क्या ईडी और सीबीआई के छापेमारी से खत्म हो जाएगी लालू की राजनीति
या जब तक रहेगा समोसे में आलू तब तक बिहार में चलता रहेगा लालू का जादू
जब-जब लालू पर कसा है कानून का शिकंजा तब-तब दुगनी ताकत से की है वापसी
चाहे जेल में रहें या सजा हो जाए इसलिए खत्म नहीं होती लालू की राजनीति
लालू यादव और उनका परिवार पिछले कई सालों से मुश्किलों में घिरा हुआ है एक तो लालू यादव की तबीयत उनका साथ नहीं देती तो वहीं दूसरी तरफ ईडी और सीबीआई जैसी जांच एजेंसियां कभी लालू से तो कभी उनकी पत्नी और उनके बच्चों से पूछताछ करती रहती हैं…जिसे देखकर राजनीति के कई बड़े पंडतों ने उनकी राजनीति को खत्म बताना शुरू कर दिया है लेकिन राजनीति के कुछ बड़े जानकारों का ये भी कहना है कि जब-जब लालू यादव को घेरने की कोशिशें हुई हैं या उन्हें चूका हुआ समझा है तब तब लालू यादव और ज्यादा ताकत के साथ उभरे हैं…और ये बात कोई हवा में नहीं कह रहा है बल्कि इसके कई सबूत हैं…और वो क्या हैं यही आज हम आपको बताएंगे…अगल कुछ मिनटों में हम आपको बताएंगे कि लालू यादव पर कब कब शिकंजा कसा गया है और तब लालू कैसे दुगनी ताकत के साथ सामने आए हैं…आपको बस करना इतना है कि आपको हमारा ये वीडियो आखिर तक देखना है
दरअसल लालू प्रसाद यादव, राबड़ी देवी और उनके परिवार के सदस्यों का पिछले ढाई दशक से सीबीआई, ईडी और आईटी जैसी सेंट्रल एजेंसियों से करीब का रिश्ता रहा है और दिलचस्प बात ये है कि इन एजेंसियों की जब-जब सक्रियता बढ़ती है तो लगता है कि लालू यादव का परिवार अब मटियामेट हो जाएगा। परिवार की राजनीतिक हैसियत मिट्टी में मिल जाएगी। वैसे थोड़ा-बहुत इसका असर दिखा भी है, लेकिन एक सच ये भी है कि हर संकट के साथ लालू यादव का परिवार पहले से कहीं अधिक मजबूत हुआ है। आज तो हालत यह है कि लालू के परिवार में तेज प्रताप यादव को छोड़ तकरीबन सभी केंद्रीय एजेंसियों के जांच के दायरे में हैं। इसके बावजूद बिहार की राजनीति की धुरी भी लालू यादव का परिवार ही बना हुआ है। चलिए आपको बताते हैं कि लालू यादव पर कब कब कानूनी शिकंजा कसा गया और उसके बाद उनकी ताकत कैसे बढ़ गई
जेल गए तो और ताकतवर बने लालू
ये तब की बात है जब लालू यादव चारा घोटाले में जब जेल गये, तब भी उनकी ताकत का एहसास हुआ था। तब लालू की पत्नी राबड़ी देली कुशल गृहिणी की भूमिका में घर संभाल रही थी। बेटे-बेटियां भी उस लायक नहीं थे कि वे पिता की विरासत संभाल सकें। विरोधियों का अनुमान था कि आरजेडी अब बिखर जाएगा। लालू की गैरहाजिरी में पार्टी को एकजुट रखना मुश्किल होगा। लेकिन इसे लालू का करिश्मा ही कहें कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। जगदानंद सिंह, अब्दुल बारी सिद्दीकी जैसे कद्दावर नेता भी जेल में बैठे लालू के इशारे पर चलते रहे और बिना असहमति के लालू की सलाह पर राबड़ी देवी को सीएम के रूप में स्वीकार लिया । इस तरह आरजेडी अटूट रही और अगले 10 साल तक राबड़ी देवी ने मुख्यमंत्री के रूप में बिहार की कमान संभाली।
सजा मिली लेकिन अटूट रही आरजेडी
लालू के जेल जाने और उनकी पत्नी के सीएम बनने की घटना को राजनीति के पंडितों ने ये कहा कि आरजेडी इसलिए नहीं टूटी क्योंकि सबको पता था कि लालू जल्द ही बाहर आएंगे…इसके बाद वक्त ने लालू यादव की एक और कठिन परीक्षा ली और इस बार लालू यादव को चारा घोटाले के मामलों में सजा हुई तो एक बार फिर लगने लगा कि आरजेडी का अब उभार संभव नहीं होगा। पर, यहां भी अनुमान गलत साबित हुआ। अपनी कुशल रणनीति से लालू ने अपने धुर विरोधी और कभी साथ रहे नीतीश कुमार को पटा लिया। 2015 के चुनाव में नीतीश की पार्टी जेडीयू और लालू की पार्टी आरजेडी ने साथ चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। संयोग से कांग्रेस का भी साथ मिला। उन दिनों लालू जमानत पर जेल से बाहर थे। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के आरक्षण की समीक्षा संबंधी बयान को लालू ने अपने पक्ष में मोड़ लिया। उन्होंने इसे इस रूप में प्रचारित किया कि आरएसएस और बीजेपी के लोग आरक्षण समाप्त करना चाहते हैं।बाजी पलट गयी और तीन दलों के महागठबंधन ने बिहार में सरकार बना ली। ये सब सुनकर आपके मन में ये सवाल उठ रहा होगा कि आखिर क्या बात है कि लालू एक के बाद एक चोट मिलने के बाद भी कमजोर नहीं होते चलिए आज आपको ये भी बता देते हैं
दरअसल लालू प्रसाद यादव पिछड़े समाज से हैं और माना ऐसा जाता है कि
बिहार में अति पिछड़ा और पिछड़े वर्ग की आबादी तकरीबन 52% हैं।
इसमें अकेले लालू की जाति यादव बिरादरी के 16% से अधिक लोग हैं।
आबादी के हिसाब से बिहार की दूसरी बड़ी जाति कुशवाहा है।
कुशवाहा आबादी 8% बतायी जाती हैं।
इतनी ही आबादी नीतीश कुमार की अपनी जाति कुर्मी की आंकी जाती है। इसका सीधा सा मतलब यह हुआ कि 2015 में यादवों के एकमुश्त वोट आरजेडी को मिले और फिलहाल लालू की पकड़ अब भी यादवों में बरकरार है। वहीं मुस्लिम समाज की बात करें तो नीतीश कुमार से मुस्लिम समाज इसलिए बिदका कि वे बीजेपी के पाले में चले गये। इसलिए मुस्लिमों की भी पहली पसंद लालू यादव ही हैं और यही लालू यादव की ताकत है तो जो भी आज लालू यादव को चूका हुआ समझ रहे हैं वो ये जान लें लालू कभी भी बाजी पलट सकते हैं…..आपको हमारी ये खबर कैसी लगी हमें कमेंट कर जरूर बताएं साथ ही राजनीति से जुड़ी हर खबर के लिए हमारे चैनल को सब्सक्राइब कर लें…शुक्रिया