महशहूर शायर मुनव्वर राणा किसी पहचान को मोहताज नहीं है । उन्हें ना सिर्फ यूपी के लोग बल्कि देशभर से सम्मान मिलता रहा है । उन्हें ना सिर्फ मुस्लिम बल्कि हर समाज में मौजूद शेरो शायरी और साहित्य के कद्रदानों से प्यार मिलता रहा है । लेकिन ऐसे में सवाल उठता है उनके दिल में अपने कौम फिर चाहे वो गलत ही क्यों ना हो मुनव्वर राणा की भावनाएं उमरने क्यों लगती है ?

दरअसल 3 अप्रैल 2020 को ट्विटर पर मुनव्वर राणा ने रात 10 बजे एक ट्वीट किया । जिसमें उन्होंने लिखा

फिर जगह कौनसी बचती है ग़रीबों के लिए,
मस्जिदों में भी अगर ख़ौफ़ से ताले पड़ जाएं।

मुनव्वर राणा, शायर

अब इस ट्वीट से क्या मतलब निकलते हैं । मुनव्वर राणा शायर हैं, शब्दों के जादुगर हैं । लेकिन उनकी शायरी से अर्थ का अनर्थ तो निकलता ही है । उन जमातियों के लिए प्यार तो दिखता ही है । जिनकी वजह से देश में कोरोना संक्रमितों की संख्या में इजाफा हुआ है। सरकार मस्जिदों में छापेमारी कर उन तबलीगी जमात के लोगों की जिंदगी बचाने के लिए पूरी कोशिश में जुटी है । क्या ये कोशिश करना गुनाह है ?क्या मुनव्वर राणा नहीं चाहते हैं कि इन उपद्रवी जमातियों की जिंदगियां सलामत रहे ?

शायर मुनव्वर राणा ने एक और ट्वीट किया

जो भी ये सुनता है हैरान हुआ जाता है,
अब कोरोना भी मुसलमान हुआ जाता है।

मुनव्वर राणा, शायर

देश में अभी तक ये आवाज तो नहीं आई कि कोरोना ‘मुसलमान’ है। कोरोना के लिए मुस्लिम जिम्मेदार है । फिर इस तरह की बेसिर पैर की बात लिखकर कही ऐसा तो नहीं है मुस्लिमों के दिलों में यूपी का ये सुप्रसिद्ध शायर जहर फैला रहा हैं । क्या मुनव्वर राणा को ये नहीं लगता कि उनकी शायरी से उनके समर्थकों के बीच गलत संदेश जा जा रहा है? जिस बात को लेकर मुनव्वर व्यथित हैं, कोरोना को लेकर जिन चर्चाओं की वजह से मौजूदा वक्त में अपना दर्द छलका रहे हैं वो देश के सभी मुस्लमानों के लिए नहीं बल्कि हर समुदाय की तरह इस समुदाय में बैठे कट्टर और जाहिल लोगों के लिए है ।