड़ा के सहयोगी रह चुके हैं…वो लोकसभा चुनाव 2019 के दौरान मार्च में बीएसपी में शामिल हुए थे… आर्टिकल 370 के तहत जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा छिनने के बाद दानिश अली की राय पार्टी लाइन से अलग थी… ऐसे में मायावती ने उन्हें लोकसभा में संसदीय दल के नेता पद से हटा दिया था… उस दौरान बीएसपी नेता सतीश मिश्रा ने राज्यसभा में मोदी सरकार का समर्थन किया था …और दानिश लोकसभा में ऐसा करने से हिचक रहे थे…उस दौरान दानिश अली पार्टी हलकों में तर्क दिया था कि बीएसपी को राज्यसभा में इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए… ऐसे में पार्टी ने फैसला किया था कि चर्चा के दौरान उन्हें सदन में नहीं भेजा जाएगा..यही नहीं दानिश अली ने ट्रिपल तलाक बिल का भी विरोध किया था

सूत्रों के हवाले से ये भी खबर है… दिल्ली में जब बीजेपी के अपने दोस्तों के साथ दानिश मिले… तो उस दौरान रामपुर उपचुनाव पर अपने दिल की बात कही… बीएसपी प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार नहीं करने के लिए जाने पर तर्क दिया… वो वहां इसलिए नहीं गए… कि उन्हें भनक थी क्या होने वाला है…. अगर सूत्रों की बात को सच मान लिया जाए… तो क्या दानिश अली पर फिर से मायावती का भरोसा करना सही है…. या फिर जल्दबाजी में लिया गया ये फैसला है….  मायावती के इस फैसले में विश्वास से ज्यादा सिर्फ कन्फ्यूजन ही दिखता है… मायावती ऐसे ही अगर कन्फ्यूजन फैसला लेते रहेंगी… तो फिर कैसे 2022 मिशन को कामयाब कर पाएंगी