शर्म… शर्म… सिर्फ और सिर्फ शर्मनाक… कानपुर देहात में ब्राह्मण मां-बेटी की मौत का जिम्मेदार कौन ?

हाय दैया, हम काहां रहिबै अब? कइसे रहाब? गरीब लोगन के मत सताइए, हम लोग इतने दिन से रह रहें साहब, रहे दीजिए… उनकी वेदना और पीड़ा का असर बुलडोजर के उन उठते पंजों टकराकर जब वापस उन तक आई… रहा नहीं गया… झोपड़ी में मां-बेटी गईं… खुद को बंद कर लिया… और फिर झोपड़ी आग में तब्दील हो गई… धू धूकर झोपड़ी जल पड़ी…. वो दो धू धूकर जलती रही… सब तमाशाई बन कर देखते रहे हैं… जलती हुई उन दोनों मां बेटियों का वीडियो बनाते चले गए… शर्मनाक हैं… शर्मिंदा होकर भी अब किया जाए… जब शर्म आनी चाहिए थी… किसी को शर्म नहीं आयी… लगा ऐसा कि सबने अपने शर्म को दिल के एक कौने में बंद कर लिया होगा… तभी तो वो दोनों जलती रही… घुटती हुई मरती रही… किसी को शर्म नही आयी…


ये दास्ता कानपुर देहात के मड़ौली गांव की है… उस झोपड़ी में 44 साल की प्रमिला दीक्षित और 19 साल की नेहा दीक्षित ने खुद को कैद कर लिया… आग लगी या लगाई गई…ये जांच का विषय है…लेकिन, ये बात तो पूरी तरह सत्य है… वो दोनों आग में जल गई… घुट-घुटकर मरी होंगी… जली होंगी… आग लगने के बाद जो कुछ हुआ, वो शर्मनाक था… क्या कहे… शब्द जुबां पर आ रहे हैं…लेकिन निकल नहीं पा रहे हैं… ऐसी मौत की हकदार वो दोनों तो नहीं थी… उनका कसूर क्या था… गरीब थीं… गरीबी के कारण इतनी रकम नहीं होगी… कि अपना घर अपनी जमीन पर बना पाए… कर लिया होगा अतिक्रमण… लेकिन अतिक्रमण रोकने के कारण जिस तरह से वो दोनों एक स्याह अतीत बनी… क्या रोका नहीं जा सकता था… अब त्रास्दी देखिए वो दोनों मां-बेटिया जलती हुई मर रही थी… और लोग जो वहां मौजूद थे…. वीडियो बना रहे थे…प्रशासन की टीम ने बुलडोजर दौड़ा दिया… सबकुछ हो रहा था… लेकिन झोपड़ी में आग बुझाने का इंतजाम नहीं था… ऐसे में झोपड़ी को तोड़कर ही आग बुझाने का आइडिया शायद प्रशासनिक अधिकारियों के दिमाग में आया हो… लेकिन, जब पुलिस और प्रशासन के अधिकारी, कर्मचारी वहां मौजूद थे तो आग पर काबू करने और महिला को तुरंत निकालने के लिए प्रयास हो सकते थे…दो जानों को जिंदा जलते हुए जाते देखना वीभत्स है… लेकिन, घटना की लीपापोती की कोशिश हो रही है… ये शर्मनाक है…


उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात की घटना दिल को दहलाने वाली है…एक व्यक्ति की शिकायत पर सरकारी जमीन पर बने अवैध निर्माण को ढाहने का आदेश होता है… प्रशासनिक टीम बुलडोजर के साथ पहुंचती है…बुलडोजर को देखकर परिवार को छत का संकट सामने दिखने लगता है… शहरी अतिक्रमण और ग्रामीण अतिक्रमण में बड़ा फर्क होता है। शहरी इलाकों में लोगों के सिर से छत हटने के बाद दूसरी छत मिलने में अधिक मशक्कत नहीं होती… वहां अतिक्रमण अपनी सुविधा के लिए होता है… ग्रामीण अतिक्रमण का कारण विवशता होती है। मजबूरी में ही कोई ग्रामीण किसी भी सरकारी जमीन पर झोपड़ी बनाकर रहने को मजबूर होता है…कानपुर देहात से जो वीडियो सामने आ रहे हैं, वह उसी विवशता को बयां करते हैं। महिला और उसकी बेटी रोती है… गिड़गिड़ती है… समय मांगती है… लेकिन हाय रे अकड़बाज प्रशासक समय दिया ही नहीं… वो गिड़गिड़ाते हुए ही मर गई…


अतिक्रमण किया जाना गलत है… अतिक्रमण होने से पहले ही ऐसी व्यवस्था हो कि वहां पर कोई निर्माण न हो पाए… लेकिन, एक घर को तोड़ने से पहले वहां रहने वालों को एक ठिकाना तो सुनिश्चित कराया ही जाना चाहिए… घर को खाली करने का नोटिस तो जारी किया जाना चाहिए था…स्थानीय पुलिस के जरिए नोटिस पर कार्रवाई से संबंधित रिपोर्ट मंगाई जानी चाहिए थी… ये कोई बड़े स्तर का अतिक्रमण हटाओ अभियान नहीं था… एक घर को खाली कराया जाना था… अतिक्रमण हटाओ टीम के फायर बिग्रेड की टीम नहीं गई थी… अमूमन अतिक्रमण हटाओ टीम के साथ एंबुलेंस और फायर बिग्रेड की गाड़ियां भी होती हैं… लेकिन, इस टीम के साथ ये दोनों मिसिंग थे… केवल बुलडोजर के साथ पहुंची टीम ने झोपड़ी में आग लगने के बाद बुलडोजर ही दौड़ाया… इसका वीडियो भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है… यूजर्स प्रशासन और सरकार पर इन दोनों वायरल वीडियो के जरिए सवाल कर रही है… गरीबों के साथ अन्याय की बात कर रही है…वहीं, पुलिस और प्रशासन की ओर से इस मामले में अलग ही थ्योरी समझाई जाने लगी है…इसमें संबंधित प्रक्रिया तो पालन किया ही जा सकता था… लेकिन ऐसा कही से नहीं हुआ… परिणाम सबके सामने है… वो दोनों मर गई… क्या किसी को शर्म आ रही है… वैसे अब शर्म करके भी क्या कीजिएगा… वो दोनों तो जल गई… मर गई…