यूपी के निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ द्वारा दिए गए निर्णय पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है। इस फैसले से योगी सरकार को राहत मिली है।

हाईकोर्ट ने ओबीसी आरक्षण को निरस्त करते हुए सरकार को जल्द से जल्द चुनाव कराने के निर्देश दिए थे। जिसके बाद से यह एक राजनीतिक मुद्दा बन गया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगा दी है और साथ ही दूसरे पक्ष को नोटिस जारी कर तीन हफ्तों के अंदर उनसे जवाब मांगा है।

27 दिसंबर को हाई कोर्ट के निर्णय के बाद मचे राजनीतिक हंगामे पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी बयान जारी किया था और मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जाने की बात कही थी। वहीं, मामले पर पांच सदस्यीय आयोग का भी गठन किया गया था। 

गठित किए गए आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) राम अवतार सिंह हैं। इसकी एक बैठक बीते दिनों लखनऊ में भी हो चुकी है। आयोग के चार अन्य सदस्य सेवानिवृत्त भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी चौब सिंह वर्मा, महेंद्र कुमार, राज्य के पूर्व कानूनी सलाहकार संतोष कुमार विश्वकर्मा और ब्रजेश कुमार सोनी हैं।

बैठक के बाद राम अवतार सिंह ने कहा था कि आयोग अपनी रिपोर्ट ढाई से तीन माह में सौंपेगा। हालांकि, उसके बाद होने वाली फॉलोअप की प्रक्रिया में दो-तीन माह का समय और लग सकता है। उन्होंने कहा कि आयोग कमोबेश हर दिन बैठक करेगा। प्रत्येक जिले में जाकर डीएम और राजस्व अधिकारियों की मदद से डाटा जुटाएगा। इस तरह से अपने सर्वे की प्रक्रिया को पूरा करेगा।

उन्होंने कहा था कि  सर्वे के लिए क्या प्रणाली अपनाई जाए, क्योंकि इसके लिए अभी तक कोई निश्चित गाइडलाइन या प्रक्रिया तय नहीं है, ऐसे में इस बाबत विस्तार से विचार-विमर्श किया गया। उन्होंने कहा कि अधिकारियों के अलावा सर्वे के काम में जनप्रतिनिधियों की मदद भी लेंगे। अगर प्रशासनिक अधिकारी कोई गलत सूचना देते हैं तो जनप्रतिनिधि से बात करके उसे सुधार लेंगे। इस मामले में सर्वे के लिए बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में अपनाई गई प्रक्रिया का भी अध्ययन किया जाएगा। जिस भी जिले में सर्वे के लिए आयोग के सदस्य जाएंगे, वहां के जनप्रतिनिधियों को पूर्व में सूचना दी जाएगी। आयोग के सदस्य सचिव की ओर से फोन नंबर भी जारी किए जा सकते हैं।