लखनऊ की एक अदालत ने आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और अन्य के खिलाफ कथित रूप से बुद्ध और सम्राट अशोक के अनुयायियों के खिलाफ उनकी टिप्पणी को लेकर दायर एक शिकायत को खारिज करने को चुनौती देने वाली एक पुनरीक्षण याचिका को खारिज कर दिया है। अतिरिक्त जिला न्यायाधीश विनय सिंह का आदेश ब्रह्मेंद्र सिंह मौर्य द्वारा दायर पुनरीक्षण याचिका पर आया, जिन्होंने मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अदालत के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें आरएसएस के पदाधिकारियों के खिलाफ दायर शिकायत को खारिज कर दिया था।
मौर्य ने एक पुनरीक्षण याचिका दायर करते हुए कहा कि पहले का आदेश कानून में खराब था। हालांकि, अतिरिक्त जिला न्यायाधीश ने पाया कि पुनरीक्षण याचिका में कोई दम नहीं था और इसे खारिज कर दिया। मौर्य ने आरोप लगाया था कि 2016 में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और अन्य ने बुद्ध और सम्राट अशोक के अनुयायियों के खिलाफ टिप्पणी की थी जो एक अखबार में छपी। मौर्य का कहना था कि उन्होंने अखबार में छपी उस खबर की बाइट्स व्हाट्सएप पर देखी थी और उसे पढ़कर उनकी भावनाओं को ठेस पहुंची है।
गौरतलब हो की परिवादी ब्रहमेंद्र का कहना था कि 23 जून 2016 को उदयपुर के एक अखबार में यह समाचार प्रकाशित हुआ था कि संघ परिवार की नजर में अकबर के बाद अब सम्राट अशोक खलनायक और बौद्ध राष्ट्रद्रोही हैं। 24 जून को उसने यह लेख अपने वॉट्सऐप पर आए मैसेज में पढ़ा था। इसे पढ़कर उसकी भावनाओं को काफी धक्का लगा और समाज की भावनाएं भी आहत हुई हैं। निचली अदालत ने परिवाद को ग्राह्यता के स्तर पर ही यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि मोबाइल पर आए मैसेज से उत्पन्न अपराध इस अदालत के क्षेत्राधिकार में नहीं आता है।