सपा नेता काजल निषाद (Kajal Nishad) की जिंदगी में कुछ तो ऐसा हुआ है… जिसने उन्हें अपने शब्दों के जरिए अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए मजबूर कर दिया. काजल ने घोसी में धुआंधार तरीके से बीजेपी के संजय निषाद पर अटैक किया… घोसी का परिणाम आया… जीत सपा को मिली. काजल फिर हंसती मुस्कुराती जीत के उत्साह के साथ गुजरात कुछ दिनों के लिए गई… लेकिन गोरखपुर लौटी तो शब्दों में दर्द को लपेटकर लायी
तो सपा नेत्री काजल निषाद (Kajal Nishad) के साथ ऐसा क्या हुआ… उनकी जिंदगी में परिस्थितियों ने कौन सी करवट बदली… कि दूसरों पर अपने शब्दों से गाज गिराने वाली किसी अपने को संदेश देने लगी… आगाह करने लगी… शब्दों के जरिए अपनी जज्बातों को बातों ही बातों में जिक्र करने लगी… कुछ ऐसा सुनाने लगी… जिससे ऐसा लगा कि उनकी जिंदगी में कुछ ऐसी घटनाएं हुई है… कुछ तो ऐसे खेल खेले गए… जो उनके पीठ पीछे हुआ है… किसी के कहने पर उनके विश्वास को तोड़कर कोई अपना अविश्वास जताने लगा है…ये हम यूं ही नहीं कह रहे हैं… बल्कि काजल ने बातों ही बातों में दिल अंदर छिपे जज्बात के जरिए बताने की जेहमत उठाई है… इशारों इशारों में काजल ने चंद लफ्जों में बहुत बड़ी बात कही है… कोई तो अपना है… जिसने काजल के अपनेपन को हल्के में ले लिया है… उन्हें उस रास्ते पर छोड़ दिया… जहां काजल निषाद खुद को अकेला महसूस कर रही है…
काजल निषाद (Kajal Nishad) की उनसे ढेर सारी उम्मीदें थी… गुजरात से लौटने के बाद ऐसा लग रहा है… काजल के शब्द ऐसा कह रहे है कि वो आज खुद को ठगा हुआ महसूस कर रही है… अभी कुछ दिन पहले की ही तो बात है… जब घोसी की लड़ाई में काजल निषाद ने सुधाकर सिंह, रागिनी सोनकर, नवरत्न यादव, सीमा राजभर बागी, महेंद्र राजभर, रामजीत राजभर के साथ मिलकर बीजेपी से मुकाबला किया था… बीजेपी के सहयोगी ओमप्रकाश राजभर और संजय निषाद से पंगा लिया था… संजय निषाद की सियासत की पोल काजल ने घोसी में निषाद समाज के बीच खोलकर रख दी… जिसका परिणाम सपा उम्मीदवार सुधाकर सिंह के पक्ष में गया है… सुधाकर सिंह ने बड़े मार्जिन से दारा सिंह चौहान को हराने में कामयाबी हासिल की… सुधाकर की जीत में काजल निषाद ने अहम भूमिका निभाई… जीत की खुशी के साथ काजल अपने मायके गुजरात गई… लेकिन गुजरात से लौटी तो अपने साथ अपने शब्दों में एक छिपा दर्द लेकर लौटी है… काजल ने एक्स पर एक पोस्ट किया… लिखा…
मैं वो क़िताब हूं…जिसके पहले पन्ने पर प्रेम और आख़िरी पन्ने पर प्रतीक्षा लिखा है… बीच के हर पन्ने पर ख़ामोश एहसास है… संघर्षों में लिपटे दर्द का
ऐसे में सवाल है सपा नेत्री काजल निषाद (Kajal Nishad) जिन्होंने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव को अपनी सियासत में श्रीराम की जगह दी… उन्हें ऐसा लिखने की जरूरत क्यों महसूस हुई… क्या काजल की राजनीति के साथ कुछ खेल हुआ है… या पारिवारिक वजहों से ऐसा लिख रही है… या फिर यू ही शायरी करनी है… शब्दों के रंग में डूबना है… खो जाना है… क्या साहित्य रस के स्वाद के चक्कर में काजल निषाद ने ऐसा लिखा… वजह कुछ तो होगी… क्योंकि काजल निषाद बस इतना भर लिखकर नहीं रही है… 3 अक्टूबर का दिन आया तो काजल ने अपने अंदर की फीलिंग का इजहार कुछ इस तरह से किया… लिखा…
कभी जी भर कर देखा तक नहीं मैंने उसे…जिसके नाम से बदनाम करते हैं लोग मुझे… अरे साहब, काम करने वालों की कद्र करें… कान भरने वालों की नहीं
तो सवाल है काजल निषाद (Kajal Nishad) के लिए वो साहब कौन है… जिसे वो कह रही है… एक संदेश दे रही है… अपने दिल की बात बता रही है… जज्बात को पूरी तरह से उड़ेल कर रख रही है… कह रही है… हम काम करने वाले हैं… हमने ना रात देखी… हमने ना दिन देखा… हमने तो रात दिन अंधाधुन काम किया… बस आपके लिए काम किया… पूरी ताकत लगा दी… और आप किसी की कही बात को सुनकर हमारे काम को इग्नोर कर दिया… काजल की कही बातों से यही साउंड निकलता है… सवाल यही है कि वो साहब कौन हैं… जिसने काजल निषाद की ओर से किए गए काम की कद्र नहीं की… कान भरने वालों की बात मान ली…