nitish kumar

बिहार (Bihar) में जातीय जनगणना की रिपोर्ट जारी… नीतीश ने रिपोर्ट के आभारी ! बिहार की राजनीति में अब चलेगा ‘सुशासन बाबू का जादू’… 2005 के दांव अब दिखा पाएंगे प्रभाव. नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की राजनीति को गुजरा हुआ कल मानने वालों को झटका… लोकसभा चुनाव में नीतीश के ‘नए वोटर्स’ होंगे गेमचेंजर!

बिहार के सुशासन बाबू नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के चेहरे पर अब से पहले इतनी खुशी कभी किसी ने नहीं देखी थी…नीतीश के चेहरे विश्वास वाली चमक है… एक उम्मीद होश के साथ उड़ान भरने के लिए तैयार है… ये तब आया जब नीतीश जातीय जनगणना की रिपोर्ट सावर्जनिक कर रहे थे… नीतीश कुमार के चेहरे पर एक अलग ही तरह की मुस्कुराहट दिखी… जिसमें विश्वास का तालमेल दिखा… तो सवाल जातीय जणगनना की रिपोर्ट में ऐसा क्या है… जो बिहार के मुख्यमंत्री के लिए बेहद ही खास है… माना जा रहा है… इसके जरिए नीतीश को अपनी राजनीती को धार देने में अब कामयाबी मिलेगी… इसके आधार अब नीतीश ये कह सकेंगे उनके पास तो सबसे बड़ा वोटबैंक है… ये वोटबैंक बीजेपी से ज्यादा है… ये वोटबैंक आरजेडी के मुस्लिम यादव समीकरण से ज्यादा है… तो क्या माना जाए जो बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार को गुजरा हुआ कल समझ रहे थे… वही नीतीश कुमार की राजनीति अब इस रिपोर्ट के आने के भविष्य के लिए एक अलग ही संकेत दे रही है….


जातीय जनगणना पर रिपोर्ट के अंदर की कहानी को समझने के लिए आपको 2005 में चलना होगा… 2005 का वो वक्त याद कीजिए जब नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने लालू-राबड़ी सरकार को सत्ता से बेदखल किया था… बिहार की बागडोर संभालने ही नीतीश ने लॉ एंड ऑर्डर को दुरुस्त करने का काम शुरू कर दिया… लेकिन इसी शासनकाल में नीतीश कुमार ने एक ऐसा काम भी किया जिसकी चर्चा बाद में हुई… अब उनका यही फैसला बिहार में लोकसभा चुनाव 2024 का गेमचेंजर साबित हो सकता है… नीतीश ने 2005-10 के शासनकाल में दो नए जाति वर्गों को बनाया… इसमें एक था महादलित और दूसरा था अतिपिछड़ा… इस अतिपिछड़े वर्ग को ही जेडीयू ने अपना मुख्य वोट बैंक बनाने में पूरी ताकत झोंक दी… अब बिहार में जातीय जनगणना की जो रिपोर्ट आई है, उसमें ये साफ पता चल रहा है कि नीतीश का वो पुराना फैसला कितना कारगर निकला है..


लालू प्रसाद यादव (Lalu Yadav) ने अपने जिस समीकरण के बदौलत बिहार में 15 साल राज किया, वो था माय यानी मुस्लिम यादव समीकरण… इस वोट बैंक का उस वक्त तक कोई तोड़ नहीं था… लेकिन उस वक्त के ‘जंगलराज’ से ऊबी जनता ने लालू-राबड़ी सरकार के राज का अस्त कर दिया… लगभग सभी जातियों के लोगों का वोट जेडीयू और बीजेपी के NDA गठबंधन को मिला… इसके बाद 2005 में 142 सीटों के साथ नीतीश-बीजेपी ने लालू-राबड़ी राज को उखाड़ फेंका… लेकिन उसी वक्त शायद नीतीश को पता था कि लॉ एंड ऑर्डर पर वो सत्ता को 5 साल से ज्यादा नहीं चला पाएंगे… इसीलिए बिहार का राज संभालते ही उन्होंने वही किया जो इस सूबे का कड़वा सच है, यानी जाति। इस बात को सुनने में किसी को गुरेज नहीं होगा कि बिहार के चुनावों में जाति ही एकमात्र सत्य होती है… लिहाजा नीतीश ने दो नई जातियों के वर्गों का गठन किया। इन्हीं में से एक था अतिपिछड़ा वर्ग…


इस जाति में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) ने लोहार, कुम्हार, बढ़ई, कहार, सोनार समेत 114 जातियों को रखा… कुल मिलाकर बिहार में ये एक बड़ा कदम था… 114 जातियों को एक वर्ग के तले ले आना, ये शुरुआत में कोई समझ नहीं पाया… नीतीश का ये दांव काफी दूरदर्शी वाला था… 2015 की एक गैर आधिकारिक रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में करीब 25 फीसदी अतिपिछड़ी जातियां थीं… उस वक्त नीतीश कुमार ने लालू यादव के साथ महागठबंधन बनाया था और विधानसभा चुनाव में बीजेपी का लगभग लगभग सूपड़ा ही साफ कर दिया था…अब नीतीश सरकार ने बिहार में जाति आधारित जनगणना की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी है… इस रिपोर्ट की सत्यता पर अभी काफी राजनीतिक बहस होगी, इसे भी तय मान लीजिए… लेकिन इसी रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आए हैं उसने नीतीश कुमार के 10 साल पहले के फैसले को एकदम सटीक ठहरा दिया है… बिहार में इस रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा जनसंख्या अतिपिछड़ों की ही है, यानी पूरी 36.01 फीसदी। अगर नीतीश कुमार सरकार की ये रिपोर्ट सही है तो इसे एकदम तय मान लीजिए, कि यही अतिपछड़ा वोट बैंक 2024 लोकसभा चुनाव में बिहार के लिए गेमचेंजर साबित होने जा रहा है… जो भी दल इस वोट बैंक को अपनी तरफ खींच लेगा, उसकी इस सियासी जंग में जीत करीब-करीब तय हो जाएगी…