उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़े बदलाव के आसार हैं। सियासी गलियारों में अटकलें लगाई जा रही हैं कि समाजवादी पार्टी के दिग्गज नेता आजम खान का खेमा पार्टी से नाराज है। खबर है कि यह नाराजगी इस हद तक बढ़ चुकी है कि खान पार्टी छोड़ने पर भी विचार कर सकते हैं। फिलहाल, वह रामपुर से सपा विधायक हैं और सीतापुर जेल में बंद हैं। उन्होंने जेल से ही 2022 विधानसभा चुनाव लड़ा था।

आजम खान के मीडिया सलाहकार फसाहत खान उर्फ शानू के बयानों के बाद इस तरह की अटकलें लगाई जाने लगी थी। रविवार को रामपुर में हुई पार्टी की बैठक में उन्होंने कहा था, ‘मुख्यमंत्री योगी का बयान सही था कि अखिलेश नहीं चाहते कि आजम खान बाहर आएं।’ चुनाव प्रचार के दौरान योगी आदित्यनाथ ने कहा था, ‘अखिलेश नहीं चाहते कि आजम खान जेल से बाहर आएं।’

खास बात है कि आजम खेमे की नाराजगी की खबर ऐसे समय में सामने आई है, जब प्रगतिशील समाजवादी पार्टी-लोहिया के प्रमुख शिवपाल यादव और सपा के बीच तनाव जारी है। यहां भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि वे सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का रुख कर सकते हैं।

फसाहत ने कहा, ‘आजम खान साहेब के आदेश पर केवल रामपुर ही नहीं, बल्कि आसपास के कई जिलों में उन्होंने सपा के लिए वोट दिया। लेकिन हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष जी ने मुसलमानों का पक्ष नहीं लिया। आजम खान दो साल से ज्यादा समय से जेल में हैं, लेकिन सपा अध्यक्ष केवल एक बार उनसे मिलने जेल पहुंचे हैं। इतना ही नहीं उन्हें विपक्ष का नेता भी नहीं बनाया गया और न ही पार्टी में मुसमानों को अहमियत दी गई।’ उन्होंने कथित तौर पर कहा, ‘अब अखिलेश को हमारे कपड़ों से बू आ रही है।’

ताकतवर नेता हैं आजम खान!
आजम साल 1980 से ही रामपुर सीट से जीत रहे हैं। हालांकि, उन्हें एक बार 1996 में कांग्रेस के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। पत्नी तजीन फातिमा पूर्व विधायक और पूर्व राज्यसभा सांसद हैं। वहीं, बेटे अब्दुल्ला आजम खान ने रामपुर में स्वार सीट से चुनाव जीता है। साल 2019 में जब आजम ने रामपुर लोकसभा सीट जीतने के बाद रामपुर सीट छोड़ दी थी। उस दौरान फातिमा ने यहां से जीत दर्ज की। जबकि, 22 मार्च को आजम खान ने विधानसभा सीट बचाने के लिए रामपुर लोकसभा सीट से इस्तीफा दे दिया। उसी दिन अखिलेश ने भी करहल सीट बचाने के लिए आजमगढ़ लोकसभा सीट छोड़ी थी। 

इससे पहले सपा आजम खान को पार्टी से निष्कासित कर चुकी है। मई 2009 में उन्हें पार्टी से 6 सालों के लिए निकाला गया था, लेकिन दिसंबर 2010 में उनका निष्कासन वापस ले लिया गया और वे दोबारा पार्टी का हिस्सा बन गए। निष्कासन के दौरान वह किसी और पार्टी में शामिल नहीं हो सकते थे या गठबंधन नहीं कर सकते थे।

इसके अलावा सपा सांसद शफीकुर रहमान बर्क के बयान ने भी उथल पुथल मचा दी है। उन्होंने शनिवार को कहा था कि वह अपनी पार्टी के काम से खुश नहीं हैं, ‘जो मुसलमानों के लिए पर्याप्त काम नहीं कर रही।’