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बिहार में जातिगत जनगणना की रिपोर्ट क्या आम हुई है… तरह तरह की अटकले लगनी शुरू हो गई… उनकी अटकलों में से एक है… मुस्लिम जातियों का आंकड़ा… बिहार में जातीय जनगणना रिपोर्ट से पहली बार मुस्लिम जातियों का भी आंकड़ा पता चला है… जो आंकड़े सामने आए हैं… उसे देखकर सवाल उठ रहे हैं… क्या रिपोर्ट को देखकर असदुद्दीन ओवैसी खुश हुए होंगे या नाखुश… इस पूरे गणित से आपको वाकिफ कराएंगे… इस बिहार में असदुद्दीन औवसी की राजनीति में कितना फर्क पड़ेगा…

अब तक कहा जाता रहा है… मुस्लिम धर्म में जातियां नहीं होती है… भारतीय राजनीति पूरे समुदाय को एक मानकर चलती थी…. पर अब पता चल गया है कि बिहार की आबादी में 17.42 फीसदी मुसलमान हैं. और इसमें से करीब 10 फीसदी अति पिछड़े, दो फीसदी पिछड़े और 4 फीसदी अशराफ हैं. राजनीतिक जानकार मानते हैं कि यही 4 फीसदी सत्ता का असली मजा लेते हैं…राजनीतिक दलों में टिकट के बंटवारे का सबसे बड़ा आधार टिकटार्थी की जाति ही रहती है… सभी योग्यताएं उसके बाद देखी जाती हैं. ..यानी कि पहली शर्त जाति, समुदाय और धर्म का रहता है. मुस्लिमों के टिकट देते हुए कभी शेख-सैयद या पठान या पसमांदा होने का तर्क नहीं दिया जाता रहा है… निश्चित है कि अब मंडलवादी दल भी टिकट देते हुए उन जातियों को महत्ता देंगे जिनकी आबादी उस क्षेत्र में सबसे ज्यादा होगी…

  • जातिगत सर्वे के आंकड़ें कहते हैं कि बिहार की कुल आबादी 13 करोड़ है… इसमें 81.99 प्रतिशत हिंदू और 17.70 फीसदी मुसलमान हैं….
  • सर्वे में मुस्लिम आबादी को 3 वर्गों में बांटा गया है… मुस्लिम कम्युनिटी के सबसे उच्च तबके जिसमें शेख-सैयद और पठान आते हैं उनकी संख्या 4.80 परसेंट है
  • जबकि बैकवर्ड मुसलमान 2.03 परसेंट के करीब हैं… लेकिन मुस्लिम आबादी का सबसे बड़ा हिस्सा अति पिछड़े मुसलमानों का है. कुल मुसलमानों में करीब 10.58 प्रतिशत अति पिछड़े मुसलमान हैं…


अभी तक सभी राजनीतिक पार्टियों में मुस्लिम्स वोटरों को ध्यान में रखकर किसी भी मुस्लिम प्रत्याशी को टिकट देने की परंपरा रही है… लेकिन निश्चित है कि अति पिछड़ों को ध्यान में रखकर जो पार्टी टिकट बांटेंगी वो फायदे में रहेगी… इसमें सबसे बड़ा नुकसान आरजेडी जैसी पार्टियों को ही होने वाला है… बिहार में फिलहाल पसमांदा मुस्लिम को सबसे पहले जोड़ने की पहल नीतीश कुमार ने की थी… अली अनवर सहित 2 लोगों को राज्यसभा में भेजकर नीतीश कुमार पसमांदा की पहली पसंद बने हुए हैं… जातिगत सर्वे में अति-पिछड़े मुसलमानों की गिनती करके नीतीश अब पसमांदा के हीरो बन चुके हैं… लेकिन बिहार में मुसलमानों को सबसे भरोसेमंद नेता के रूप में आज भी लालू यादव पसंद हैं… भागलपुर दंगों में पहुंचकर या आडवाणी की रथयात्रा रोककर लालू ने मुसलमानों में ऐसा सुरक्षा का अहसास कराया है जिसके चलते मुसलमान उन्हें अपना हीरो मानते रहे हैं… लेकिन पसमांदा राजनीति उनकी कमजोर रही है… लालू के साथ शुरू से ही जो मुस्लिम नेता उनकी आंख के बाल रहे हैं उनमें अधिकतर शेख ,पठान आदि हैं… तसलीमुद्दीन, शहाबुद्दीन या अब्दुल बारी सिद्दीकी आदि सभी उच्च जातियों के मुस्लिम उनके सबके करीब रहे हैं…

हालांकि बिहार की गठबंधन सरकार में पसमांदा जनप्रतिनिधियों को मंत्री बनाकर उन्हें महत्व दिया गया है… जिसके चलते उम्मीद की जा रही है कि मुसलमान आरजेडी और जेडीयू के साथ ही रहने वाले हैं… बिहार की मुस्लिम राजनीति में पिछले कुछ चुनावों से असदद्दीन ओवैसी की पार्टी ने भी खलबली मचाई है… वो भी मुसलमानों के वोट जातियों में बिखरने से परेशान होंगे…


बिहार में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम की सीमांचल के जिलों में मजबूत पकड़ है। सीमांचल में चार जिले अररिया, कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया आते हैं। ये लोकसभा क्षेत्र भी हैं… जबकि सीमांचल में विधानसभा की 24 सीटें है… 2020 के विधानसभा चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने पांच सीटों पर जीत दर्ज की थी… जबकि 10 सीटें ऐसी थीं, जहां एआईएमआईएम दूसरे नंबर पर रही थी… ओवैसी की पार्टी की मौजूदगी बिहार के 22 जिलों में है, जहां 10 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है… ऐसे में जारी जातीय आधारित सर्वे के आंकड़े ओवैसी के लिए एक पॉजिटिव संकेत हो सकता है… रिपोर्ट में मुसलमानों की आबादी में बढ़ोत्तरी देखकर ओवैसी खुश हो सकती हैं… ओवैसी को उम्मीद होगी कि इस बार उनकी पार्टी एआईएमआईएम का लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करते हुए एक न एक सीट जीत सकेगी…लेकिन इसके साथ नाखुशी भी होगी… मुस्लिम समाज को भी अलग अलग जातियों में बांटा गया…