हाइलाइट्स
- दानिश अली पर ‘इंडिया’ में शामिल पार्टियां मेहरबान है… बावजूद इसके मायावती ने ऐसा वैसा एक्शन नहीं लिया… जैसा इमरान मसूद के खिलाफ लिया
- मायावती को हकीकत मालूम है… फिर दानिश को स्वतंत्र राजनीति करने की छूट दी… तो ऐसा क्यों ?
- क्या बसपा में रहेंगे या जाएंगे दानिश अली? बहनजी अब तक तो निकाल देती थीं
पश्चिमी यूपी के धाकड़ मुस्लिम नेता, काजी परिवार की सियासी विरासत को संभालने वाले इमरान मसूद (Imran Masood) को इस वक्त खुद पर कोफ्त तो जरूर आ रहा होगा…जमीनी नेता होने के बाद भी बीएसपी ने उन्हें नकार दिया… उनकी राजनीति को इग्नोर कर दिया.. इमरान मसूद से बस खता इतनी हो गई कि उन्होंने नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की तारीफ कर दी… लेकिन बीएसपी में ही एक नेता ऐसे हैं… जो राहुल के मोहब्बत की दुकान से सियासी प्यार की खरीददारी करते पूरी तरह से दिखते हैं… लेकिन बीएसपी प्रमुख मायावती (Mayawati) खामोश हैं… दानिश अली को इमरान मसूद की तरह बीएसपी से बाहर का रास्ता दिखाने से गुरेज हैं… तो ऐसा क्यों है… समझने वाले समझने का प्रयास कर रहे हैं… बीएसपी प्रमुख मायावती ने इमरान मसूद के जैसा एक्शन नहीं लिया… तो ऐसी कौन सी सियासी बात उस नेता में है… जो मायावती को उनके खिलाफ एक्शन लेने से रोक रहा है…
जीहां हाल ही में बसपा के अमरोहा से सांसद दानिश अली (Danish Ali) सुर्खियों में रहे… संसद में चर्चा के दौरान दिल्ली से बीजेपी सांसद रमेश बिधूड़ी ने उनके लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया… लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला ने बिधूड़ी को चेतावनी देते हुए कहा कि सदन में अगर ऐसा दोबारा हुआ तो कड़ी कार्रवाई होगी… खुद बीजेपी की ओर से उन्हें कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है… इस सब के बीच में दानिश अली को समूचे विपक्षी की सहानुभूति मिली… राहुल गांधी उनसे मिलने गए, सपा सांसद डिंपल यादव ने उन्हें ‘भाई’ कहा, अखिलेश ने भी इस बहाने बीजेपी पर हमला बोला… बसपा सुप्रीमो ने भी इसे दुर्भाग्यपूर्ण कहा है… जबकि अगस्त में दानिश पटना जाकर बिहार के सीएम नीतीश कुमार से मिले थे… इस बीच राजनीतिक गलियारों में ये सुगबुगाहट भी है कि दूसरे दलों से नजदीकी दिखाने पर मायावती अपने नेताओं को बाहर का रास्ता दिखा देती थीं, क्या इस बार भी वह ऐसा ही करेंगी? इससे भी बढ़कर ये सवाल है कि क्या दानिश अली बसपा में बने रहेंगे या खुद किसी और दल का दामन थाम लेंगे…
22 अगस्त को बसपा सांसद दानिश अली बिहार की राजधानी पटना गए थे… वहां उन्होंने नीतीश कुमार से मुलाकात की थी… उसी समय चर्चा होने लगी थी कि क्या दानिश नीतीश की मदद से इंडिया में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं? असल में दानिश की बसपा में एंट्री की कहानी बहुत सीधी नहीं है…दानिश ने साल 2019 में बसपा जॉइन की… इससे पहले वह जनता दल सेक्युलर में थे… दानिश अली को कर्नाटक में जेडीएस और कांग्रेस के बीच गठबंधन कराने का श्रेय दिया जाता है… इसलिए जब 2019 में उन्होंने जब बसपा जॉइन की तो जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी ने इसे राजनीतिक समझौता कहा था… उनका कहना था कि हमने रणनीति के तहत दानिश अली को बसपा जॉइन करने को कहा ताकि संसद में बसपा और जेडीएस के सांसदों की संख्या में बढ़ोतरी की जाए… इसके बाद 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने यूपी में एसपी और बसपा के बीच गठबंधन कराने में अहम भूमिका निभाई थी… हालांकि इस गठबंधन से दोनों को कोई खास लाभ तो नहीं हुआ लेकिन कहा जाता है कि समाजवादी पार्टी के वोटों की बदौलत वह बसपा के टिकट पर अमरोहा से सांसद बनने में कामयाब हुए
अब जब 2024 के लोकसभा चुनाव की तस्वीर धीरे-धीरे साफ हो रही है, ये स्पष्ट है कि बसपा और सपा के बीच कोई समझौता नहीं होने वाला… कम से कम अभी तक तो यही लग रहा है… ऐसे में इस बार दानिश अली के लिए अमरोहा से जीतना आसान नहीं लग रहा है… इसी सबके बीच जब वो विपक्ष के गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव अलायंस के प्रमुख नेता नीतीश कुमार से मिले तो चर्चा होने लगी कि शायद वह इस तरह इस अलायंस में अपनी जगह बनाने की कोशिश कर रहे हैं…दूसरी तरफ दानिश मायावती के करीबियों में भी गिने जाते हैं… लेकिन राजनीति में व्यक्तिगत संबंधों से ज्यादा राजनीतिक भविष्य की चिंता भारी पड़ती है… ऐसे में वो अगर इंडिया से नजदीकी बढ़ा रहे हैं तो कुछ अनोखा नहीं है…हाल ही में संसद में रमेश बिधूड़ी के जुबानी हमलों ने उन्हें विपक्ष के और नजदीक ला दिया है। नेशनल कॉन्फ्रेंस, टीएमसी, आप, सपा, कांग्रेस और एआईएमआईएम तक उनके साथ सहानुभूति जता रहे हैं…इस पूरे मामले में दानिश अली विपक्ष के पोस्टर बॉय बन सकते हैं… बसपा सुप्रीमो मायावती भी ये सब समझती हैं इसीलिए वह दानिश को दूसरे दलों से नजदीक बढ़ाने के बावजूद बर्दाश्त कर रही हैं… हो सकता है कि उन्हें दानिश को बसपा से निकालने की नौबत ही न आए और दानिश खुद किसी ज्यादा फायदेमंद दल का साथ पकड़ लें