बिहार से जातीय सर्वे की उठी लहर के बाद आज पूरा देश भले जातीय सर्वे की बात करने लगा है… लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जातीय सर्वे की हालत अब जिस पेड़ की टहनियों पर बैठे हैं… उसी पर कुल्हाड़ी मारने वाली जैसी हो गई हैं… जातीय सर्वे के बाद कई जातीय नेता उठ खड़े हुए कि ‘मेरी जाति को कमतर आंका गया है… इधर बिहार में दलित राजनीति का स्वर भी उठने लगा है… मौजूदा सर्वे में बिहार की दलितों की संख्या करीब 20 फीसदी आंकी गई है… इस सर्वे रिपोर्ट के आने के बाद दलित नेताओं ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग शुरू कर दी गई है… पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने सबसे पहले अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि हम ने तो पहले ही कहा था कि दलितों को आबादी के अनुसार हिस्सेदारी नहीं मिल रही है… 16 प्रतिशत के झूठे आंकड़े से दलितों का काफी नुकसान हुआ है
वहीं आदिवासी की भी जनसंख्या लगभग दो प्रतिशत आंकी गई है… अब तो दलित और आदिवासी नेताओं ने सत्ता और नौकरी में अपना प्रतिशत 22 बताते हुए कहा कि सरकार को आरक्षण नीति में बदलाव कर आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाना होगा…जदयू सांसद सुनील कुमार पिंटू ने कहा कि सरकार ने तेली समाज का गलत आंकड़ा जारी किया है… हम अलग से तेली समाज का गणना कराएंगे… इसके बाद फैक्ट के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से समाज का एक प्रतिनिधिमंडल मिलेगा और अपनी मांग को रखेगा.. हमारी आबादी 2.81 नहीं, बल्कि 5 प्रतिशत है… बाकी निर्णय मुख्यमंत्री लेंगे… इसके बाद मुख्यमंत्री हमारी बात को नहीं मानते हैं तो तेली समाज की एक बड़ी बैठक होगी… इसके बाद समाज निर्णय लेगा कि क्या करना है…
जेडीयू नेता दावा कर रहे है… शिवहर में तो सभी 6 के 6 विधानसभा से तेली समाज के उम्मीदवार चुनाव जीत चुके हैं… इसके अलावा सीतामढ़ी, नवादा, गया, बेतिया में भी बड़ी आबादी है…अति पिछड़ों की आबादी सबसे अधिक 36 प्रतिशत बताई गई है… मगर, उनके बीच से भी विरोध के स्वर उठ रहे हैं… जदयू के प्रदेश महासचिव प्रगति मेहता ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर धानुक जाति की आबादी की ठीक से गिनती न करने की शिकायत की है… अति पिछड़ों की एक जाति है अमात… गणना में इसकी आबादी दो लाख 85 हजार हजार बताई गई है…खुद को इस जाति का नेता बताने वाले भानु प्रकाश राय कहते हैं- उत्तर बिहार में अमात जाति की आबादी 30 लाख से अधिक है। राज्य सरकार ने जाति आधारित गणना के नाम पर घोटाला किया है
पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने कहा कि जातीय सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद सत्ता से जुड़ी चुनिंदा जातियों को छोड़ कर लगभग सभी जातियों के लोग ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं… पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा और जदयू के एक सांसद सहित अनेक लोग सर्वे के आंकड़ों को विश्वसनीय नहीं मान रहे हैं… वहीं दूसरी तरफ सर्वे की विश्वसनीयता जनता का मुद्दा बन गया है… जातीय सर्वे पर सवाल उठाने वाले कह रहे हैं… वैश्य, निषाद जैसी कुछ जातियों के आंकड़े 8-10 उपजातियों में तोड़ कर दिखाए गए… ताकि उन्हें अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास नहीं हो… वैश्य समाज की आबादी 9.5 फीसद से अधिक है, लेकिन यह सर्वे में दर्ज नहीं हुआ… जाति-धर्म के वो लोग वर्तमान सत्ता के साथ हैं, उनकी संख्या को बढ़ा-चढ़ा कर दिखाया गया और उपजातियों के आंकड़े कम दिखाए गए… सर्वे में ग्वाला, अहीर, गोरा, घासी, मेहर , सदगोप जैसी दर्जन-भर यदुवंशी उपजातियों को एक जातीय कोड ‘यादव’ देकर इनकी आबादी 14.26 फीसद दिखाई गई… कुर्मी जाति की आबादी को भी घमैला, कुचैसा, अवधिया जैसी आधा दर्जन उपजातियों को जोड़ कर 2.87 फीसद दिखाया गया…वहीं वैश्य, मल्लाह, बिंद जैसी जातियों को उपजातियों में खंडित कर इऩकी आबादी इतनी कम दिखायी गई कि इन्हें अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास नहीं हो? बनिया जाति की आबादी मात्र 2.31 फीसद दिखाने के लिए इसे तेली, कानू, हलवाई, चौरसिया जैसी 10 उपजातियों में तोड़ कर दिखाया गया… अगर उपजातियों को जोड़कर एक कोड दिया गया होता, तो बनिया की आबादी 9.56 प्रतिशत होती… मल्लाह जाति को 10 उपजातियों में तोड़ कर इनकी आबादी 2.60 फीसद दर्ज की गई… उपजातियों को जोड़ने पर मल्लाह जाति की आबादी 5.16 फीसद होती… नोनिया जाति की आबादी 1.9 प्रतिशत दर्ज हुई, जबकि इनकी बिंद, बेलदार उपजातियों को जोड़ कर आबादी 3.26 प्रतिशत होती है,,, ऐसा लग रहा है… जातीय सर्वे के कारण विरोधियों के साथ अपनों के निशाने पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार आ गए हैं… अब देखने वाली बात है… इस चक्रव्यूह से वो कैसे निकलते हैं…