सपा जिलाध्यक्ष फिरोज खान के इस तल्ख अंदाज को देखिए…. क्या कहेंगे… कुछ तो कहेंगे… जरूर कुछ ना कुछ अपनी बात रखेंगे… अगर इस अंदाज को देखेंगे… तो खुद ब खुद पता चल जाएगा… एक व्यक्ति में कई व्यक्तित्वों के मिश्रण से दो व्यक्तित्व निकला है… एक तरफ दबंगई है… तो दूसरी ओर आंखों से निकलता आंसू है…. एक तरफ नियम कायदों का सरेआम उल्लंघन हैं.… तो दूसरी तरफ राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सहारा लेकर सांकेतिक विरोध है…. एक तरफ हिंसा का खुला रूप है… खादी के रसूख में बहकर हिंसक बनने की प्रवृत्ति है…. तो दूसरी ओर गांधी के अहिंसक विचार की पूर्ति है.,… तो कैसे सपा जिलाध्यक्ष फिरोज खान… जो गांधी जयंती पर कभी अहिंसक दिखे थे… आज अचानक से कैसे हिंसक बन गए… क्या वो सब एक महज ड्रामा था… नेताओं के बारे में वैसे भी कहा जाता है… वो जैसा दिखते हैं… वैसा होते नहीं… जो नहीं दिखते हैं… वही वो होते हैं…..तो क्या फिरोज खान का यही असली रूप है… कही वो बहरूपिया तो नहीं हैं…
ये हम यूं ही नहीं कह रहे हैं…. इसमे सच्चाई है इसलिए तो कह रहे है…. अब अगर माननीय थाने में घुसकर दबंगई दिखाएंगे…. तो हम सवाल तो उठाएंगे ही…. कानून की धज्जियां उड़ाएंगे… तो फिरोज खान को अब जवाब देना ही होगा… सवाल हम पूछ रहे हैं… क्या आपका ये मिजाज नकली था… असली तो ये है… एक मासूम की मौत बड़ी बात है… सवाल उठाना आपका जायज हक था… दायित्वों का बोध कराना आपका अधिकार था…. लेकिन ये तरीका सिरे से खारिज है… आप गुंडे तो नहीं है… बवाली तो नहीं है… आप हैं… तो एक नेता ही… फिर क्यों ऐसा रूप दिखाया… कोतवाली में कोतवाल कक्ष में घुसकर नगर पालिका के ईओ से फिरोज खान ने अभद्रता की… जमकर हंगामा काटा…कोतवाल और कोतवाली में मौजूद पुलिसकर्मियों ने कक्ष से नगरपालिका के ईओ को निकाला… ये अधिकार तो फिरोज खान के पास नहीं था… फिर किस अधिकार से किया…. ये अच्छी बात है… कि एक बच्चे की नाले में डुबकर हुई मौत को उन्होंने संजीदगी से लिया… लेकिन विरोध का ये तरीका क्या सही है…. जिम्मेदारों को सजा मिलनी चाहिए… लेकिन नियम कायदों को तोड़कर क्या समाज सही ढर्रे पर चल सकता है…