जनसत्ता पार्टी लोकतांत्रिक के अगुवा राजा भैया ने ये साबित कर दिया… वो जिसके साथ रहते हैं… उसकी राजनीति को कितनी मिलती है धार ?
अगर खिलाफ हो गए तो उनकी राजनीति कितनी हो जाती है बेहाल ?… 2024 में बीजेपी ने देख लिया राजा भैया की राजनीति में कितना है दम
अखिलेश ने वक्त रहते समझ ली बात… लेकिन अब तक लगता है ना तो बीजेपी को समझ आयी राजा भैया की सियासी ताकत…. और ना ही अनुप्रिया पटेल, राजभर
अनुप्रिया ने लोकसभा चुनाव से पहले कौशांबी की एक चुनावी सभा में बिना नाम लिए राजा भैया पर हमला बोला था। कहा था ‘लोकतंत्र में राजा, रानी के पेट से नहीं पैदा होता है… अब राजा ईवीएम की बटन से पैदा होता है… स्वघोषित राजाओं को लगता है कि कुंडा उनकी जागीर है… इस टिप्पणी का असर था कि अपना दल NDA के तहत मिली दो सीटों में एक सीट हार गई। अनुप्रिया को भी मीरजापुर सीट बचाने के लिए आखिरी दम तक संघर्ष करना पड़ा… राजा भैया के असर वाली प्रतापगढ़, कौशांबी, प्रयागराज के साथ आस-पास की भी सीटें भी NDA के हाथ से निकल गईं… रघुराज प्रताप सिंह के करीबी और जनसत्ता दल के एमएलसी अक्षय प्रताप सिंह लोकसभा चुनाव परिणामों के कई दिन बाद कहा था कि अनुप्रिया ने टिप्पणी किसी के कहने पर पर की थी… उन्होंने ये भी कहा था कि किसी के भी कहने पर उन्हें ऐसा नहीं बोलना चाहिए था… राजा भैया के समर्थक हर वर्ग के लोग हैं। अक्षय के मुताबिक नाराजगी अभी शांत नहीं हुई है… आगे भी इसका असर देखने को मिलेगा…
वैसे कुंडा और राजा भैया पर टिप्पणी करने वाली अनुप्रिया पहली नेता नहीं हैं… पहले कई बड़े नेता कुंडा और राजा भैया को लेकर चुनावी जनसभाओं में टिप्पणी करते रहे हैं… और इसका खामियाजा उन्हें उठाना पड़ा… 1996 में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कुंडा में भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में जनसभा को संबोधित करते हुए राजा भैया का बिना नाम लिए उन्हें कुंडा का गुंडा बोला था… इसके बाद वहां से बीजेपी प्रत्याशी की जमानत जब्त हो गई थी… 2017 में अखिलेश यादव ने राजा भैया पर टिप्पणी की, ‘कुंडा में कुंडी लगा देंगे।’ इसके बाद सपा भी सरकार से बाहर हो गई थी… कुल मिलाकर कह सकते हैं… राजा भैया की राजनीति में दम तो है… उनकी सियासी ताकत को इग्नोर नहीं किया जा सकता है…