Mayawati क्यों कहने लगी गेस्ट हाउस कांड अगर नहीं होता सपा-बसपा का यूपी में डंका बजता, बीजेपी की सियासत बस दूर से ही सत्ता को निहारती रहती !
जिसके लिए मुलायम को था अफसोस अखिलेश ने कहा था सॉरी… डिंपल ने पैर छुकर प्रणा किए थे ! उसकी याद फिर मायावती को क्यों आयी… क्यों कहने लगी अगर ऐसा ना होता… तो कुछ और होता ? मायावती को मुलायम के दौर की कौन सी बात आयी याद… बसपाई क्या देने लगी संदेश ?
बीएसपी फिर अतीत में हुई उस घटना को याद करने लगी… जिससे उनका सीधा कनेक्शन रहा है… वो उस घटना की भुगतभोगी रही है… उस घटना से संबंध सपाईयों का भी माना जाता है… उस घटना के लिए खुद नेताजी मंच साझाकर 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान मायावती को एक तरह से अपना अफसोस जताया था… अखिलेश ने एक तरह से अपने अंदाज में सॉरी कहा था… डिंपल यादव ने पैर छुकर मायावती को सम्मान दिया… अचानक से मायावती 28 साल पुरानी उस घटना को क्यों यादव करने लगी… दलितों को क्यों ये बताने में लग गई… सपा पर विश्वास मत करना… अखिलेश की राजनीति के साथ जुड़ने का प्रयास भी ना करना… उनकी मानसिकता में दलितों का उत्थान नहीं बल्कि प्रताड़ित करना लिखा है… आखिर सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ऐसा क्या कर रहे हैं… जिससे बीएसपी प्रमुख मायावती बेहद ही नाराज हो गई… अखिलेश पर आक्रामक हो गई…चलिए इसे समझने का प्रयास करते हैं…
दरअसल बीएसपी प्रमुख मायावती ने बीएसपी कार्यकर्ताओं को एक बार फिर 1995 का गेस्ट हाउस कांड याद दिलाया है… चर्चा हो रही है कि आखिर गेस्ट हाउस कांड फिर याद दिलाने की वजह क्या है? कहा जा रहा है कि इस बयान के संदर्भ के पीछे बीएसपी संस्थापक कांशीराम हैं… कांशीराम के प्रति दलितों के प्यार को अपनी ओर मोड़ने के लिए अखिलेश ने एक रास्ता अपनाया है… जिसे अपनाने का आइडिया शायद स्वामी प्रसाद मौर्य ने दिया है… अखिलेश यादव को मान्यवर कांशीराम को ‘अपना’ बनाने के लिए रायबरेली में पुराने बसपाई रहे स्वामी प्रसाद मौर्य के कॉलेज में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया… इससे बसपा को अपने दलित वोटबैंक में सेंधमारी का खतरा नजर आ रहा है… मायावती का बयान इसी वोटबैंक को बचाने से जोड़कर देखा जा रहा है…
दलित वोट बैंक की राजनीति को समझने के लिए गेस्ट हाउस कांड पर गौर करना जरूरी है.. उस दौर में अयोध्या के जरिए बीजेपी धर्म की राजनीति कर आगे बढ़ रही थी… तो उसे रोकने के लिए कांशीराम और मुलायम सिंह यादव एक हुए… दलित और पिछड़ी जातियों को एक करके 1993 में सरकार भी बनाई… मुलायम सिंह यादव बीएसपी के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए… लेकिन ये गठबंधन 1995 में गेस्ट हाउस कांड से टूट गया… सपा को लगने लगा था कि बीएसपी की बीजेपी से करीबी बढ़ रही है… इसी बीच 1995 में लखनऊ के स्टेट गेस्ट हाउस में बीएसपी ने अपने विधायकों की बैठक बुलाई… गेस्ट हाउस में उस समय मायावती अपने विधायकों के साथ मौजूद थीं… सपा नेताओं को इसकी भनक पहले से थी…वो वहां पहुंच गए… उन्होंने मायावती और बसपा नेताओं पर हमला कर दिया… मायावती ने खुद को एक कमरे में बंद करके किसी तरह बचाया.. इसी बीच बीजेपी ने बसपा को समर्थन दे दिया और मायावती पहली बार मुख्यमंत्री बनीं…
लेकिन अब जबकि 28 साल बीत गए मायावती को अचानक से गेस्ट हाउस कांड की याद क्यों आयी… इसकी वजह है… सपा प्रमुख अखिलेश यादव कांशीराम की प्रतिमा का रायबरेली में अनावरण करना… ये प्रतिमा बीएसपी से सपा में आए स्वामी प्रसाद मौर्य के कॉलेज में लगी है… ऐसे में पुराने बसपाई के ही सहारे अखिलेश यादव अब दलित वोटों पर डोरे डालने का प्रयास कर रहे हैं… यही चिंता मायावती को सता रही है… दलित बीएसपी का कोर वोटर है… यह माना जाता था कि दलित हमेशा बसपा के साथ रहता है… यही वजह है कि उसका वोट बैंक 20% से ऊपर रहता था… विधानसभा चुनाव 2022 में बसपा का कुल वोट प्रतिशत गिरकर 12.80% रह गया… इससे ये संदेश गया कि दलित वोट भी बसपा से खिसक रहा है..बीजेपी उसमें सेंध लगा रही है…अब सपा भी उसमें सेंधमारी की कोशिश कर रही है…
विधानसभा चुनाव 2022 में मुसलमान वोट पहले ही एकतरफा सपा की तरफ चला गया… इसका मायावती को काफी मलाल है… वो बार-बार इस बात को दोहराती हैं और मुसलमानों को अपने पक्ष में करने की कोशिश में जुटी हैं… दलित, अतिपिछड़ा और मुसलमान गठजोड़ से ही बसपा हमेशा आगे बढ़ी… ओबीसी सपा और भाजपा में बंट गया… यदि अब दलित वोट भी जाता है तो यह बसपा के लिए बड़ा झटका हो सकता है… इसे वो किसी कीमत पर गंवा नहीं सकती… मायावती दलितों को हर हाल में अपने पाले में रखना चाहती हैं…